दरभंगा के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामदेव झा का निधन

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मैथिली के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामदेव झा का गुरुवार की दोपहर उनके कबिलपुर स्थित पैतृक आवास पर निधन हो गया। वे 85 वर्ष के थे। वे पिछले चार वर्षों से कैंसर से जूझ रहे थे। उनके निधन की खबर मिलते ही जिलेभर में शोक की लहर दौड़ गयी।

डॉ. झा अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके तीन पुत्र और दो पुत्रियां हैं। एक पुत्री का निधन हो चुका है। उनके पुत्रों में कृष्ण देव झा, डॉ. शंकर देव झा और विजयदेव झा हैं। पत्नी योगमाया झा का निधन गत वर्ष 23 दिसंबर को हुआ था।

वे मैथिली के मूर्धन्य विद्वान पं. चंद्रनाथ मिश्र ‘अमर के दामाद थे। डॉ. झा कोनाट्य संग्रह ‘पसीझैत पाथर के लिए वर्ष 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। इसके अलावा राजेंद्र सिंह बेदी की उर्दू में लिखी पुस्तक ‘इक चादर मैली सी के मैथिली अनुवाद, ‘सगाई के लिए वर्ष 1994 में तथा बाल साहित्य ‘हंसनी पान आ बजंता सुपारी के लिए वर्ष 2015 में भी उन्हें साहित्य अकादमी बाल पुरस्कार से नवाजा गया था।

नारी विमर्श से संबंधित इनकी प्रख्यात पुस्तकें ‘अंग्रेजी फूलक चिट्ठी, ‘बहिना के वियोग‘ व ‘राम जोड़ी कागतक पांखि काफी चर्चा में रहीं। कैंब्रिज विवि के पुस्तकालयों में रखी मैथिली की अमूल्य कृतियों को यहां लाकर उसका संपादन एवं प्रकाशन करना भी डॉ. झा के जीवन का महत्वपूर्ण कार्य रहा। इतना ही नहीं, नेपाल के भक्तपुर, मल्लपुर, कांतिपुर आदि में स्थित मंदिरों की दीवारों पर मैथिली में लिखी कविताओं को वहां से कागज के पन्नों पर उतारकर लाना तथा उनका भी संपादन एवं प्रकाशन करना इनकी अमूल्य कीर्ति रही।

नेपाल के राजकीय अभिलेखागार से मैथिली साहित्य की प्राचीन पांडुलिपियों को देखकर उसका मैथिली में अनुवाद कर संपादन व प्रकाशन करने में डॉ. झा अग्रगण्य रहे। मैथिली साहित्य के अनुसंधान के क्षेत्र में भी डॉ. झा काफी परिश्रम कर चुके थे। 50 से अधिक पुस्तकों के रचयिता डॉ. रामदेव झा आधुनिक मैथिली साहित्य के स्तंभ थे।

डॉ. रामदेव झा का जन्म वर्ष 1936 में अपने ननिहाल हायाघाट प्रखंड के सहोरा में हुआ था। वर्ष 1961 में वे पटना विवि के पीजी मैथिली के टॉपर रहे थे। वर्ष 1963 में वे एचपी कॉलेज, दुमका में कमीशन की ओर से व्याख्याता के पद पर बहाल हुए। वर्ष 1963 में पटना एवं बिहार विश्वविद्यालय में व्याख्याता पद पर चयनित हुए।
मैथिली की सेवा निरंतर जारी रखने के लिए डॉ. झा ने सीएम कॉलेज, दरभंगा के मैथिली विभाग में व्याख्याता के पद पर योगदान किया।

यहां से वे ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पीजी मैथिली विभाग में पहुंचे और यहीं से वर्ष 1996 में सेवानिवृत्त हो गए। डॉ. झा के पुत्र डॉ. शंकर देव झा ने बताया कि उनकी माताजी डॉ. योगमाया झा के निधन के बाद उनकी एकादशा की तिथि को डॉ. झा अस्वस्थ हुए और उस दिन से पुन: स्वस्थ नहीं हो सके।

शंकरदेव ने बताया कि गुरुवार को तकरीबन 11 बजे उन्हें हर्ट अटैक का एहसास हुआ। परिवार के लोग उन्हें शहर के एक निजी अस्पताल में ले गए। वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। डॉ. शंकरदेव ने बताया कि गुरुवार की सुबह भी जगने के बाद वे अपने जेष्ठ पुत्र कृष्ण देव झा, मंझले शंकर देव झा एवं छोटे पुत्र विजय देव झा से बात की थी।
उन्होंने कहा था कि मैथिली का कुछ कार्य करना शेष है। आप लोग सहयोग करिए। इसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ती चली गई।

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