बिहार मे आक्रामक विपक्ष: सियासी मायने

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मोहम्मद फैज़ान( मुख्य संपादक, इंसाफ टाईम्स हिन्दी)

पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव मे हार के बाद से ही तेजस्वी नित विपक्ष लगातार नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन पर हमलावर हैl कभी शराब के मुद्दे पर नीतीश सरकार के मंत्री को घेरना तो कभी, कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार को बैकफूट पर ढ़केलना तो वहीं आज रोज़गार के मुद्दे पर विधानसभा के घेराव इसी कड़ी का हिस्सा है, वहीं आज के विपक्ष के विधानसभा मार्च में जो हिंसा हुई है और पुलिस के लाठीचार्ज से जो विपक्षी कार्यकर्ताअों को जो चोटें आई हैं वो विपक्ष के लिए संजीवनी का काम करेगीl लेकिन बिहार में जो ये विपक्ष का अाक्रमक एक्शन है इसके सियासी मायने हैंl पिछले साल नीतीश कुमार के लिए आसान दिख रहे बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव की अनूपस्थिती मे तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के सबसे दुखती रग “रोज़गार” पर हाथ रख दियाl ‘रोज़गार’ नीतीश कुमार के लिए एक ऐसा मुद्दा है जिसपर उनके पास बताने के लिए कुछ नहीं हैl नीतीश ने पूरे चुनाव को बिजली, पानी, सड़क, कानून-व्यवस्था और महिला सशक्तिकरण के इर्द-गिर्द रखने की कोशिश की लेकिन तेजस्वी के रोज़गार वाले डिस्कोर्स को बहुत ने बहुत पसंद किया खैर करीबी मुकाबले मे ए डी ए को स्पष्ट बहुमत मिल गयाl लेकिन तेजस्वी के नेतृत्व वाले विपक्ष को लग गया कि हमे किस मुद्दे पर सरकार को घेरना है और कौन सा मुद्दा ज़्यादा प्रसांगिक है, इसी कड़ी मे आज विपक्ष का विधानसभा घेराव था जिसमे हिंसा और लाठीचार्ज के बाद विपक्ष सरकार पर और हमलावर हो गया है दूसरे शब्दों मे कहें तो सरकार ने विपक्ष को एक और मौका दे दिया हैl वहीं विपक्ष लगातार हर घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए है, पिछले दिनों विधानपरिषद चुनाव के बाद एन डी ए में थोड़ी सी हलचल सुनाई दी थी, जीतन राम माँझी ने एक ब्यान देकर सरकार को चेताया था कि ऊँहे नज़रअंदाज ना किया जाये, मंत्रीमंडल विस्तार के बाद मुकेश सहनी ने भी अपने तेवर दिखाए थे, ऐसे मे विपक्ष किसी भी संभावित मौके को छोड़ेगा नही और ऐसी सम्भावनाअों को जीवंत रखने के लिए विपक्ष को ऐसे ही आक्रमक रहना पड़ता हैl

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