खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी जो भारत ही नहीं पूरे विश्व में किसी पहचान का मोहताज नहीं है, जो एशिया के बड़े सार्वजनिक पुस्तकालयों में से एक हैl बिहार की राजधानी पटना के अशोक राजपथ पर गंगा नदी के किनारे बने इस पुस्तकालय को यूनेस्को नें 1969 में बिहार से इकलौते विश्व धरोहर के रूप में अपनी सूची में शामिल किया थाl 1891 में बने इस पुस्तकालय के एक हिस्से को तोड़कर बिहार सरकार ने फ्लाईअोवर बनाने का निर्णय लिया है, जिसका बहुत विरोध हो रहा है, सरकार का तर्क ये है कि ये सड़क बहुत ही ज़्यादा व्यस्त सड़क है और इसपर फ्लाईअोवर बनाना बहुत ज़रूरी है और इसके लिए लाइब्रेरी के एक हिस्से को तोड़ना आवश्यक है, लेकिन सवाल ये है कि क्या हम सरकारों के तथाकथित विकास की कीमत अपने ऐतिहासिक धरोहरों को यूँ ध्वस्त करवा कर देंगे? क्या सरकार इतनी संवेदनहीन हो गई है कि वह इसकी महता को नज़रअंदाज़ करके कार्य कर रही है?सरकार के इस कदम का हर तरफ विरोध हो रहा है, 13 अप्रैल को आशोक राजपथ पर बिहार यंग मेंस इंस्टीट्यूट में बिहार विधान सभा में पुस्तकालय समिती के सभापति और विधायक सुदामा प्रसाद के अह्वान पर पटना शहर के नामी चिकित्सकों, पत्रकारों, शिक्षाविदो और बुद्धिजीवियों की एक बैठक हुई जिसमे सर्वसम्मती से सरकार के इस निर्णय की अलोचना की गई, इस बैठक में विभिन्न कार्यक्रम चला कर इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए प्रयास करने पर सहमती बनीl इसके इलावा कैम्पस फ्रंट आफ इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हुमा कौसर और सैफुर रहमान के नेतृत्व में भी प्रतिनिधीमंडल नें पुस्तकालय का दौरा किया और स्थिती का औवलोकन किया, भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी अमिताभ दास ने इसके विरोध में अपना राष्ट्रपति द्वारा प्रदत पुलिस मेडल लौटा दिया, इसके इलावह और भी संगठन और लोग विभिन्न माध्यमों से इसके खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैंl इन सब के बीच सवाल ये है कि आखिर सरकार को फ्लाई अोवर के लिए सिर्फ यही जगह मिलता है या और भी वैकल्पिक मार्ग हो सकते है? सरकार अगर चाहे तो गंगा नदी के किनारे से भी फ्लाई अोवर बनाकर गाँधी मैदान को जोड़ सकती है और बिहार के इस गैरवशाली धरोहर को तोड़ने से बचा सकती हैl अगर सरकार ऐसे ही तथा कथित विकास के नाम पर हमारे ऐतिहासिक धरोहरों को तोड़ती रही तो कल हमारी आने वाली पीढ़ीयों के पास ना कोई धरोहर होगा और ना ही कोई ऐतिहासिक उपलब्धी होगी जिसपे वो गर्व कर सकेंl यही वो ऐतिहासिक पुस्तकालय है जिसमें पढकर लाखों लोगों नें कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं और देश और मानवता की सेवा में खूद को समर्पित किया है, सरकार को चाहिए कि वो इस प्रकार से पुस्ताकालय बिहार के हर ज़िले में स्थापित करे लेकिन सरकार उल्टे ही एक स्थापित पुस्तकालय के एक हिस्से को तोड़ने जा रही हैlअगर आज इसके लिए आवाज़ नहीं उठाया गया तो कल हो सकता है सरकार किसी और काम के नाम पर पूरे लाइब्रेरी को ही तोड़ देl बस सरकार से हम सब की यही अपील है “खुदाबख्श” को बख्श दें|’