वो एक चराग कई आँधियों पे भारी था मोहम्मद फैज़ान

Spread the love

सीवान के पूर्व सांसद और राजद के कद्दावर नेता डॅा मोहम्मद शहाबुद्दीन का पिछले 1 मई को दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में निधन हो गयाl लगातार 4 बार सांसद और 2 बार विधायक रहे मोहम्मद शहाबुद्दीन दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद थे जहाँ ऊँहे कोरोना संक्रमण की शिकायत होने पर अस्पताल डी डी यू अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ उनका निधन हो गयाl सीवान और उसके आसपास के ज़िलों में मसीहा या राॅबिनहुड की छवि रखने वाले शहाबुद्दीन का जन्म सीवान के प्रतापपुर गाँव में 10 मई 1967 को हुआ, कॅालेज के जमाने से ही राजनीति में सक्रिय शहाबुद्दीन ने राजनीतिक शास्त्र से एमए और पीएचडी की उपाधी ली, शहाबुद्दीन के राजनीतिक जीवन की शुरूआत 80 के दशक में सीवान में भाकपा माले के साथ संघर्ष से शुरू हुआ, उससमय माले का झंडागाड़ आंदोलन सीवान में चरम पर था और उसके आतंक खिलाफ मोर्चा खोला शहाबुद्दीन ने और फिर सीवान में शहाबुद्दीन और माले का संघर्ष शुरू हो गया, तब शहाबुद्दीन को सीवान के हर तबके का समर्थन हासिल होने लगा और शहाबुद्दीन नें 1990 के विधानसभा चुनाव में निर्दलिय जीत हासिल की और फिर जनता दल में शामिल हो गए तथा 2 बार विधायक और 4 बार सांसद रहेl इस दौरान उन्होने सीवान में विकास के लिए कई कार्य आरंभ करवाए जिसमे सीवान इंजिनियरींग कालेज, यूनानी मेडिकल कालेज, इंडोर स्टेडियम,राजेन्द्र स्टेडियम जैसे कई कार्य हैं, इसके इलावह अपने सांसद निधी के शत प्रतिशत उपयोग करने का रिकार्ड भी बनाया, शहाबुद्दीन के ज़माने में सीवान में डॅाक्टरों की फीस शहाबुद्दीन ही निर्धारीत करते थे ताकी गरीबों को ईलाज में कोई दिक्कत ना हो, शहाबुद्दीन के दौर में सरकारी कामों में कमिशन की कोई गुंजाईश ही नहीं थी, वो अपने घर पर जनता दरबार लगा कर लोगों की समस्याअों को सुनते थे और उसको त्वरीत निस्पादित कर देते थेl शहाबुद्दीन पर कई अपरधिक मामले भी दर्ज थे जिसमें तेजाब कांड प्रमुख था जिसमें सजा होने के कारण शहाबुद्दीन जेल में बंद थे, उनपर जे एन यू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर और पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या का आरोप भी लगा लेकिन इन सब से इतर शहाबुद्दीन आवाज़ थे उन लोगों के जिन्हे वर्षो से समाज और सिस्टम ने हासिये पर रखा गया था, शहाबुद्दीन को उसी अन्याय और सिस्टम ने साहेब बना दिया, शहाबुद्दीन सिस्टम के अन्याय के खिलाफ लोगों की उम्मीद का नाम थे, शहाबुद्दीन ने लोगों को सर उठा कर जीने का सलीका सिखाया था, शहाबुद्दीन सिद्धांतो के लिए मिट जाने वाले व्यक्तित्व का नाम था जिसने कभी भी अपने राजनीतिक फायदे के लिए सिद्धांतो से समझौता नहीं किया, शहाबुद्दीन उस चराग का नाम था जिसे बड़ी-बड़ी आंधियों ने बुझाना चाहा लेकिन बुझा नहीं सके इसी कारण लोगों ने शहाबुबुद्दीन के साथ षणयंत्र किया, शहाबुद्दीन पर कभी भ्रष्टाचार या संप्रदायिकता का आरोप नहीं लगा, शहाबुद्दीन ने पूरी ज़िन्दगी सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया और यही कारण है कि शहाबुद्दीन ने जो भी चुनाव लड़ा हारे नहीं शायद यही कारण था कि कुछ लोगों को वो पसंद नहीं आते थे और उनके खिलाफ साजिश किए गएl शहाबुद्दीन ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि “मैं ये कह कर जाऊंगा कि मुझे मेरी सांसों ने हरा दिया किसी जम्हूरियत ने नहीं हराया|”न जाने कितने चरागों को मिल गई शोहरत एक आफताब के बे-वक्त ड़ूब जाने से

Leave a Comment