प्राकृतिक आपदाएं, ग्लोबल वार्मिग और हमारा दायित्व

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(मोहम्मद फैज़ान, इंसाफ टाईम्स हिन्दी)

पश्चिम बंगाल, उड़ीसा सहीत पूरा पूर्वी भारत तुफान “यास” के चपेट में है, मौसम विभाग के चेतावनी के बाद काफी तैयारियों के कारण इस तुफान से जान-माल की काफी कम क्षति हुई है फिर भी बंगाल में 3 लाख से अधिक घरों को इस तुफान से क्षति पहूँची है और करोड़ों का नुक्सान हुआ हैl इस से पहले पश्चिमी तट पर तुफान ताऊते नें काफी तबाही मचाई थी और जान माल की काफी क्षति हुई थीl इससे पहले पिछले वर्ष उतराखण्ड में बादल फटने की घटना हुई थी जिसमें भी जान-माल की व्यापक क्षति हुई थीl इसी प्रकार बे-मौसम बारिश, बाढ, सुखा जैसी प्राकृतिक आपदाअों से हम निरंतर दो-चार हो रहे हैं और जान-माल के क्षति के रुप में हम इसकी भारी कीमत भी चुका रहे हैंl लेकिन सवाल ये है कि आखिर इन घटना का कारण क्या है? और इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? और इसका जवाब स्पष्ट है “ग्लोबल वार्मिग”, ग्लोबल वार्मिग का अर्थ होता है पृथ्वी के तापमान में वृद्धिl आज जो हम जलवायु परिवर्तन का सामना कर रहे हैं इसका प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिग ही है, जलवायु परिवर्तन लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसे हैं, ग्रीन हाउस गैस वे गैसे होती हैं जो बाहर से मिल रही गर्मी या उष्मा को अपने अंदर सोख लेती है ग्रीन हाउस गैसों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण गैस कार्बन डाइऑक्साइड है जिसे हम जीवित प्राणी अपने सांस के साथ उत्सर्जन करते हैंl पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी में वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर यहां का तापमान बढ़ाने में कारक बनती है कार्बन डाइऑक्साइड, वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन इसी तरह चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में हमारे पृथ्वी का तापमान 3 डिग्री से 8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे दुनिया के कई हिस्सों में बर्फ की चादर बिछी जाएगी।समुद्र का जलस्तर बढ़ जाएगा ,समुद्र की इस तरह जलस्तर बढ़ने से दुनिया के कई हिस्से जल में लीन हो जाएंगे भारी तबाही मचेगी यह किसी विश्वयुद्ध या किसी “एस्टेरॉयड”के पृथ्वी से टकराने से होने वाली तवाही से भी ज्यादा भयानक तबाही होगी ।यह हमारी पृथ्वी के लिए बहुत ही हानिकारक सिद्ध होगा। आज जो हम प्राकृतिक आपदाएं झेल रहे हैं उसका कारण भी ग्लोबल वार्मिग हैl ग्लोबल वार्मिग के मानवीय कारण भी हैं, वनों की अंधाधुंध कटाई, आैधोगिकरण, शहरीकरण इसके प्रमुख कारण है और इसने ग्लोबल वार्मिग के रूप में मानवता और पृथ्वी के अस्तित्व के सामने चुनौती पेश की हैl ग्लोबल वार्मिग का एक प्रमुख कारण विकसीत देशो का रवैया भी, विकासशील देशों की अपेक्षा विकसीत देश 10% ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन करते हैं और अपने स्वार्थो के कारण इसमें कटौती करने के लिए ईच्छुक भी नहीं हैं जो कि मानवता के लिए बहुत ही घातक हैl हम सब का दायित्व है कि हम सब इस समस्या से निपटने के लिए आगे आएं और प्रयास करें की कम से कम पेड़ो की कटाई हो, प्रदुषण कम से कम किया जाये और सामुहिक रुप से कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रयास किया जाये, इसके साथ सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि वो भी अपनी नीति बनाते समय ग्लोबल वार्मिग को ध्यान में रखकर नीति बनायें, हमें विकास नहीं ‘सतत विकास’ के लिए प्रयास करने होंगे, तभी हम विकास के साथ भी उसके विनाशकारी प्रभाव से बच सकते है, अन्यथा ये पृथ्वी के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिंन्ह् लगा देगा और हमें इसके भयंकर परिणाम भुगतने होंगेl

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