नई दिल्ली, जुलाई 17, 2021 एनसीएचआरओ देश में राजद्रोह कानून की अप्रासंगिकता के बारे में 15 जुलाई, 2021 को भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन की टिप्पणी का स्वागत करता है। यह खुशी की बात है कि मुख्य न्यायाधीश ने देश के विभिन्न हिस्सों में कानून के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (ए) की जड़ें औपनिवेशिक भारत में हैं और इसका इस्तेमाल औपनिवेशिक सत्ता द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल भेजने और दंडित करने के लिए किया जाता था। आज़ादी के बाद से इसका इस्तेमाल केवल विरोध करने वाले लोगों या सरकार की आलोचना करने वाले समूहों के खिलाफ किया जा रहा है। सीधे शब्दों में कहें तो देशद्रोह के कानून का इस्तेमाल किसी को भी निशाना बनाने के लिए किया जाता है जिसे सरकार बिना किसी आधार के चुप कराना चाहती है।यह आश्चर्य की बात नहीं है कि 2014 के बाद से देशद्रोह के मामलों में वृद्धि हुई है, जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी। उत्तर प्रदेश के राज्य में भी भाजपा के आने के बाद से कई लोगों को इस कानून के तहत जेल भेजा गया है, जिन्होंने वहां के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ को आलोचना की थी या कोई ऐसा सोशल मीडिया पोस्ट डाला था। इसका उपयोग भाजपा सरकारें राजनीतिक विरोधियों को “राष्ट्र-विरोधी” कह कर कलंकित करने के लिए भी करती हैं। यह दिलचस्प बात है कि केंद्र सरकार ने 2016 में संसद में स्वीकार किया कि राजद्रोह की परिभाषा बहुत व्यापक है और इसकी सख्त व्याख्या की आवश्यकता है।अब समय आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट इस कानून के मनमाने ढंग से इस्तेमाल के खिलाफ हस्तक्षेप करे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने केवल राजद्रोह पर आलोचनात्मक टिप्पणी की है और इसकी उपयोगिता पर संदेह जताया है। अभी तक कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ है।इन सभी कारणों के चलते मानवाधिकार संगठन नेशनल कंफेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स आर्गेनाइजेशन (एनसीएचआरओ) मांग करता है कि राजद्रोह का कानून निरस्त किया जाए। लोगों के लिए बने एक संविधान में राजद्रोह जैसे कानून की कोई जगह नहीं है।