पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के चेयरमैन ओ एम ए सलाम ने राजद्रोह कानून के तहत नए एफआईआर दर्ज करने पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का स्वागत किया है।भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए या राजद्रोह कानून साम्राज्यवादी दौर का एक कानून है, जिसे आज़ाद भारत की विभिन्न सरकारें अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करती रही हैं। यह कानून नागरिकों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने का एक बड़ा हथियार बन गया था, जिसे निरस्त करने के लिए नागरिक अधिकार संगठन और जागरूक लोग लंबे समय से मांग कर रहे थे। यह एक अच्छी बात है कि आख़िरकार सर्वोच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान लेते हुए अंतिम निर्णय आने तक इस पर रोक लगाने का फैसला सुनाया है। यह फैसला उन कई निर्दोष लोगों के लिए राहत का सामान होगा जो राजद्रोह कानून के तहत जेलों में क़ैद हैं, क्योंकि इससे उनकी रिहाई का रास्ता खुल सकता है।राजद्रोह कानून पर रोक लगाने का यह अंतरिम आदेश केंद्र सरकार की ओर से उठाई गई आपत्तियों के बावजूद जारी किया गया। यह अच्छी बात है कि आज कई विपक्षी नेता भी काले कानूनों के खिलाफ बोल रहे हैं। लेकिन इस बात को भुलाया नहीं जा सकता कि यूएपीए में किए गए संशोधन कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली पिछली सरकारों में ही किए गए हैं। मगर 2014 के बाद से बीजेपी सरकार में इन कानूनों के दुरूपयोग में खतरनाक हद तक वृद्धी हुई है।अब जबकि राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी गई है, हमें इस बात को लेकर सतर्क रहने की ज़रूरत है कि कहीं किसी बहाने से इसे दोबारा लाने की कोशिश न होने पाए। इस देश के इतिहास में ऐसा भी होता रहा है कि जनआंदोलनों के बाद जब किसी कानून को वापस लिया गया है, उसके तुरंत बाद और ज़्यादा खतरनाक प्रावधानों के साथ कोई नया कानून ले आया जाता है। हम देख चुके हैं कि किस तरह टाडा के बाद पोटा आ गया, और फिर उसे बदलकर संशोधित यूएपीए में दाखिल कर दिया गया। यहां तक कि राजद्रोह कानून के मामले में भी, सोलिसिटर जनरल का स्टैंड इस बात की तरफ इशारा कर रहा है कि सरकार इस कानून को आगे भी जारी रखना चाहती है।पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के चेयरमैन ने जनता से अपील की है कि वे अदालत के आदेश के मायनों में फेर-बदल की संभावित कोशिशों को लेकर होशियार रहें। साथ ही उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से भी इस प्रकार की कोशिशों को पराजित करने की अपील की है।