एक साथ विपक्षी दलों के प्रमुख नेता केंद्रीय जांच एजेंसियों के रडार पर आ गए हैं. पिछले दिनों एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से ईडी पूछताछ की तो दूसरी तरफ रेल भर्ती घोटाला मामले में आरजेडी सुप्रीम लालू यादव के ओएसडी रहे भोला यादव को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया है. इतना ही नहीं शिवसेना नेता संजय राउत से फिर पूछताछ के लिए ईडी ने समन जारी किया और पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया. बंगाल टीचर भर्ती घोटाला मामले में टीएमसी विधायक से पूछताछ की गई है जबकि पार्थ चटर्जी गिरफ्तार हैं. इस तरह केंद्रीय जांच एजेंसियों का विपक्षी नेताओं पर ताबड़तोड़ एक्शन जारी है. नेशनल हेराल्ड अखबार से जुड़े एक कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दिल्ली और कोलकाता समेत 12 ठिकानों पर छापा मारा है. इस कार्रवाई के बीच कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की प्रतिक्रिया आई है. उन्होंने फेसबुक पोस्ट के जरिए कहा है कि खुद को अकेला मत समझना, कांग्रेस आपकी आवाज़ है और आप कांग्रेस की ताकत. न हम डरेंगे और इन्हें डराने देंगे. विपक्षी नेताअों पर ये कार्यवाही कोई नियमित कार्यवाही नहीं है बल्कि ये सरकार की रणनीति का हिस्सा है. जिस प्रकार पिछले दिनों महाराष्ट्र में शिवसेना के भीतर ही बगावत करवा कर सरकार गिराई गई, अगर ये भ्रष्टाचार के विरुद्ध होता तो उन विधायकों पर फिर कार्यवाही होती जिन्होने बगावत करके सरकार गिराई, लेकिन केन्द्र के खिलाफ सबसे ज़्यादा मुखर रहने वाले संजय राऊत को ईडी ने निशाना बना लिया उस के बाद सरकार फिर से दूसरे प्रदेशों में भी उसी तर्ज पर मौके तलाश रही है और इसके लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का सहारा लिया जा रहा है. मिसाल के तौर पर बीजेपी की नज़र हमेशा से अकेले बिहार की सत्ता पर बैठने की है, लेकिन इसमे सबसे बड़ा रोड़ा हैं लालू प्रसाद यादव. कमंडल के खिलाफ मंडल के सहारे राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव ने बीजेपी को बिहार में खूलकर राजनीति करने ही नहीं दिया. लालू यादव की वजह से ही आज भी बिहार जातिय राजनीति के लिए संवेदनशील बना हुआ है. लालू यादव के खिलाफ भी केंद्रीय जांच एजेंसियों का खूब इस्तेमाल हुआ है.लालू यादव के ओएसडी रहे भोला यादव को सीबीआई ने इसी कड़ी में गिरफ्तार किया है.पश्चिम बंगाल में जिस प्रकार ममता बनर्जी ने बीजेपी का सफाया किया है उसके बाद से वहाँ पर भी केंद्रीय जांच एजेंसियों की सक्रियता बढ़ी है. झारखण्ड का ताजा मामला भी इसी प्रकार का था.केंद्रीय जांच एजेंसियों की भुमिका हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है. यूपीए के समय सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को केन्द्र सरकार का तोता तक कहा था. ठीक उसी तरह आज भी केंद्रीय जांच एजेंसियों को सरकार बदले और दबाव की राजनीति के लिए इस्ते माल कर रही है.चुंकि बीजेपी विपक्ष मुक्त देश की बात करती है और उसने केंद्रीय जांच एजेंसियों वाले दबाव माडल को अपना कर काफी हद तक सफलता भी हासिल की है. ताजा उदाहरण महाराष्ट्र का है, अब इसी माडल को पूरे देश में अपना कर बदले और दबाव की राजनीति के ज़रीये विपक्ष को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है. इस प्रकार की कार्यवाही से ना केवल देश का जांच एजेंसियों से भरोसा उठता है बल्कि एक गलत रिवायत भी कायम होती है, साथ ही ये लोकतंत्र को कमज़ोर भी करता है.(मुहम्मद फ़ैज़ान ने ये आर्टिकल कलाम रीसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)