इमरान अहमद: छात्र पत्रकारिता सह जनसंचार विभाग मानू हैदराबाद
उसने कलम उठाई थी सच के लिए, उसने बात की थी सच के लिए। लेकिन इस दौर में यही जुर्म हो गया। हत्यारों ने वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश के शरीर पर तीन गोलियां दाग दीं। कलम चलाने वाली महिला पत्रकार गौरी लंकेश का कसूर था कि वो लिखती थीं, बोलती थीं। लेकिन कुछ लोगों को उनका लिखना रास नहीं आया। लिहाज़ा कलम चलाने का खामियाजा उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा था। वर्ष 1962 में जन्मीं गौरी लंकेश कन्नड़ पत्रकार और कन्नड़ साप्ताहिक टैबलॉयड ‘लंकेश पत्रिका’ के संस्थापक पी० लंकेश की बेटी थीं।उनकी बहन कविता और भाई इंद्रजीत लंकेश फिल्म और थियेटर में काम करते हैं। पत्रकारिता से जुड़ी होने के कारण गौरी की कन्नड़ और अंग्रेजी भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘संडे’ मैग्जीन में संवाददाता के रूप में काम करने के बाद उन्होंने बेंगलूरू में रहकर मुख्यता कन्नड़ में पत्रकारिता करने का निर्णय किया। साल 2000 में जब उनके पिता पी. लंकेश की मृत्यु हुई तो उन्होंने अपने भाई इंद्रजीत के साथ मिलकर पिता की पत्रिका ‘लंकेश पत्रिका’ का कार्यभार संभाला। उन्हें निर्भीक और बेबाक पत्रकार माना जाता था। वह कर्नाटक की सिविल सोसायटी की चर्चित चेहरा थीं। गौरी कन्नड़ पत्रकारिता में एक नए मानदंड स्थापित करने वाले पी. लंकेश की बड़ी बेटी थीं। गौरी लंकेश कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कॉलम लिखती थीं गौरी लंकेश के पत्रिका में विज्ञापन नहीं लिया जाता था। उस पत्रिका को 50 लोगों का एक ग्रुप चलाता था।इस पत्रिका के ज़रिए उन्होंने ‘कम्युनल हार्मनी फ़ोरम’ को काफी बढ़ावा दिया।गौरी ने लेखिका और पत्रकार राणा अय्यूब की किताब ‘गुजरात फ़ाइल्स’ का कन्नड़ में अनुवाद किया था।राणा अय्यूब ने बीबीसी संवाददाता कुलदीप मिश्र को बताया था की गौरी को पिछले कुछ सालों से श्रीराम सेना जैसी दक्षिणपंथी विचारधारा वाले संगठनों से कथित तौर पर धमकियां मिल रही थीं। बीजेपी के एक नेता ने उनके ख़िलाफ़ मानहानि का दावा भी किया था।राणा अय्यूब कहती हैं कि मैं उनके लिए ख़ौफ़ में रहती थी क्योंकि उनके ख़िलाफ़ केस फ़ाइल हुआ था और अभी-अभी उनके नाम पर वॉरेंट जारी हुआ था। मुझे डर लगता था कि उन्हें और ऐसे काम करने चाहिए या नहीं। उनकी हत्या उन्हीं लोगों का काम है जो गौरी लंकेश की आवाज़ से डरते थे।राणा का कहना है बैंगलोर में या कहें देश में वो अकेली महिला थीं जिनकी आवाज़ दक्षिणपंथी ताकतों के ख़िलाफ़ उठ रही थी और उनकी हत्या का काम उन्हीं का हो सकता है।साल 2005 में इस मैग्जीन में गौरी की सहमति से पुलिस पर नक्सलवादियों के हमला करने से संबंधित एक रिर्पोट छपी। बाद में 13 फरवरी 2005 को पत्रिका के मुद्रक प्रकाशक इंद्रजीत ने नक्सलियों का समर्थन करने का आरोप लगाकर वो रिर्पोट वापस ले ली। इसके बाद 15 फरवरी को इंद्रजीत ने पत्रकार वार्ता बुलाकर गौरी पर पत्रिका के जरिए नक्सलवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। अपने भाई और पत्रिका के प्रोपराइटर तथा प्रकाशक इंद्रजीत से मतभेद के बाद उन्होंने लंकेश पत्रिका के संपादक पद को छोड़कर 2005 में कन्नड टैबलॉयड ‘गौरी लंकेश पत्रिका’ की। गौरी ने साल 2017 में भाजपा के नेताओं के खिलाफ एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसके बाद से उन्हें काफी परेशान होना पड़ा। नेताओं ने गौरी के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज किया और उन्हें 6 महीने की जेल भी हुई।बताया जाता है कि 2015 और 2016 में चार से अधिक बार गौरी लंकेश बस्तर के जंगलों में दाखिल हुई थीं। वहां वह किनसे मिलीं इसकी पुष्ट जानकारी नहीं है। हालांकि गौरी लंकेश आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार और मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर बस्तर गई थीं। ये भी कहा जा रहा है कि गौरी लंकेश आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में नक्सलियों से मिलने के लिए बस्तर जाती थीं। हर दौरे पर गौरी लंकेश ने तीन से चार दिन जंगल के भीतर बिताए थे। इस दौरान वह स्थानीय पुलिस और सामाजिक कार्यकार्ताओं से दूर ही रहती थीं। आत्मसमर्पण को लेकर नक्सलियों की सेंट्रल कमिटी ने कई बार गौरी लंकेश से चर्चा की थी। शीर्ष नक्सली नेताओं को शक था कि गौरी लंकेश नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए न केवल उकसाती थीं, बल्कि पुलिस और नक्सलियों के बीच आत्मसमर्पण को लेकर माहौल भी तैयार करती थीं। तेलंगाना के गठन के बाद आधा दर्जन से ज्यादा नक्सलियों के आत्मसमर्पण को लेकर नक्सलियों की सेंट्रल कमिटी गौरी लंकेश से नाराज चल रही थी ऐसी भी खबर थी। गौरी लंकेश को कर्नाटक में पत्रकारिता में साहस की आवाज माना जाता था। हत्या से कुछ घंटे पहले गौरी लंकेश अपने फेसबुक वाल पर पांच सितंबर 2017 को एक कार्टून पोस्ट किया गया था। इस पोस्ट में कार्टून में राजा के कपड़े पहना एक शख्स जनेऊ पहने दूसरे शख्स को लटका रखा है। दूसरा शख्स जो ब्राह्मण की वेशभूषा में है वो उसके नीचे कूड़ादान रखा है। देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राजा के कपड़े पहने शख्स उस ब्राहम्ण को कूड़ेदान में डालने जा रहा है। साथ में एक लाइन भी ऊपर लिखी है- “स्वच्छ केरल, हैप्पी ओनम”। जिसके बाद ये कहा जाने लगा कि गौरी केरल में आरएसएस के लोगों के साथ हुई हिंसा का माखौल उड़ा रही थीं और असवंदेनशीलता बरत रही थीं और संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या पर ‘स्वच्छ केरल’ का संदेश प्रसारित कर रही थी। इसके बाद इसके समर्थन में भी कुछ पोस्ट किए गए और कहा गया कि ये जातिवाद प्रथा पर चोट करने वाला पोस्ट था न कि संघ कार्यकर्ताओं से जुड़ा। लेकिन इसके कुछ ही घंटे बाद बेंगलुरु में आधी रात को ‘फायर ब्रांड’ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई उनकी हत्या उनके आवास के बाहर हुई।55 साल की दुबली पतली गौरी की शाम को अपने ही घर में थी। जब हत्यारों ने उन पर गोलियां बरसा दी। सात गोलियां चली जिनमें से तीन गोलियां गौरी को लगी और कलम चलाने वाले हाथ कि जुंबिश खत्म हो गई।खुलकर अपनी कलम चलाने वाली लंकेश की मौत से पत्रकारिता जगत सन्न रह गया। उनकी हत्या के विरोध में पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण सभी पत्रकार सड़क पर आ गए। देशभर के पत्रकारों के जुबान पर बस यही बात थी कि गौरी लंकेश की हत्या अभिव्यक्ति की आजादी पर सीधा-सीधा हमला है।गौरी लंकेश की हत्या क्यों हुई – गौरी लंकेश के बारे में लेखक मंगलेश डबराल ने बीबीसी से कहा, की उनकी हत्या यक़ीनन विचारधारा के कारण हुई है. वो पिछले दो साल से दक्षिणपंथी ताकतों के निशाने पर थीं. और अंतत वो उनकी हत्या करने में सफल हुए.मंगलेश डबराल कहते हैं की अपने पिता पी० लंकेश की तरह ही गौरी भी एक निर्भीक पत्रकार थीं। कन्नड़ पत्रकारिता और साहित्यिक पत्रकारिता में उनकी ‘लंकेश पत्रिका’ की प्रमुख भूमिका रही।मंगलेश बताते हैं कि पिछले दो सालों से उनको अनेक तरह की धमकियां दी जा रही थीं। वो कहते हैं कि गौरी ने बार-बार लिखा कि मैं एक सेकुलर देश की इंसान हूं और मैं किसी भी तरह की धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ हूं। वो कहते हैं कि कर्नाटक में बहुत जल्दी चुनाव होने वाले थे इस कारण वहां दक्षिणपंथी शक्तियां और फ़ासिस्ट चरमपंथी शक्तियां बहुत सक्रिय हो चुकी थीं।संघ परिवार यानि आरएसएस के लोग किसी भी तरह से सत्ता हथियाना चाहते हैं। लोगों को डराना-धमकाना और अपना आतंक पैदा करना और लोगों को चुप कराने की कोशिश करना उसका एक तरीका है।मंगलेश बताते हैं ‘लंकेश पत्रिका’ काफ़ी लोकप्रिय थी और उसका समाज पर एक असर था. उस असर को मिटाने के लिए उन ताकतों को गौरी लंकेश को ही मिटाना पड़ा.मंगलेश डबराल कहते हैं की इससे पहले वहां कलबुर्गी की हत्या हुई थी। नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पनसारे जी की जो हत्या हुई, पता चल रहा है कि उनको मारने का तरीका भी एक जैसा ही है। कई संस्थाओं का नाम सामने आया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उनका आरोप है कि ‘क्षेत्रीय स्तर पर कई ताकतें सर उठा रही हैं और इन्हें समर्थन, प्रश्रय मिला हुआ है। अनेक बार इन हत्याओं के सिलसिले में सनातन संस्था का नाम आया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।वो कहते हैं इसके उलट हाल में गोवा में हिंदू सम्मेलन हुआ जिसमें सनातन संस्था ने शिरकत की। यह साफ है कि उन्हें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन मिला हुआ है।गौरी लंकेश को दक्षिणपंथी हिंदू अतिवाद के खिलाफ सच बोलने, लिखने और महिलाओं के अधिकारों के लिए अभियान चलाने और जाति आधारित भेदभाव का विरोध करने के लिए उन्हें अन्ना पोलितकोवस्काया पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । ये सम्मान पाने वाली भारत की पहली महिला पत्रकार थीं।गौरी लंकेश के उत्कर्ष पत्रिकारिता और उनके सम्मान में उनके नाम पर गौरी पेन की पुरस्कार की घोषणा की गई है और ये पुरस्कार पाने वाले भारत के जाने माने पत्रकार रवीश कुमार हैं ।ये चिंता की बात है कि हमारे समय की सत्ताधारी और राजनीति इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाली ताकतों के सर पर हाथ रखे हुए है।(इमरान अहमद ने ये आर्टिकल कलाम रिसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)