मुहम्मद फ़ैज़ान : छात्र पत्रकारिता सह जनसंचार विभाग मानू हैदराबाद
“प्यारे भाइयो! मैं जो कुछ कहूँ, ध्यान से सुनो. ऐ इंसानो! तुम्हारा रब एक है. अल्लाह की किताब और उसके रसूल स. की सुन्नत को मज़बूती से पकड़े रहना. लोगों की जान-माल और इज़्ज़त का ख्याल रखना, ना तुम लोगो पर ज़ुल्म करो, ना क़यामत में तुम्हारे साथ ज़ुल्म किया जायेगा. कोई अमानत रखे तो उसमें ख़यानत न करना. ब्याज के क़रीब भी न फटकना. किसी अरबी किसी अजमी (ग़ैर अरबी) पर कोई बड़ाई नहीं, न किसी अजमी को किसी अरबी पर, न गोरे को काले पर, न काले को गोरे पर,प्रमुखता अगर किसी को है तो सिर्फ तक़वा(धर्मपरायणता) व परहेज़गारी से है, अर्थात् रंग, जाति, नस्ल, देश, क्षेत्र किसी की श्रेष्ठता का आधार नहीं है.बड़ाई का आधार अगर कोई है तो ईमान और चरित्र है.तुम्हारे ग़ुलाम, जो कुछ ख़ुद खाओ, वही उनको खिलाओ और जो ख़ुद पहनो, वही उनको पहनाओ. अज्ञानता के तमाम विधान और नियम मेरे पाँव के नीचे हैं. इस्लाम आने से पहले के तमाम ख़ून खत्म कर दिए गए.(अब किसी को किसी से पुराने ख़ून का बदला लेने का हक़ नहीं) और सबसे पहले मैं अपनेख़ानदान का ख़ून–रबीआ इब्न हारिस का ख़ून– ख़त्म करता हूँ (यानि उनके कातिलों को क्षमा करता हूँ). अज्ञानकाल के सभी ब्याज ख़त्म किए जाते हैं और सबसे पहले मैं अपने ख़ानदान में से अब्बास इब्न मुत्तलिब का ब्याज ख़त्म करता हूँ. औरतों के मामले में अल्लाह से डरो. तुम्हारा औरतों पर और औरतों का तुम पर अधिकार है.औरतों के मामले में मैं तुम्हें वसीयत करता हूँ कि उनके साथ भलाई का रवैया अपनाओ.ऐ लोगों याद रखो, मेरे बाद कोईनबी (ईश्वर का सन्देश वाहक)नहीं और तुम्हारे बाद कोई उम्मत (समुदाय) नहीं.अत: अपने रब की इबादत करना,प्रतिदिन पाँचों वक़्त की नमाज़ पढ़ना. रमज़ान के रोज़े रखना,खुशी-खुशी अपने माल की ज़कात देना,अपने पालनहार के घर का हज करना और अपने हाकिमों का आज्ञापालन करना.ऐसा करोगे तो अपने रब की जन्नत में दाख़िल होगे.ऐ लोगो! क्या मैंने अल्लाह का पैग़ाम तुम तक पहुँचा दिया?”ये शब्द थे “हज़रत मोहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम )” के जब वो हज के बाद अपना आखरी खुत्बा(भाषण) दे रहे थे. ये वो ऐतिहासिक खुत्बा था जिसने पूरी मानवता का मार्गदर्शन किया. जिसने पूरी मानवता को मानवीय मूल्य सिखाए. क्योंकि इससे पहले किसी ने भी इस प्रकार मानवाधिकार, महिलाओं और गुलामों (दासों) के अधिकार की बात की नहीं की थी. खास कर उस अरब में जहाँ लड़की पैदा होने पर उसे ज़िन्दा दफ्न कर दिया जाता रहा हो. जहाँ गुलामों(दासों) के साथ जानवरों जैसा सुलूक किया जाता हो. जहाँ एक क़त्ल(हत्या) का बदला कई पीढ़ीयों तक लेने की परंपरा हो. ऐसे समय और माहौल में इस प्रकार का संबोधन मानवता को नई राह दिखाने वाला और पूरी दुनिया में न्याय, समानता और सामाजिक न्याय को स्थापित करने वाला था. हज़रत मोहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की पैदायिश(जन्म) 571 ईस्वीं को शहर मक्का में हुई. आप सल्ल. अलै. बचपन से ही अल्लाह की इबादत में लगे रहते थे. आप बचपन से ही सच्चे और ईमानदार थे इसलिए सारे लोग आप को सादिक और अमीन कहते थे. हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु तअ़ला अ़लैहि वसल्लम जब जवानी के आलम में पहुंचे तो बचपन की तरह आपकी जवानी भी आम लोगों से निराली थी.-आपका शबाब मुजस्सम हया और चाल-चलन इज्ज़त का अनोखा नमूना था. आपकी तमाम जिंदगी बेहतरीन अखलाक़ व आदतों का खजाना थी. सच्चाई, दयानत-दारी, वफादारी, वक्त की पाबंदी, बड़ों की इज्जत, छोटो से प्यार, रिश्तेदारों से मोहब्बत, रहम व सखावत, कौम की खिदमत, दोस्तों से हमदर्दी, अज़ीजों की गमख्वारी, गरीबों और मुफलिसों की खबर रखना, दुश्मनों के साथ नेक बर्ताव, खुदा की दी हुयी नेमतों को बरकरार रखना व उनका नुकसान ना पहुंचाना, गरज की तमाम खसलतों और अच्छी-अच्छी बातों में आप इतनी बुलंद मंजिल पर पहुंचे हुए थे कि दुनिया के बड़े से बडे इंसानों के लिए वहा तक रसाई तो क्या इसका तसब्बुर भी मुमकिन नही है.ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया में मज़दूरों के अधिकार को बात ज़ोर-शोर से होती है ऐसे में हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) का वो कथन याद करना चाहिए जिसने पहली बार मजदूरों के लिए कहा कि “मज़दूर की मज़दुरी उसका पसीना सूखने से पहले दे दो”. इससे पहले लोग दासों को इंसान मानने के लिए तैयार नहीं थे उनके अधिकार तो दूर की बात है.आज जब पूरी दुनिया मानवाधिकार पर बहस करती है लेकिन हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) ने आज से 1400 साल पहले ना सिर्फ मानवाधिकार की बात की बल्कि जानवरों और पेड़ पौधों के अधिकार की बात भी की और कहा कि जंग(लड़ाई) के दौरान हरे पेड़ पौधों को नुक्सान न पहुँचाओं. औरतों, बुढ़ों-बच्चों और जो नहीं लड़ना चाहते हों उनको नुक्सान न पहुँचाओं”. इससे पहले जंग को लेकर नियम कानून इस प्रकार नहीं था. आज पूरी दुनिया में युद्ध के नियम हैं वो इस्लाम से प्रभावित हैं.इस प्रकार हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) के नेतृत्व में अरब में एक ऐसी क्रांति की शुरूआत हुई जिसने पूरी मानवता को सत्य, न्याय, समानता, बंधुता, सामाजिक न्याय का न केवल पाठ पढाया बल्कि इसने इसे व्यवहारिक रुप से स्थापित भी किया है.(ये आर्टिकल मुहम्मद फ़ैज़ान ने कलाम रीसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)