आज कल सब से आसान है मुसलमानों की जान लेना जिसकी कोई कीमत नहीं है. चाहे किसी भी प्रदेश में सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की गोली पुलिस की हो या किसी हिन्दू आतंकी की सब का निशाना और टारगेट सिर्फ एक होता है और वो है मुसलमान. पूरा पुलिस महकमा, सारे प्रशासनिक अधिकारीयों की मौजूदगी में भेड़ियों की भीड़ ने 14 सितम्बर 2011 को राजस्थान में भरतपुर से 90 किलोमीटर दूर गोपालगढ़ नाम के छोटे-से कस्बे के मस्जिद में घुस कर 10 मुसलमानों का बेरहमी से क़त्ल कर दिया. गोपालगढ़ भले ही हरियाणा तक फैले मेव प्रभाव वाले क्षेत्र का हिस्सा हो, लेकिन इस कस्बे में गुर्जरों की तादाद ज्यादा है. 14 सितंबर, 2011 को हुए इस खूनी खेल पहले इन दोनों पशुपालक समुदायों के बीच कई बार झड़पें हो चुकी थीं. विवाद की जड़ दो एकड़ की सरकारी जमीन थी. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि कोई दो दशक पहले एक पटवारी ने मस्जिद के बगल की जमीन को मेवों को कब्रिस्तान के लिए हस्तांतरित कर दी थी, यानि मस्जिद को दे दिया था, और इसके बावजूद गुर्जरों ने इसे अदालत में में चुनौती दे रखी थी. फिर भी जुलाई 2011 तक गुर्जर इस पर अपने मवेशी चराते रहे दोनों पक्ष अदालत में गए 13 सितंबर को गोली चलाए जाने से एक दिन पहले गोपालगढ़ में दो अफवाहों को लेकर तनाव फैल गया. एक अफवाह यह थी कि गुर्जरों ने एक मौलवी का हाथ काट दिया है और दूसरी यह कि पुलिस ने एक मेव बदमाश को हिरासत में मार डाला है. इस पर 13 सितंबर को अदालत परिसर में तारीख भुगतने आए दोनों समुदायों के बीच हाथापाई हो गई. उसी शाम मस्जिद के केयरटेकर अब्दुल गनी की सेलफोन की दुकान पर लड़की छेड़ऩे के इल्जाम में एक गुर्जर लड़के की पिटाई हो गई. कुछ ही घंटों बाद गुर्जरों के लड़कों ने अब्दुल गनी, उनके दो बेटों और वहां से गुजर रहे मस्जिद के इमाम मौलवी रशीद की पिटाई कर दी.गोपालगढ़ की घटना के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 13 सितंबर की देर रात कोई एक बजे कानून और व्यवस्था को लेकर अधिकारियों के साथ बैठक की. उसमें उन्होंने पुलिस को निर्देश दिए कि वह शांति और भाईचारे को भंग करने के प्रयासों को लेकर बाखबर रहे और ऐसे लोगों पर कारवाई करें.अगले दिन, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बैठक के नौ घंटे बाद, यानि 14 सितंबर की दोपहर में आसपास के इलाकों से मेव मस्जिद में इकट्ठे हुए और उन्होंने मौलवी की पिटाई किए जाने पर गुर्जरों के खिलाफ शिकायत करने का फैसला किया. फिर उसके बाद 400 गुर्जर भी उस जगह पर पहुंच गए और मुसलमानों पर पर गोलियां चलाईं. भरतपुर में अधिकांश गुर्जर परिवारों के पास कानूनी या गैर-कानूनी ढंग से हासिल किए गए हथियार हैं.इस गोली की घटना के बाद भरतपुर के जिला कलेक्टर कृष्ण कुणाल और पुलिस अधीक्षक हिंगलाज दान ने दोनों समुदायों के नेताओं को बुलाकर सुलह कराई और गुर्जरों पर दबाव डाला कि शाम चार बजे तक इमाम से माफी मांगें.सुलह जल्दी ही टूट गई और हथियारबंद गुर्जरों की भीड़ मस्जिद की तरफ बढऩे लगी और रास्ते में पडऩे वाली मेव मुसलमानों की दुकानों में आग लगा दी, और दंगा शुरू हो गया.शाम तक दंगा रोकने वाली पुलिस की गाड़ी मस्जिद पर पहुंच गई. उसमें भरतपुर के जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौजूद थे. उनके पीछे-पीछे हथियारबंद पुलिस वाले भी थे. सौ से भी कम मुसलमान मस्जिद में नमाज अदा कर रहे थे और बाकी भी नमाज पढऩे के लिए ही मस्जिद की ओर बढ़ रहे थे. 65 वर्षीय हाजिर खान बताते हैं कि “मै और मेरा बेटा मौलवी खुर्शीद राजस्थान में भरतपुर से 90 किलोमीटर दूर गोपालगढ़ नाम के छोटे-से कस्बे में मस्जिद के भीतर नमाज़ पढ़ रहे थे. तभी अचानक राजस्थान पुलिस की दंगा रोकने वाली नीली गाड़ी धड़धड़ाती हुई आई. साथ में हथियारबंद पुलिस वाले थे मस्जिद में सिर्फ निहत्थे लोग थे. शाम 6 बजे के करीब पुलिस मस्जिद में घुसी और फायरिंग शुरू कर दिया.” खान कहते हैं, “गोलियों की बौछार ने मस्जिद को छलनी कर दिया. एक गोली मेरे बेटे के चेहरे को छेद गई. पुलिस की फायरिंग ने गुर्जरों की भीड़ के मस्जिद में घुसने वहां तोड़फोड़ मचाने और मुस्लिम को मारने का रास्ता साफ कर दिया था. मैं अपनी जान बचाने के लिए झुक गया थोड़ी देर की शांति के बाद बख्तरबंद गाड़ी वापस चली गई, लेकिन बंदूकें फिर गरजीं.” दो दिन बाद खान को अपने बेटे की लाश भरतपुर के अस्पताल के मुर्दाघर में मिली. लाश जलकर लोंदा हो गई थी, उसके हाथ-पैर गायब थे, खान को बताया गया कि यह लाश मस्जिद से दो सौ गज दूर दूर ईदगाह के कुएं में दो और लाशों के साथ 15 सितंबर की शाम को मिली थी. बेटे की पहचान दांतों की डीएनए जांच से हुई. उसका कहना है कि चेहरे के जिस हिस्से में गोली लगी थी, उसे काट दिया गया था, शायद इसलिए ताकि कोई सबूत न मिले. लेकिन इंडिया टुडे के पास मौजूद पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक तीनों को जिंदा जलाया गया था. हाजिर खान बताते हैं कि ‘उस मनहूस दिन पांच लोग और मरे और ये पांचों स्थानीय मुसलमान मेव समुदाय के थे’. उनकी लाशें या तो जली हुई थीं या उन पर गोलियों और जलने के निशान थे. दो लोगों की मौत बाद में अस्पताल में हुई. वहीं इस पूरे कत्ले आम के एक और गवाह 35 वर्षीय मेव आत्मादीन सैन मीडिया को बताया कि “पुलिस गुर्जरों की भीड़ के साथ मस्जिद की तरफ बढ़ गई. बख्तरबंद गाड़ी अलग-अलग जगहों से हवा में गोलियां चला रही चला रही थी और उसकी आड़ में पुलिसवालों ने सशस्त्र गुर्जरों के साथ मस्जिद में प्रवेश किया”. वही एक अधिकारी ने बताया, ”वरिष्ठ अधिकारी चूंकि थाने में ही रुके रह गए, इसलिए मस्जिद में जाने वाले पुलिसवाले भी घटनास्थल से भाग गए और निहथे मुस्लिम मेवों को सशस्त्र गुर्जरों के रहमोकरम पर छोड़ गए. जो घायल वहां से भाग निकलने की कोशिश कर रहे थे, गुर्जरों और पुलिस दोनों ने उन्हें पकड़कर घसीटा.” आत्मादीन का कहना है, मेरे बगल में खड़े तीन पुलिसवालों के साथ मैंने देखा कि कुछ घायलों को घसीटकर गोबर के ढेर पर और उस भूसे में फेंका जा रहा है जिसमें आग लगाई जा चुकी थी, पुलिस गोलीबारी में तीन व्यक्ति मारे गए जबकि बाकी गुर्जरों की भीड़ के आने के बाद मारे गए. मुख्य सचिव एस. अहमद और पुलिस महानिदेशक एच.सी. मीणा ने 18 सितंबर को दावा किया था कि अधिकतर लोग तेज धारवाले हथियारों से और उन हथियारों से घायल हुए थे, जिन्हें लेकर पुलिस नहीं चलती. अहमद ने बताया, प्रशासन की तरफ से कोई लापरवाही नहीं बरती गई बल्कि इसके विपरीत, पुलिस के हस्तक्षेप से बहुत-से लोगों की जानें बचाई जा सकीं. वहीं स्थानीय कांग्रेस विधायक ज़ाहिदा खान का आरोप है कि “पुलिस के गोली चलाए जाने से पहले किसी की मौत नहीं हुई थी. पुलिस ने भीड़ को एक खास वर्ग पर हमले के लिए उकसाया था पुलिस अधिकारी उस वक्त सिर्फ मुकदर्शक बनकर खड़े रहे और मुस्लिम का कत्लेआम होने दिया और इस तरह से 10 मुसालमानों का बेरहमी से पुलिस और हिन्दू गुर्जरों ने कत्ल कर दिया, जबकि जुलाई में भरतपुर से खुफिया जानकारी भेजी गई थी की जमीन को लेकर दोनों समुदायों में टकराव होने वाला है”इन हत्याओं ने प्रदेश की गहलोत सरकार और कांग्रेस, दोनों को हिला दिया था. 24 सितंबर को मुख्यमंत्री गोपालगढ़ गए और आनन-फानन में सीबीआइ जांच के साथ-साथ राजस्थान हाइकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस सुनील कुमार गर्ग से न्यायिक जांच कराने का आदेश दे दिया. स्थानीय पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर का भी तबादला कर दिया गया. सीबीआइ ने अधिकारियों के खिलाफ दर्ज 11 मामलों की जांच करने से इस आधार पर मना कर दिया कि गोली चलाने का आदेश कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए दिया गया था. पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की राष्ट्रीय सचिव और उस स्थान का दौरा करने वाले दल की सदस्य काईता श्रीवास्तव सवाल उठाती हैं; ‘पुलिस एक तरफ के लोगों को घिर गए लोगों की हत्या करने और गोलीबारी के बाद जले हुए शवों को कुएं में फेंक देने की इजाजत कैसे दे सकती है’. सीबीआइ के अधिकारियों ने 43 फरार संदिग्धों के लिए गोपालगढ़ और आसपास के गांवों का चप्पा-चप्पा छान मारा. गनी सहित 19 दूसरे लोगों को गिरफ्तार किया गया. स्थानीय कांग्रेस विधायक ज़ाहिदा खान और बीजेपी की अनिता सिंह को सितंबर 2013 के शुरू में ही अग्रिम जमानत मिल गई. हालांकि सीबीआइ इन दोनों पर पुलिस के काम में रुकावट डालने और भीड़ को भड़काने के आरोपों में गिरफ्तारी की मांग कर रही थी. दोनों का दावा है कि स्थानीय अधिकारियों ने स्थिति शांत करने के लिए उन्हें बुलाया था. 8-10 मुसलमानों को इस मामले में अभियुक्त सीबीआई ने बनाया. उनकी ज़मानत कराने के लिए ही मुस्लिम पैरोकारों ने कोशिश की है. 10-12 लोग हिन्दू पक्ष के भी मुजरिम है जिन पर केस चल रहा है. ये 10-12 लोग ही असल साजिशकर्ता और क़ातिल हैं.सीबीआई ने मुसलमानों की 10 एफआईआर में फाइनल रिपोर्ट लगा दी. एफआईआर दर्ज करा देने के बाद सीबीआई इन्वेस्टीगेशन के दौरान सारे लीगल नेता और एक्टिविस्ट सोते रहे. मेवात के लीगल एक्टिविस्ट लोगों ने केस की पैरवी असल अपराधियों को सज़ा दिलाने के लिए नहीं की. ये केस राजनीतिक लोगों की भेंट चढ़ गया. और हालत ये हुई है.के ये केस 12 साल से सीबीआई कोर्ट में लंबित है।हमीं को कातिल कहेगी दुनिया. हमारा ही कत्लेआम होगा(इमरान अहमद ने ये आर्टिकल कलाम रिसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)