मुहम्मद फ़ैज़ान: छात्र पत्रकारिता सह जनसंचार विभाग मानू हैदराबाद
लोकततंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसके अन्तर्गत जनता अपनी स्वेच्छा से निर्वाचन में आए हुए किसी भी उम्मीदवार को मत देकर अपना प्रतिनिधि चुन सकती है.अब्राहम लिंकन के शब्दों में…”लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है.”वहीं बाबा साहब अम्बेडकर के शब्दों में कहें तो…”लोकतंत्र का अर्थ है, एक ऐसी जीवन पद्धति जिसमें स्वतंत्रता, समता और बंधुता समाज-जीवन के मूल सिद्धांत होते हैं.”लोकतंत्र’ शब्द का अंग्रेजी पर्याय ‘डेमोक्रेसी’ है. जिसकी उत्पत्ति ग्रीक मूल शब्द ‘डेमोस’ से हुई है. डेमोस का अर्थ होता है- ‘जन साधारण’ और इस शब्द में ‘क्रेसी’ शब्द जोड़ा गया है जिसका अर्थ ‘शासन’ होता है. यानी जनता का शासन.भारत में लोकतंत्र:-भारत विश्व का सबसे विशालकाय लोकतंत्र है. भारत में लोकतंत्र का इतिहास काफी पुराना है. भारत में वर्तमान संसद की तरह ही प्राचीन समय में परिषदों का निर्माण किया गया था, जो वर्तमान संसदीय प्रणाली से मिलती-जुलती थी. गणराज्य या संघ की नीतियों का संचालन इन्हीं परिषदों द्वारा होता था.उस समय के सबसे प्रसिद्ध गणराज्य लिच्छवि की केंद्रीय परिषद में 7,707 सदस्य थे वहीं यौधेय की केंद्रीय परिषद के 5,000 सदस्य थे.भारत 1947 में अपनी आजादी के बाद एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया था. उसके बाद भारत के नागरिकों को वोट देने और अपने नेताओं का चुनाव करने का अधिकार मिला.भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रुप में भी जाना जाता है. हमारे देश का लोकतंत्र संप्रभु, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक गणराज्य सहित पांच लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर कार्य करता है.आज के समय में हमारे देश को ना सिर्फ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रुप में जाना जाता है, बल्कि कि इसके साथ ही इसे विश्व के सबसे सफल लोकतंत्रों में से एक लोकतंत्र के रुप में भी जाना जाता है. पिछले 75 सालों में देश ने काफी प्रगति की है, काफी विकास किया है. देशवासियों का जीवन-स्तर पहले से बेहतर हुआ है. सभी धर्मों, जातियों और वर्गों के लोग एक ही समाज में एक साथ रहते हैं. कृषि, औद्योगिक विकास, शिक्षा, चिकित्सा, अंतरिक्ष विज्ञान जैसे कई क्षेत्रों में भारत ने कामयाबी हासिल की है.भारतीय लोकतंत्र के सामने चुनौतियाँआजादी के 75 सालों के बाद भारतीय लोकतंत्र के सामने कई चुनौतियां हैं.संसदीय विचार-विमर्श की कमी:-कुछ दिनों पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमन्ना ने एक कार्यक्रम में कहा कि, ‘दुख की बात है कि देश विधायी प्रदर्शन की गुणवत्ता में गिरावट देख रहा है.’ उन्होंने कहा कि कानूनों को व्यापक विचार-विमर्श और जांच के बिना पारित किया जा रहा है.संसद में व्यापक विचार-विमर्श किसी भी लोकतंत्र को स्वस्थ रखता है. पिछले कुछ सालों से संसद में विचार-विमर्श के बिना ही विधेयको को पारित कराने की एक परंपरा स्थापित हुई है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.हॉर्स ट्रेडिंग:-राजनीति में इस शब्द का कोई औचित्य नहीं होता है, लेकिन पिछले कुछ समय में इसका इस्तेमाल बढ़ा है. जब राजनीति में नेता दल बदलते हैं, या फिर किसी चालाकी के कारण कुछ ऐसा खेल रचा जाता है कि दूसरी पार्टी के नेता आपका समर्थन कर दें तब राजनीति में इसे हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है. हाल ही के दिनों में जिस प्रकार गोवा, मणिपुर, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और कर्नाटक में राजनीतिक उथल-पुथल मची तो हॉर्स ट्रेडिंग के ही आरोप लगे. विपक्ष को लगातार खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है. भारत में पिछले कुछ सालों से हॉर्स ट्रेडिंग की परंपरा काफी बढ़ी है जो लोकतंत्र के लिए घातक है.विपक्ष को लगातार खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है. इसके अलावा भारत की लगभग 36 करोड़ आबादी अभी भी स्वास्थ्य, पोषण, स्कूली शिक्षा और स्वच्छता से वंचित है, दूसरी तरफ, देश का एक तबका ऐसा है जिसे किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है.विश्व असमानता रिपोर्ट के अनुसार, भारत की राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्से पर सिर्फ 1 फीसदी लोगों का कब्ज़ा है और यह असमानता लगातार तेज़ी से बढ़ रही है. अंतर्राष्ट्रीय अधिकार समूह की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के इस 1 फीसदी समूह ने देश के 73 फीसदी धन पर कब्ज़ा किया हुआ है.लैंगिक भेदभाव भी बहुत बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है. भारत में इस समय भी व्यापक लैंगिक असामानता है.लोकतंत्र का चौथा खंभा माने जाने वाले मीडिया की आज़ादी भी सवालों के घेरे में है. दरअसल, पेरिस स्थित गैर-सरकारी संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा जारी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स-2022में भारत पहले की तुलना में और नीचे उतर कर 150 वें स्थान पर अा गया है.इन 75 वर्षों में अन्य बातों के अलावा सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद और कट्टरवाद को भी प्रश्रय मिला. इसकी वज़ह से असहिष्णुता की प्रवृत्ति भी बढ़ी है. जातिवाद की जड़ें लगातार गहरी होती जा रही हैं. देश में लगातार सरकार से असहमत लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. राजनीतिक कारणों से लोगों को यूएपीए और एनएसए जैसे कानून के तहत जेलों में डाला जा रहा है. भारत में आजादी के इतने सालों के बाद भी जातिवाद का प्रभाव बाकी है. अभी कुछ दिनों पहले ही घड़े से पानी पीने के कारण एक दलित बच्चे की पिटाई की गई जिससे उसकी मृत्यू हो गई.क्या है हमारी ज़िम्मेदारी:-किसी भी लोकतंत्र को स्वस्थ रखने की ज़िम्मेदारी सर्वप्रथम नागरिको की होती है. हर वो तत्व जो लोकतंत्र को कमज़ोर करता हो नागरिको को उसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए. लोकतंत्र में विपक्ष की भुमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. एक ज़िम्मेदार और रचनात्मक विपक्ष ही लोकन्त्र को मज़बूत बना सकता है.इसके अलावा सामाजिक संगठनों और दबाव समूहों की भी महत्वपूर्ण भुमिका होती है किसी भी लोकतंत्र को जीवित और स्वस्थ रखने में. हम सब को आगे आना होगा लोकतंत्र को बचाने के लिए, भारत के गौरव को आगे बढ़ाने के लिए.(ये आर्टिकल मुहम्मद फ़ैज़ान ने कलाम रिसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)