आज 17 सितंबर 2022 को हमारे देश के प्रधानमंत्री 72 साल के हो गए हैं। पीएम मोदी के जन्मदिन पर बीजेपी हर बार की तरह इस बार भी 2 हफ्तों तक देशभर में तरह तरह के कार्यक्रम आयोजित करेगी। लेकिन क्या आप को पता है की हमारे मोदी जी साल में अपना दो जन्म दिन मनाते हैं। लोकसभा और गुजरात विधानसभा की वेबसाइटों और मोदी के चुनावी हलफनामों के मुताबिक मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को हुआ था, लेकिन एम.एन. उत्तरी गुजरात के विसनगर में कॉलेज ऑफ साइंस में “नरेंद्र कुमार दामोदरदास मोदी” को एक पूर्व-विज्ञान बारहवीं कक्षा में उनकी जन्म तिथि 29 अगस्त 1949 दर्ज है। लेकिन ये भी सच है की मोदी जी के 2 जन्म दिन की तरह उनका चेहरा और उनका चरित्र भी दो है। मोदी जी कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं। हम आप को आज मोदी जी के ऐसे ही कुछ कारनामों के बारे में बताएंगे जिसमें मोदी जी अपने भाषण और जुमले में कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं। जब मोदी 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने देश के नौजवानों से हर साल 2 करोड़ नौकरी का वादा किया था। मोदी जी के इसी जुमले के झांसे में आकर देश के नौजवानों ने मोदी जी जैम कर वोट दिया और उनको गुजरात की गद्दी से उठाकर दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया। लेकिन इसके बदले में मोदी जी ने देश के नौजवानों को क्या दिया? सिर्फ और सिर्फ बेरोज़गारी। “मोदी जी का देश के नौजवानों के साथ दोहरा चरित्र “आर्थिक शोध संस्थान सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के आंकड़ों के अनुसार बीते आठ साल के दौरान देश में बेरोजगारी दर में इजाफा देखने को मिला है। साल 2014 में यह 5.60 फीसदी थी। जबकि सीएमआईई के ताजा आंकड़े देखें तो 2022 में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.83 फीसदी पर पहुंच गई। आठ साल पहले केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार ने तब हर साल दो करोड़ युवाओं को नौकरी देने का वादा किया था। लेकिन बुधवार को सरकार ने संसद में जो आंकड़े पेश किए हैं, वे हक़ीक़त की दूसरी ही तस्वीर बयान करते हैं। ये जानकर हैरानी होती है कि सरकार इन आठ सालों में औसतन हर साल एक लाख युवाओं को भी सरकारी नौकरी नहीं दे सकी है। लोकसभा में सरकार के दिये आंकड़ों के मुताबिक मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने से लेकर अब तक अलग-अलग सरकारी विभागों में कुल 7 लाख 22 हजार 311 आवेदकों को सरकारी नौकरी दी गई है। सरकार ने हर साल के अनुसार इसका ब्यौरा दिया है,जिससे पता लगता है कि सबसे कम नौकरी 2018-19 में महज 38,100 लोगों को ही मिली, जबकि हैरानी की बात है कि उसी साल सबसे ज्यादा यानी 5 करोड़ 9 लाख 36 हजार 479 लोगों ने आवेदन किया था। हालांकि साल 2019 -20 में सबसे अधिक यानी 1,47,096 युवा सरकारी नौकरी हासिल करने में कामयाब हुए। सालाना दो करोड़ के दावे के उलट ये आंकड़े जाहिर करते हैं कि सरकार अपने दावे का महज एक फीसदी यानी हर साल दो लाख नौकरियां देने में भी नाकामयाब रही है। जबकि इन आठ सालों में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने वालों की संख्या बताती है कि देश में किस कदर बेरोजगारी है। इस दौरान कुल 22 करोड़ 6 लाख लोगों ने आवेदन किया था। सीएमआईई के प्रबंध निदेशक महेश व्यास के अनुसार बेरोजगारों की संख्या में सिर्फ 30 लाख की वृद्धि हुई है। जबकि महीने के दौरान लगभग 13 मिलियन नौकरियां चली गईं क्योंकि बाकी ने श्रम बाजार छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि चिंताजनक बात यह है कि जुलाई 2022 में वेतनभोगी कर्मचारियों के बीच 25 लाख नौकरियों में गिरावट देखी गई। आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में बेरोजगारी सबसे उच्चतम 30.6 फीसदी, राजस्थान में 29.8 फीसदी, असम में 17.2 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 17.2 फीसदी और बिहार में 14 फीसदी रही।ये तो था नौजवानों को दो करोड़ नौकरी देने का वादा लेकिन मोदी जी ने अपने दो जन्म दिन की तरह अपने दोहरे चेहरे और चरित्र को दिखाते हुए नौकरी देने बजाय नौजवानों से नौकरी ही छिन ली। “दलित और ओबीसी के साथ मोदी जी का दोहरा रवैया “2017 में एक प्रोग्राम में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मोदी जी ने कहा था हिंसा करने वालों से कहना चाहता हूं कि अगर आपको कोई समस्या है, अगर आपको हमला करना तो मुझ पर हमला करिए। मेरे दलित भाइयों पर हमला बंद करिए। अगर आपको गोली मारनी है तो मुझे गोली मारिए, लेकिन मेरे दलित भाइयों को नहीं। यह खेल बंद होना चाहिए। लेकिन मोदी जी इस करनी और कथनी में कितना फर्क ये हम आप आज बताएंगे और उनका दोहरा चरित्र बताएंगे। हम अक्सर समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि “दलितों का मंदिर में प्रवेश निषेध है।””दलित दूल्हे को नहीं करने दिया मंदिर में प्रवेश।””मूंछ रखने पर दबंगों ने की दलित की हत्या।” इत्यादि।26 मई 2022 को केंद्र में मोदी सरकार के 8 साल पूरे हुए। दलित परिप्रेक्ष्य से देखें तो इन आठ सालों में दलितों पर लगातार अत्याचार बढ़े हैं। दलित हत्याओं के मामले बढ़े हैं। दलित महिलाओं पर बलात्कार बढ़े हैं। जातिगत भेदभाव बढ़े हैं। धार्मिक आस्था या धार्मिक भावनाएं ‘आहत’ होने के नाम पर दलितों पर जुल्मो-सितम बढ़े हैं। चाहें राजस्थान में डंगावास में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा (2015), रोहित वेमुला (2016), तमिलनाडु में 17 साल की दलित लड़की का गैंगरेप और हत्या (2016), तेज़ म्यूज़िक के चलते सहारनपुर हिंसा (2017), भीमा कोरेगांव (2018) और डॉक्टर पायल तड़वी की आत्महत्या (2019), 2021 का हाथरस रेप कांड हो इन सब मामलों की पूरे देश में चर्चा हुई लेकिन सिलसिला फिर भी रुका नहीं । पहले लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी के दलित प्रोफ़ेसर रविकांत चंदन और अब दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर रतनलाल – इसका ताज़ा-तरीन उदाहरण हैं। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के विचारों से प्रभावित होकर संवैधानिक मूल्यों के साथ जब दलित गरिमा से, इज्जत से अपनी जिंदगी जीना चाह रहे हैं, तो मनुवादी मानसिकता वाले दबंग ये बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। अंबेड़कर से तो उन्हें इतनी चिढ़ है कि वे उनकी मूर्ति को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। इसका ताज़ा उदाहरण 26 मई 2022 का ही है। जब उत्तर प्रदेश के महोबा में बाबा साहब की मूर्ति तोड़ दी गई। गौरतलब है कि बाबा साहेब की मूर्ति तोड़ने की न तो ये पहली घटना है और न आखिरी। इसके अलावा कथित उच्च जाति के कुछ डोमिनेंट लोगों का ईगो इस बात को बर्दाश्त ही नहीं कर पाता कि कोई दलित उनके जैसी मूंछे रखें। ये वर्चस्वशाली लोग दलितों की हत्या करने से नहीं चूकते। दलित दूल्हा घोड़ी पर चढ़कर बरात लेकर दुल्हन के यहाँ जाए –ये भी इन्हें बर्दाश्त नहीं। दलित अधिक धन कमाए, अच्छा मकान बनवाए। रौब से रहे। बाइक से या कार से इनके सामने से गुजरे तो उसे नीचा दिखाने से लेकर, उस पर तरह-तरह के अमानवीय अत्याचार ही नहीं बल्कि उसकी हत्या तक कर देते हैं । एनसीआरबी के आंकड़ों से जो चौंकाने वाली बात सामने निकलकर आई है। 2014 से 2021 के दौरान जिन राज्यों में दलित उत्पीड़न के सबसे मामले दर्ज हुए, उन राज्यों में या तो बीजेपी भारतीय जनता पार्टी की सरकार है या फिर उसके सहयोगी की।राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 में औसतन हर घंटे पांच दलितों 5.3 के साथ अपराध हुए। अपराधों की गंभीरता को देखें तो इस दौरान हर दिन दो दलितों की हत्या हुई और हर दिन औसतन छह दलित महिलाएं (6.17) बलात्कार की शिकार हुईं । 2014 में अनुसूचित जाति के साथ अपराधों के 40,401 मामले,। 2015 में दलित अत्याचार के 38,670 मामले दर्ज हुए वहीं 2016 में यही आंकड़ा 40,801 का था। एनसीआरबी ने 2017 में हुए दलित अत्याचार से संबंधित आंकड़े जाहिर किए हैं। इसके मुताबिक 2017 में दलित अत्याचार के 43,200 मामले दर्ज हुए। वहीं जहां 2018 में 42,793 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2019 में 45,935 मामले सामने आए तो 2020 में 50,291 मामले दर्ज किए गए थे। साल 2019 की तुलना में इन अपराधों में 9.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। 2019 में एससी के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए कुल 45,961 मामले दर्ज किए थे। एनसीआरबी ने आगे कहा है कि साल 2020 में क्राइम रेट 22.8 प्रति लाख जनसंख्या से बढ़कर 25 प्रति लाख जनसंख्या हो गई थी। 2021 में देश भर में दलितों के खिलाफ 50,744 मामले दर्ज हुए थे. इसमें 13,146 मामले सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही सामने आए थे। जबकि साल 2020 में देश भर में 50,202 मामलों में 12,714 मामले यूपी में थे। वहीं साल 2019 में 45,876 मामलों में 11,829 मामले यूपी में दर्ज हुए थे। यानी कि साल 2020 से 2021 में दलितों के खिलाफ 423 व साल 2019 की अपेक्षा 1317 मामले अधिक सामने आए है। एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 में दलित महिलाओं के साथ यौन शोषण के 671 मामले दर्ज हुए, उनमें सबसे अधिक यूपी में 176 मामले हैं। जबकि साल 2020 में 132 मामले दर्ज हुए थे. साल 2021 में 198 दलितों की हत्या हुई है व साल 2020 में 214 हत्याएं हुई थी। साल दर साल इसमें बढ़ोत्तरी ही हो रही है। कहीं से भी ये नहीं कहा जा सकता कि दलित अत्याचार के मामले अब गुजरे जमाने की बात हो चुकी है । महात्मा गांधी के गुजरात तक में जो अब गुजराती अस्मिता की बात करते-करते थक चुके देश के प्रधानमंत्री का गृहराज्य भी है ‘जबरों’ ने दलितों पर अत्याचारों की जो ‘नई मिसालें’ पेश की हैं। उनके आईने में, कोई समझ-समझ कर भी न समझने की जिद से बावस्ता न हो, तो आसानी से समझ सकता है कि दलित क्योंकर अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में त्वरित कार्रवाई के प्रावधान से सुरक्षा का अनुभव करते थे, जो कि न थे और न अभी हैं, और क्यों गुजरात के ही उना में दलित युवकों को बेरहमी से पीटे और लंबी मूंछें रखने, नाम में ‘सिंह’ लगाने या घुड़सवारी करने को भी उनपर कोपों का बहाना बनाये जाने के ‘गवाह’ होने के बावजूद कई ‘जबर’ न दलितों की दुर्दशा समझ पाते हैं और न गुस्सा। दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़कर न जाने देने, दलित सरपंच को स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर तिरंगा न फहराने देने और मिडडे मील के वक्त दलित छात्रों को अलग बैठाये जाने जैसी घटनाएं भी उनकी मानवसुलभ संवेदनाओं को नहीं ही जगा पातीं।तभी तो पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में हाथरस निवासी संजय जाटव को कासगंज के ठाकुर बहुल निजामपुर गांव में अपनी बरात ठाकुर-बस्ती की निगाह से बचाने के लिए दूसरे रास्ते से ले जाना कुबूल नहीं हुआ तो कोर्ट-कचेहरी के चक्कर लगाने के बावजूद जिलाधिकारी की मार्फत उन्हें ‘बीच का रास्ता’ ही मिल सका।ऐसे अत्याचारों की सबसे ताजा घटना पर जाएं तो अहमदाबाद से, जहां गुजरात सरकार निवास करती है, महज 40 किलोमीटर दूर वालथेरा गांव में एक दलित महिला को ‘ऊंची’ जाति के वर्चस्ववादियों ने सिर्फ इसलिए पीट डाला कि वह उनके सामने कुर्सी पर बैठी हुई थी। जोकि वह जहां बैठी थी, वह जगह वर्चस्ववादियों की नहीं थी।वह गांव की पंचायत द्वारा एक स्कूल में आधार कार्ड बनवाने के लिए आयोजित शिविर में एक ‘ऊंची’ जाति के लड़के की उंगलियों के निशान लिए जाने में मदद कर रही थी. लेकिन जब तक वह उस पर तिरछी हुई भृकुटियों को पढ़ पाती, जातीय दंभ के मारे लोगों ने लात मारकर उसे कुर्सी से नीचे गिराया और लाठियों से पीटना शुरू कर दिया. उसके पति और पुत्र वहां पहुंचे तो उन्हें भी नहीं बख्शा.हाल ही में हरियाणा में स्वाभिमान सोसाइटी और इक्वालिटी नाउ ने संयुक्त रूप से सर्वे किया। पिछले 12 वर्षों (2009-2020) की एक सर्वे रिपोर्ट नेशनल हेराल्ड में 25 मई 2022 को प्रकाशित हुई जिसके अनुसार दलित महिलाओं और लड़कियों पर कम से कम 80% यौन हिंसा दबंग जाति के पुरुषों द्वारा की जाती है।पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार ने यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के पदों के लिए ओबीसी आरक्षण को भी खत्म कर दिया तो वहीं दूसरी तरफ SC/ST कर्मचारियों को प्रमोशन में मिलने वाले आरक्षण को भी खत्म कर दिया।दलितों की याद सिर्फ़ चुनाव के समय आती है और तभी मीडिया में यह विश्लेषण होता है दलित वोट किधर जाएगा बजाय इसके की दलितों की हितैषी कौन से राजनीतिक पार्टी है। तब सिर्फ़ यह दिखाया जाता है की किसी जिले, राज्य में दलितों की कितनी भागीदारी है जबकि दिखाना ये चाहिए की किस राज्य में दलितों के खिलाफ कितने अत्याचार के मामले दर्ज हुए और कितने दलितों को न्याय दिलाया गया। अत्याचार की तमाम घटनाओं और सरकार की नाकामी को देख कर बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर की ये लाइनें याद आती हैं, उन्होंने कहा था कि भले ही क़ानून बन गए हों, अभी भी अनुसूचित जातियाँ बेफ़िक्र नहीं हो सकतीं क्योंकि इन कानूनों का संचालन ‘सवर्ण हिंदू अधिकारियों’ के हाथों में ही है। इसलिए उन्होंने अनुसूचित जातियों से आह्वान किया कि वे सरकार के अलावा लोक सेवाओं में भी बढ़ चढ़ कर शामिल हों।”मोदी जी देश के बेटियों के साथ दोहरा चरित्र”जब 2014 में मोदी जी चुनाव लड़ रहे थे तब एक नारा बहुत ज़ोरों से दिया था “बेटी के सम्मान में भजपा मैदान में ” और सरकार बनने के बाद एक मोदी जी एक योजना लेके आए थे ” बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ “पता नहीं ये नारा था या मोदी जी की वर्निंग थी । एक रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी के 12 सांसद के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज है क्यू की एमजे अकबर से लेकर कुलदीप सिंह सेंगर या स्वामी चिन्मयानंद हों ये सब सज़ा याफ्ता बलात्कारी हैं। अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो एनसीआरबी की ओर से जारी किए गए ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल की तुलना में 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 15.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। भारत में प्रतिदिन 86 रेप के केस हुए दर्ज, हर घंटे 49 महिलाओं के खिलाफ अपराध हुए हैं. जहां साल 2020 में 3 लाख 71 हजार 503 मामले दर्ज हुए थे। वहीं साल 2021 में 4 लाख 28 हजार 278 मामले दर्ज किए गए हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पिछले साल 2021 में महिलाओं के खिलाफ सबसे अधिक अपराधिक मामले (56 हजार 083) दर्ज किए गए। जब इस साल 15 अगस्त 2022 को जब मोदी जी लाल किले महिलाओं के सम्मान की बात कर रहे थे तब मोदी जी की गुजरात सरकार ने गुजरात दंगों सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई बिलकिस बानो के बलात्कारियों को सवतंत्र दिवस के दिन आज़ाद कर दिया फूल और मालों सें उनका स्वागत किया गया। वैसे मोदी जी और उनकी पार्टी का बलात्कारियों के समर्थन में रैली निकालना और उनका सम्मान करना ये इनकी पुरानी आदत है।”मोदी का देश के मुसलमानों के साथ दोहरा रवैया”2014 में मोदी जी एक और नारा दिया था ” सब का साथ सब का विकास “लेकिन भारत के इतिहास में ये पहली बार हुआ है की भारत की मुस्लिम मुक्त हो चुकी है। इस समय केंद्र सरकार में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है और न सत्ता पक्ष यानि भाजपा के पास एक भी मुस्लिम सांसद हैं। न तो राज्यसभा में और ना ही लोकसभा में। हाल ही के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद और विधानसभाओं में बीजेपी की ताक़त का आंकड़ा पेश किया है। इसके मुताबिक़ देशभर में बीजेपी के करीब 400 सांसद और 1300 से ज़्यादा विधायक हैं। इस हिसाब से देखें तो मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद और विधानसभाओं में मुसलमानों की ताकत घटी है। 2014 और 2019 में बीजेपी के टिकट पर एक भी मुस्लिम सांसद जीतकर लोकसभा में नहीं पहुंचा। इससे पहले 1998 से लेकर 2009 तक कम से कम एक मुस्लिम सांसद बीजेपी के टिकट पर जीतता रहा था। 1998 में यूपी के रामपुर से मुख्तार अब्बास नकवी जीते थे, तो 1999 में शाहनवाज हुसैन बिहार के किशनगंज से जीते थे. 2004 में शाहनवाज हुसैन हार गए थे। लेकिन 2006 में वो भागलपुर से उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। 2009 में भी वह वहीं से जीते, लेकिन 2014 में हार गए। 2019 में उन्हें टिकट ही नहीं दिया गया। उस चुनाव में यूं तो बीजेपी ने 8 मुसलमानों को टिकट दिया था। लेकिन इनमें जीतने वाला कोई नहीं था. 2017 और 2022 में उत्तर प्रदेश के चुनावों में मोदी-शाह-योगी की भाजपा ने एक भी मुसलमान को टिकट दिए बिना लगातार विशाल बहुमत हासिल किया। प्रदेश में मुसलमानों की आबादी 20 फीसदी है यानी हर पांच में एक आदमी मुसलमान है।असम में मोदी-शाह-हिमंता की भाजपा ने 2016 और 2021 के चुनावों में बहुमत हासिल किया। दोनों चुनावों को मिलाकर उसने कुल 17 मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए लेकिन उनमें केवल एक ही जीता (2016 में). असम में हर तीन में एक आदमी मुसलमान है।हमारे इतिहास का यह वह दुर्लभ दौर है जब नयी दिल्ली में किसी संवैधानिक पद पर कोई मुसलमान आसीन नहीं है (केवल एक राज्यपाल हैं, आरिफ़ मोहम्मद ख़ान, केरल में न कोई मुसलमान 76 सदस्यीय मंत्रिमंडल में किसी पद पर है और न कहीं मुख्यमंत्री के पद पर है. केंद्र सरकार में 87 सचिवों में केवल दो मुसलमान हैं।ये राजनीति की बात हो गई जिसमें मोदी जी मुसलमानों का कितना साथ और कितना विकास कर रहे हैं । लेकिन इन सब के अलावा मुसलमानों के जो आम मुद्दे हैं जैसे बाबरी मस्जिद का मुद्दा या एनआरसी सीएए या ट्रिपल तलाक हो या अभी हाल में देश भर में हिजाब का मुद्दा हो या गाय के नाम पे मुसालमानों की हत्या या यूपी में मुसलमानों पे बुलडोजर से कारवाई हो या कल आया ज्ञानवापी मस्जिद का फ़ैसला या आने समय में सिविल कोड का मुद्दा हों। भले ही मोदी के नजर में ये सब एक मुद्दा या वोट बैंक की राजनीति लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं के ये मुद्दा नहीं बल्कि मुसलमानों पे होता एक ज़ुल्म है जो कहीं न कहीं मुसालमानों पे मोदी जी और उसकी सरकार कर रही है इस समय खूब कर रही है।आज जब मोदी सरकार अपनी आठवीं वर्षगांठ के मौके पर देश भर में जश्न मनाने की तैयारियों में जुटी हुई है तो वाराणसी की ज्ञानवापी और मथुरा की शाही ईदगाह से लेकर कई और मस्जिदों पर हिंदू संगठन अपना दावा ठोक रहे हैं. ताजमहल और कुतुब मीनार जैसी ऐतिहासिक महत्व की इमारतें भी इनके निशाने पर हैं. पिछले कुछ महीनों में देश के कई हिस्सों में हुई धर्मसभा में मुसलमानों के कत्लेआम के लिए लोगों को उकसाया गया। अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों के मानवाधिकार संगठन भारत में मुसलमानों की सुरक्षा और उनके भविष्य को लेकर लेकर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं। इन हालातों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से एक बार भी ऐसा बयान नहीं आया जो देश के सबसे बड़े धार्मिक समुदाय की सुरक्षा को लेकर भरोसा देता हो। ऐसे हालात में मुस्लिम समाज की चिंताएं और उनके निवारण पर भी बात करना ज़रूरी हो जाता है।2016 में केरल के कोझिकोड़ में हुई भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मुसलमानों से नफरत न की जाए, बल्कि उन्हें भी बराबरी का सम्मान और दर्जा दिया जाए. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की यही नीति थी. ठीक इसके अगले दिन उत्तर प्रदेश के दादरी के एक गांव में घर में गोमांस रखे जाने के शक में अखलाख की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। उसके बाद इसी तरह की खबरें देश के कई हिस्सों से आईं। झारखंड में तो लिंचिंग के दोषियों को ज़मानत मिलने पर केंद्रीय मंत्री ने आरोपियों का फूल मालाएं पहनाकर स्वागत किया। दादरी कांड के एक आरोपी की मौत के बाद उसके शव को तिरंगे में लपेटकर अंतिम संस्कार किया गया। हाल ही में हरिद्वार रायपुर और दिल्ली में धर्म संसद के नाम पर कई तथाकथित साधु-संतों ने मुसलमानों के नरसंहार के लिए लोगों को उकसाने वाले भाषण दिए.इस विश्लेषण से पता चलता है कि हिंदूवादी संगठनों के मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे बयानों की वजह से मुस्लिम समाज जुल्म सह के रह रहा हैं । लेकिन मोदी जी ये सब भाषण का कोई फायदा नहीं हुआ जो उन्होंने 2014 में बड़े जोर शोर से दिया था ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देकर सत्ता में आए थे। यूं तो बहुत हुई भ्रष्टाचार की मार, अबकी बार मोदी सरकार, ‘बहुत हुआ महिलाओं पर अत्याचार, जैसे और भी कई मुद्दे प्रमुखता से उठे थे. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ । बल्कि इसके उलट मोदी जी अपने 2 जन्म दिन की तरह इन लोगों से बर्ताव किया यानि मोदी जी कहतें कुछ और हैं और करते कुछ और हैं । लेकिन मोदी जी पूरी उम्मीद है कि वो इस तरह का दोहरा चरित्र छोड़ कर अपने जुमलों और नारों पे जरूर कायम रहने की कोशिश करेंगे।(इमरान अहमद ने ये आर्टिकल कलाम रिसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)