अब्दुल रकीब नोमानी
छात्र पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग मानु (हैदराबाद)
प्रशांत किशोर भारतीय पॉलिटिकल कंसल्टिंग फर्म का एक बड़ा चेहरा हैं. जिन्होंने एक तरह से भारतीय चुनावी कैम्पेनिंग प्रक्रिया को ही बदल दिया.जिन्होंने राजनेताओं को बताया कैसे चुनाव लड़ा जाना चाहिए? कैसे आमजन के नब्ज को पढ़ कर उनके बीच पैठ बनाया जा सकता है? कैसे चुनावी परिणाम को अपने पक्ष में किया जा सकता है ! ये काम प्रशांत किशोर अपने कम्पनी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) के साथ अंजाम देती है.जिनमें 500 से ज्यादा प्रोफेशनल लोग काम करते हैं.
इनकी टीम राजनीतिक पार्टियों से चुनाव कैम्पेनिंग के लिए करार करती हैं और चुनाव के लिए स्ट्रेटजी बनाती है. जिसमें कैम्पेनिंग से लेकर स्लोगन,भाषण, रैली स्थान एक तरह से सब कुछ के लिए रूपरेखा तैयार करती हैं ताकि चुनावी परिणाम बेहतर लाया जा सके ! और इसके साथ ही इसकी कंपनी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी ने राजनीतिक पार्टियों के पक्ष में बेहतर परिणाम देकर साबित भी किया है कि ये हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी पॉलिटिकल कंसल्टिंग फर्म है !
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर मई महीने से अपने जन सुराज अभियान के तहत बिहार के अलग अलग हिस्सों में जाकर जनप्रतिनिधियों व आमजनों से मिल रहे हैं.उन्होंने इनकी शुरुआत करने से पहले प्रेस कांफ्रेंस में कहा था हम बिहार में जन सुराज लाने के लिए काम करेंगे.हम पिछड़े बिहार को नया बिहार बनाना चाहते हैं. इसलिए हम जन सुराज की शुरुआत कर रहे हैं.
इसके लिए वह सबसे पहले करीब 17-18 हजार लोग जुड़े हुए हैं.अगले तीन से चार महीनों में वह इन लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलेंगे.इसके बाद वह 2 अक्टूबर को पश्चिम चंपारण से पद यात्रा की शुरुआत करेंगे.यह यात्रा 3000 किलोमीटर की होगी.इसमें बिहार के हर उस व्यक्ति से मिलने की कोशिश करेंगे जो बिहार में बदलाव चाहता है और फिर उन लोगों की सहमति बनी तो राजनीतिक दल के गठन के बारे में भी विचार करेंगे !बिहार के बदहाली के लिए प्रशांत किशोर नीतीश कुमार और लालू यादव के 30 सालों के शासन को जिम्मेदार ठहराते रहें हैं.
वो कहते हैं कि लालू राज के बारे में कहा जाता है सामाजिक न्याय का दौर था.और नीतीश के राज को सुशासन और विकास का राज कहा जाता है.फिर सवाल है कि इन दोनों के 30 साल के शासनकाल के बावजूद बिहार पिछड़ा क्यों है !इन दिनों प्रशांत किशोर को लेकर बहस छिड़ी हुई है.क्या इसने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से पहले ही राजनीतिक जीवन पर विराम लगा दिया.और ये सवाल उभरना तब शुरू हुआ जब पिछले ही दिनों प्रशांत किशोर ने चुपके से मुख्यमंत्री आवास पर नीतीश कुमार से मुलाकात की और इसकी जानकारी सार्वजानिक हो गई !हमारा मानना है कि जिस मंशे के साथ प्रशांत किशोर ने बिहार में बदलाव के लिए जन सुराज अभियान की शुरुआत की थी. उस पर अडिग रहने के लिए प्रशांत किशोर को संघर्षरत रहना चाहिए था.जो दिक्कतें उनके सामने बिहार भ्रमन के दौरान आ रही थी.उनका सामना करना चाहिए था. प्रशांत किशोर ऐसा करने में सक्षम भी होते नीतीश से उनके चुपके से मुलाकात जन सुराज अभियान को कमजोर करने ही जैसा हैं ! इसमें किसी को भी थोड़ा सा भी संदेह नहीं होना चाहिए कि प्रशांत किशोर हिन्दुस्तान के सफल और बड़े चुनावी रणनीतिकार हैं.
इनको मैंने अच्छे से अध्ययन किया हैं.बीए पत्रकारिता के अंतिम सेमेस्टर में मीडिया रिसर्च प्रोजेक्ट एक पेपर होता है.जिनमें किसी एक सब्जेक्ट पर रिसर्च प्रोजेक्ट करना होता है और मैंने इनके कम्पनी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) पर रिसर्च प्रोजेक्ट किया था.जिसमें इसके कम्पनी को समझने,जानने और इनके कार्यशैली के तरीक़े के बारे मालूम चला था !जब प्रशांत किशोर ने जन सुराज अभियान की बिहार में शुरुआत की थी.उस समय लोगों के भीतर एक उम्मीद सी जगी थी. लोगों को लगा था एक विकल्प मिलेगा जो गैर एनडीए और महागठबंधन से बाहर का विकल्प देगा.जिससे से लोग जुड़ते जा रहे थे. जिनके वज़ह से जनप्रतिनिधि खुद उनसे मुलाकात के लिए कॉल करते थे.कुछ जनप्रतिनिधियों से उनकी टीम खुद से सम्पर्क साध कर उनसे मुलाकात की रूपरेखा तैयार करती थी !ख़ासकर बिहार के युवाओं में भी इनके प्रति विश्वास की भावना पैदा हो रही थी.एक तरह से लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स भी मिल रहा था ! नीतीश कुमार के पाला बदलकर महागठबंधन के साथ सरकार बनाने को लेकर भी प्रशांत किशोर सवाल खड़ा करते रहें हैं.
उन्होंने इस घटना को बिहार के लिए दुर्भाग्य बताया था.और भविष्यवाणी भी की ये सरकार एक साल से ज्यादा टिकने वाली नहीं हैं.बीच में प्रशांत किशोर जन सुराज यात्रा को छोड़कर दिल्ली भी गए हुए थे. इस दौरान पूरे समय नीतीश कुमार पर हमलावर भी रहे और फिर प्रशांत किशोर का अचानक नीतीश कुमार से मुख्यमंत्री आवास पर मिलना होता है ! नीतीश कुमार से मुलाकात पर प्रशांत किशोर कहते है कि ये शिष्टाचार मुलाकात थी.हमारा जन सुराज अभियान चलता ही रहेगा हम बिहार में सुराज लाने के लिए काम करते रहेंगे.
लेकिन सच तो ये है मुलाकात से जो संदेश आना था वो आमजन तक पहुंच चुकी हैं.और मुलाकात से प्रशांत किशोर ने बता दिया वो अच्छे रणनीतिकार तो हैं लेकिन अच्छे राजनीतिज्ञ नहीं.क्योंकि प्रशांत किशोर निराशा के प्रतिफल में जल्दबाजी कर बैठे और एक मुलाकात से ही अपने जन सुराज अभियान जो किसी तरह सिसक कर चल रही थी उसको वेडीलेंटर पर जाकर छोड़ दिया lप्रशांत किशोर को बिहार में और भी संघर्ष करना चाहिए था.लोगों से मिलकर उनके नब्ज को टटोलते रहना चाहिए था.लेकिन प्रशांत किशोर वीडियो रीच को ही राजनीति समझ बैठे और एक तरह से यहीं पर वो सबसे बड़ी गलती कर बैठे.जबकि सच्चाई ये हैं कि बिहार की राजनीति दूसरे राज्यों के ठीक विपरीत हैं यहां पर लोग उड़ते पक्षी के पर गिन लेते हैं !
प्रशांत किशोर को सबसे बड़ा धक्का तभी लग गया था जब नीतीश कुमार पाला बदलकर लालू यादव के साथ आ गए. इसके बाद ही जन सुराज अभियान को एक तरह से लोगों का रिस्पॉन्स ना के बराबर ही मिलने लगा.जो फोन कॉल लोगों के आ रहे थे मिलने के लिए वो भी आने बंद हो गए.उनकी पूरी टीम ने कोशिश की फ़िर भी निराशा हाथ लगी. और निराशा का ही प्रतिफल रहा प्रशांत किशोर का नीतीश कुमार से मुख्यमंत्री आवास पर 2 घंटे की मुलाकात !प्रशांत किशोर को बिहार के राजनीति में पैठ बनाने के लिए थोड़ा धैर्य रखना चाहिए था. लेकिन थोड़ा निराशा हाथ लगी और उसके प्रतिफल में ही प्रशांत किशोर बहुत जल्दबाज़ी कर बैठे.और इसके साथ ही वो अपने एक कदम से जन सुराज अभियान को वेडीलेंटर पर लाकर छोड़ दिए !
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