अब्दुल रकीब नोमानी: छात्र पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग मानु (हैदराबाद)
“द टाइम” मैग्ज़ीन के हवाले से ये ख़बर है कि ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिंहा इस बार के दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार नोबेल पुरस्कार के संभावित विजेताओं की सूची में शामिल हैं। ये दोनों शांति क्षेत्र के नोबेल पुरस्कार के संभावित विजेताओं की सूची में शामिल हैं। इस बार कुल 343 दावेदार इस सूची में हैं.जिनमें 92 संस्थान और 251 व्यक्ति शामिल हैं। विजेता के नामों की घोषणा इसी शुक्रवार को सुबह 11 बजे होने वाली है।लेकिन इनमें जुबैर और प्रतीक का शामिल होना अपने आप में ही सबसे अलग हैं।क्योंकि इस दौर में जहाँ एक अफवाह के बाद भीड़ के द्वारा लोगों की मोबलिचिंग कर दी जाती हो,अफवाह मात्र पर ही दो धर्मों के बीच दंगे की स्तिथि उत्पन्न हो जाती हो,जब लोग किसी भय के धरल्ले से दूसरों के बीच फ़र्जी ख़बरों को साझा कर रहे हों,जब लोग सामजिक भाई-चारगी को नज़रंदाज कर तुरंत आपस में लड़ने पर उतारू हो जा रहे हों,जब कहीं के घटनाक्रम को कहीं का बताकर ग़लत नियत के साथ धाराप्रवाह साझा किए जा रहे हों,जब लोग आसानी के साथ चेहरे चमकाने के लिए प्रोपेगैंडा का सहारा ले रहे हों। ऐसे में जुबैर और प्रतीक ने बेड़ा उठाया फ़र्जी ख़बरों के सच को दुनिया के सामने लाने का,जबकि इस काम को करोड़ों रुपयों से लैस मेनस्ट्रीम मीडिया संस्थानों और सरकार को करना चाहिए था। फ़र्जी ख़बरों के सच को सामने लाने की इस काम को दोनों मिलकर अपने ऑल्ट न्यूज टीम के जरिए बखूबी अंजाम दे रहे हैं।जब कि सच्चाई ये है कि सरकार खुद ही अफवाह और झूठे ख़बरों को बढावा दे रही हैं और इसके बल पर ही ऑफ इंडिया, पंचजन्य जैसे बेबसाइट और देश की मेनस्ट्रीम मीडिया देश में नफरतों को आम कर रही है।नोबेल पुरस्कार के संभावित विजेताओं की सूची में शामिल होना ही ये बताने के लिए प्रयाप्त है कि जुबैर और प्रतीक ने क्या कर दिया है.ऐसे दौर में जुबैर और प्रतीक ऑल्ट न्युज के दम पर हर ख़बरों की फैक्ट चैकिंग कर सच को दुनिया को सामने ला रहे हैं। अफवाहों के रोकने मात्र से ही हजारों लोगों की जिंदगी को बचा रहे हैं,लोगों को आपस में लड़ने-झगड़ने से रोक रहे हैं,प्रोपेगैंडा फ़ैलाने वालो की कलई खोल रहे हैं।जुबैर और प्रतीक की राहें आसान भी नहीं रही हैं.आए दिन इन्हें कई तरह के चुनौतियों का भी भी सामना करना पड़ता है.कभी FIR के दंभ झेलने होते हैं,तो कभी इन्हें जेल के सलाखों के पीछे जाना भी होता है। कभी देश के ग़द्दार बताए जाते हैं,तो कभी माँ बहन की गाली सुननी होती है। लेकिन इन तमाम चीजों के वाबजूद जिस तरह से ये दोनों दुनिया के सामने सच को लाने का काम कर रहे हैं. ये बहुत ही काबिलेतारीफ है,और ये काम कोई मजबूत रीढ़ वाला इंसान ही कर सकता है।”द टाईम” मैग्ज़ीन की तरफ से तैयार सूची में पत्रकार जुबैर और प्रतीक सिन्हा के शांति के नोबेल पुरस्कार के संभावित विजेताओं में नाम शामिल हैं। इस मैग्जीन ने अपने लेख में कहा है कि ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा जो भारत में गलत सूचना के प्रचार प्रसार पर रोक के काम कर रहे हैं,और फ़र्जी खबरों की असलीयत लोगों के सामने लाने का काम रहे हैं.दोनों ने सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों और फर्जी खबरों को खारिज कर नफरती भाषण के प्रसार पर रोक की दिशा में एक बेहतरीन प्रयास किए हैं।‘द टाइम’ ने अपने लेख में जुबैर की गिरफ्तारी पर भी आगे कहा की दुनिया भर के पत्रकारों ने निंदा की थी,जिन्होंने कहा है कि जुबैर के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई फैक्ट चेक के उनके कार्य की दृष्टि से सरकार द्वारा बदला लेने जैसा कदम था।गौरतलब है कि 27 जून को दिल्ली पुलिस ने मोहम्मद जुबैर को एक ट्विट के ज़रिए धार्मिक उन्माद फ़ैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। दरअसल जिस ट्विट के आधार पर दिल्ली पुलिस ने मुहम्मद जुबैर को गिरफ्तार किया था वो 2018 का किया हुआ उनका ट्विट था. जिसमें उन्होंने एक फिल्म के कटिंग सीन को ट्वीट किया था। जिसकी शिकायत दिल्ली पुलिस से एक अज्ञात व्यक्ति ने ट्विटर के अकाउंट से किया गया था। जिसके कुछ दिनों ही बाद ट्विटर उपयोगकर्ता ने अपने अकाउंट को हटाया लिया था। दिल्ली पुलिस आज तक ये भी नहीं पता कर पाई है कि अज्ञात शिकायतकर्ता कौन थे। जिनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा था जिसकी शिकायत पर उन्होंने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को गिरफ्तार किया था। दिल्ली मामलों में मोहम्मद जुबैर के गिरफ़्तारी के कुछ दिनों बाद यूपी सरकार उनपर अलग-अलग मामलों में धरा-धर कुल 6 मुकदमें दर्ज कर दिए थे ताकि वो जेल के सलाखों के बाहर नहीं आ सके। यूपी सरकार ने एक तरह से रणनीति के हिसाब से मुकदमें दर्ज कराए थे ताकि अलग-अलग मामलों के लिए अलग-अलग सुनवाई चले ताकि लंबे वक़्त तक उन्हें सलाखों के पीछे कैद करके रखा जा सके। दिल्ली मुकदमों में ज़मानत मिलने के बाद मुहम्मद जुबैर सुप्रीम कोर्ट चले गए थे. जहां पर उस वक़्त के निवर्तमान चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने जुबैर की वकील वृंदा ग्रोवर की ओर से दाखिल किए गए प्रतिवेदन पर सुनवाई की गई थी। जिसमें कहा गया था कि जुबैर के खिलाफ कई जगह प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं और याचिका पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है।जिसपर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद जुबैर को उनके खिलाफ दर्ज सभी 6 FIR के मामलों में उन्हें अंतरिम जमानत दे दी थी। इसके अलावा सभी FIR को एक साथ क्लब करने का भी आदेश दिया था इसके साथ ही जुबैर की जेल से रिहाई का रास्ता साफ हो गया था, क्योंकि दिल्ली में हुए FIR के मामले में उन्हें पहले ही ज़मानत मिल चुकी थी.जिसके बाद वो जेल के सलाखों से बाहर आए थे।सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर के ट्वीट्स की जांच के लिए यूपी सरकार की तरफ से बनाई गई एसआईटी को भी भंग कर दिया था. क्योंकि यूपी सरकार की मंशा साफ थी कि किसी भी तरह मोहम्मद जुबैर को जेल से बाहर नहीं आने दिया जाए ।सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस की उस मांग को खारिज कर दिया था.जिसमें जमानत के साथ ये शर्त लगाने को कहा था कि जुबैर ट्विटर पर कुछ भी नहीं लिखेंगे। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने एडिशनल एडवोकेट जनरल से पूछा था हम किसी पत्रकार को कैसे कह सकते हैं कि वह नहीं लिखेगा? उन्होंने कहा कि हम नहीं कह सकते कि वह फिर ट्वीट नहीं करेंगे।सुप्रीम कोर्ट इनपर योगी के सरकार को करारा झटका देते हुए कहा था कि हम कैसे किसी के व्यक्ति के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छीन सकते हैं? हम कैसे किसी को बोलने की मनाही कर सकते है। ऑल्ट न्यूज की टीम सच के लिए जुनून की जिस हद तक के लिए काम करती है. वो वाकई में बहुत ही काबिले -तारीफ वाली बात है. और यही वज़ह रही कि ये इंटरनेशनल फैक्ट चैकिंग नेटवर्क में मोहम्मद जुबैर की टीम भी जुड़ गई है.और अब नोबेल पुरस्कार के संभावित विजेताओं की सूची में शामिल होना जुबैर और प्रतीक को और भी मजबूती प्रदान करेगा. इनसे ये जोड़ी जो रात दिन सच के लिए काम कर रही है और भी सशक्त होंगे ।