राजनीतिक दलदल में घुटती बिहार की शिक्षा व्यवस्था.

✍️ सादिया तहसीन

राजनीतिक और सांस्कृतिक शक्ति का केंद्र कहलाने वाले बिहार को शिक्षा के विषय हमेशा निंदा का सामना करना परा है। इतिहास के पृष्ठों मे शिक्षा का धर्म-पिता माना जाने वाला बिहार दो प्रमुख विश्वविद्यालयों, नालंदा और विक्रमशिला का जन्म स्थान था।

94,163 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल वाले बिहार की कुल जनसंख्या 10,40,99,452 एवं 38 जिले हैं, पर फिर भी राज्य भर में केवल 22 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें 744 कॉलेज हैं। इसका मतलब है कि एक कॉलेज में 2,142 के औसत नामांकन के साथ प्रति लाख आबादी पर केवल 7 कॉलेज हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत प्रति लाख जनसंख्या पर 28 कॉलेज हैं और 2015-16 में प्रति कॉलेज औसत नामांकन 721 था। इसकी कुल युवा आबादी में से केवल 1,78,833 छात्र कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में नामांकित हैं। एक ओर जहाँ भारत के तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले बिहार को भारतीय प्रशासनिक तंत्र की रीढ़ का उपाधि प्राप्त है, भारत के हर जिले मे एक बिहारी डीएम या एसपी नियुक्त है। देश भर में आईएएस कैडर का हर दस्वां वयक्ति एवं केन्द्र सरकार का हर आठवाँ सचिव बिहार का है। तो दूसरी तरफ 2011 के जनगणना के अनुसार इस की साक्षरता दर (61.8%) देश में सबसे कम है; और महिला साक्षरता दर (51.5%)दूसरी सबसे कम है।

बिहार में उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति

आज बिहार में शिक्षा का सामना करने वाली समस्याएं नामांकन की कम दर, असमान पहुंच, और बुनियादी ढांचे की खराब गुणवत्ता और प्रासंगिकता की कमी हैं। पर इसके साथ ही बिहार के उच्च शिक्षा की विशेषता पर नियमित रूप से दो प्रमुख समस्याएं बहुत बड़ी चुनौती बन कर सामने आ रही है।

      पेपर लीक

यदि पिछले कुछ वर्षों का अवलोकन करें तो बिहार में सबसे ज्यादा पेपर लीक के मामले सामने आए हैं.

(1) बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) ने हाल ही में आयोजित सिविल सेवा (प्रारंभिक) की परीक्षाओं को प्रश्न पत्र लीक होने के आरोपों के बाद रद्द कर दिया, जिसके बाद भारी हंगामा हुआ।

(2) 2022 में ही बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड, माध्यमिक पेपर लीक का मामला तब सामने आया था, जब यह आरोप लगाया गया था कि परीक्षा से पहले एक सीरीज के ज्यादातर प्रश्न सोशल मीडिया पर वायरल हो गए थे.

(3) 2021 में पेपर लीक होने के कारण सामाजिक विज्ञान की परीक्षा रद्द,

(4) 2020 में, बीपीएससी परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले हजारों परीक्षार्थियों ने औरंगाबाद में परीक्षा का बहिष्कार किया, यह आरोप लगाते हुए कि प्रश्नपत्रों की सील पहले से ही टूटी हुई थी

(5) राज्य भर में बीएसईबी द्वारा आयोजित इंटरमीडिएट परीक्षा (2018) विवादास्पद हो गई क्योंकि जीव विज्ञान का प्रश्न पत्र लीक होने के बाद कथित रूप से सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जब परीक्षार्थी अभी भी अपने केंद्रों पर उत्तर लिख रहे थे। उसी वर्ष, बिहार कर्मचारी चयन आयोग के प्रश्न पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो गए।

(6) मार्च 2017 में, अध्यक्ष सुधीर कुमार को एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के साथ बिहार कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा पेपर लीक मामले में गिरफ्तार किया गया था।

(7) बिहार पुलिस ने एक कोचिंग सेंटर के मालिक को गिरफ्तार किया है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह नीट 2017 के प्रश्न पत्र लीक करने वाले गिरोह का नेतृत्व कर रहा था।

       नकल

बिहार में शिक्षा के विकास की राह में नकल बड़ी बाधा बन रही है

(1) 2013 में, लगभग 1,600 छात्रों को नकल करने के लिए निष्कासित कर दिया गया था और लगभग 100 माता-पिता को बीबीसी द्वारा रिपोर्ट किए गए बिहार स्कूल परीक्षा बोर्ड में छात्रों को नकल करने में मदद करने के लिए हिरासत में लिया गया था।

(2) 2014 में, 200 से अधिक छात्रों को नकल करते पकड़ा गया और उन्हें निष्कासित कर दिया गया।

(3) 2015 में, बिहार में बड़े पैमाने पर नकल की झूठी प्रथा इतनी आम हो गई कि सैकड़ों माता-पिता कैमरे में कैद हो गए क्योंकि वे परीक्षा हॉल की दीवारों पर लटके हुए थे। बिहार बोर्ड की परीक्षाओं में नकल करने के आरोप में 1600 से अधिक छात्रों को निष्कासित कर दिया गया।

(4) 2016 में, तीन टॉपर्स का एक विचित्र मामला सामने आया, जिसमें बिहार स्कूल परीक्षा बोर्ड (बीएसईबी) कला और मानविकी टॉपर रूबी राय, साइंस टॉपर सौरभ श्रेष्ठ और साइंस स्ट्रीम में तीसरे टॉपर राहुल कुमार सहित टॉपर्स विषयों से संबंधित बुनियादी प्रश्नों के उत्तर देने में असफल रहे। धोखाधड़ी का एक और मामला सुर्खियों में आया, जहां बेगूसराय जिले में बिहार संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा में मोबाइल फोन मैसेजिंग एप्लिकेशन व्हाट्सएप का उपयोग कर धोखाधड़ी करने के आरोप में तीन परीक्षार्थियों को गिरफ्तार किया गया।

(5) 2017 में, स्पष्ट धोखाधड़ी के मामलों के एक चौंकाने वाले इतिहास के साथ, बिहार सरकार ने निष्पक्ष जाँच और निरीक्षण प्रथाओं को अपनाते हुए परीक्षा की प्रक्रिया को सख्त बनाने की कोशिश की। नतीजा यह हुआ कि 64 फीसदी से ज्यादा छात्र परीक्षा में फेल हो गए।

(6) 2018 में, कई सुरक्षा जांच करने के बावजूद, बिहार में 12वीं कक्षा की परीक्षाओं के दौरान नकल करने के लिए 1,000 से अधिक छात्रों को निष्कासित कर दिया गया था।

बिहार में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति

प्राचीन काल में गुनवत्तापुर्ण शिक्षा के लिए प्रसिद्ध राज्य बिहार को अब शिक्षा के स्तर मे नकारात्मक गिरावट का सामना करना पर रहा है। 2017-18 के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 40,652 प्राइमरी स्कूल हैं। लेकिन जैसे ही आप ऊपर जाते हैं, बिहार में शिक्षा व्यवस्था चरमराने लगती है। इसके मुख्य चुनौतियों की बात करें तो:

अनुपस्थिति दर

जनवरी 2023 को एनजीओ प्रथम द्वारा जारी ASER-2022 रिपोर्ट में कहा गया है कि, “बिहार में छात्रों की उपस्थिति कम है। लगभग 72% के राष्ट्रीय औसत की तुलना में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक दोनों स्कूलों में 60% से कम है। इसमें कहा गया है, “प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति अभी भी राष्ट्रीय औसत से कम है।

       ड्रॉप आउट 

माध्यमिक विद्यालयों (कक्षा V से X/XII) के संदर्भ में, बिहार 10वें स्थान पर है। हालाँकि, स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या में प्रशंसनीय कमी आई है, खासकर बड़ी उम्र की लड़कियों में, और बिहार उन कुछ राज्यों में से है जहाँ COVID-19 महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के बावजूद सीखने के स्तर में वास्तव में थोड़ा सुधार हुआ है। यहां 2017-18 में 32 फीसदी छात्रों ने नौवीं से दसवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ दी थी। 2022-2023 के लिए “समग्र शिक्षा” कार्यक्रम पर चर्चा करने के लिए शिक्षा मंत्रालय के तहत आयोजित परियोजना अनुमोदन बोर्ड (पीएबी) सत्रों के कार्यवृत्त से प्राप्त हुए एक जानकारी के अनुसार बिहार में 2020-21 में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 21.4% थी। लेकिन दूसरी ओर बिहार ने स्कूल छोड़ने वालों की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार देखा है, 2006 में 28.2% से 2022 में स्कूलों में दाखिला नहीं लेने वाली 15-16 साल की लड़कियों की संख्या गिरकर 6.7% हो गई है। नवंबर 2021 को जारी शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति के 16 वें संस्करण के अनुसार। सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या 2020 में 76.9% से बढ़कर 2021 में 80.5% हो गई, जबकि 2018 के बाद से पिछले तीन वर्षों में 2.8% की वृद्धि हुई थी। रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि 2018 और 2021 के बीच, निजी स्कूलों की तुलना में ग्रामीण पृष्ठभूमि के अधिक बच्चों ने सरकारी स्कूलों में प्रवेश लिया।
साक्षरता दर सबसे निचले स्तर पर होने के कई और कारण :

• छात्र-शिक्षक अनुपात में भारी कमी।

• योजनाओं की सही मॉनिटरिंग नहीं

• मध्याह्न भोजन योजना में भ्रष्टाचार

• गुणवत्ता से अधिक मात्रा पर अधिक ध्यान देना; बिना भवन के स्कूल हैं।

•रेड टेप।

• शिक्षक नियुक्ति में अत्यधिक विलंब

• शिक्षक नियुक्ति (नियमित/नियोजित/संविदा/अतिथि शिक्षक) में भेदभाव।

• अप्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति।

• एससीईआरटी का उन्नयन नहीं हो रहा है।

• शिक्षकों में संस्कारों का अभाव।

• समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता का अभाव।

•मदरसों/मकतबों/आश्रमों/कोचिंग संस्थानों पर अत्यधिक निर्भरता।

• राज्य सरकार की उदासीनता : राज्य सरकार द्वारा प्रभावी शैक्षिक नीतियों का अभाव।

गौरतलब है कि राज्य सरकार इस दिशा मे सुधार के निरंतर पर्यतन कर रही है। लगातार पूर्व कई वर्षो से बिहार के वार्षिक बजट मे शिक्षा को प्राथमिकता दी गयी है। वर्ष 2023 में कुल बजट का 21.94% (₹38,035,93 करोड़), 2022 मे 16.5% (₹39,191,87 करोड़) एवं 2021 मे 22.20% (₹22,200,35 करोड़) का वित्तीय आवंटन शिक्षा के क्षेत्र मे किया गया।
इसके अलावा वभिन्न योजनाओ और कार्यक्रमो के मध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई पहल की गयी है।

        सरकारी योजनाएं
  1. राज्य सरकार ने बिहार राज्य पाठ्य पुस्तक प्रकाशन निगम के वितरण नेटवर्क (बीएसटीपीसी) के माध्यम से सभी माध्यमिक विद्यालय के छात्रों को कम कीमत पर पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराने की व्यवस्था की है।
  2. बिहार शताब्दी मुख्यमंत्री बालिका पोशाक योजना: राज्य सरकार कक्षा 9 में कम से कम 75% उपस्थिति वाली लड़कियों को (सितंबर के महीने तक) 1000 रुपये की स्कूल यूनिफॉर्म प्रदान कर रही है।
  3. मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजनाः 10वीं कक्षा माध्यमिक विद्यालय छोड़ने की परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त करने वाली छात्राओं को नकद अनुदान के रूप में 10000/- रुपये प्रति बालिका प्रोत्साहन राशि।
  4. मुख्यमंत्री साइकिल योजना : रु. 9वीं कक्षा की प्रति छात्रा को 2500/- राज्य सरकार द्वारा साइकिल की खरीद के लिए प्रदान किया जाता है, बशर्ते कि सितंबर महीने तक छात्र की कम से कम 75% उपस्थिति हो।
  5. शैक्षिक परिभ्रमण योजना- प्रत्येक विद्यालय को 10000 रुपये राज्य सरकार द्वारा छात्रों को भ्रमण भ्रमण के लिए दिया जा रहा है। सुझाव

छात्र-शिक्षक अनुपात जैसे संकेतकों पर प्रणालीगत विफलता को देखते हुए; शिक्षण की गुणवत्ता; बुनियादी ढांचा और सुविधाएं; माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर ड्रॉप आउट; स्कूलों में नियमित कक्षाएं नहीं: राज्य सरकार को निम्न बिंदु पर भी ज़ोर देश चाहिए।

  1. सरकार को सिस्टम को बदलने और अपनी युवा आबादी की ऊर्जा का दोहन करने के लिए एक छोटी, मध्यम और लंबी अवधि की रणनीति को अंतिम रूप देने की जरूरत है।
  2. लाइन अधिकारियों और बोर्ड के अधिकारियों को प्रशिक्षित करने और रणनीति के साथ गठबंधन करने की आवश्यकता है। शिक्षकों को निरंतर आधार पर चरणबद्ध तरीके से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
  3. सरकारी वैतनिक कर्मचारियों द्वारा प्राथमिक से तृतीयक स्तर तक निजी ट्यूशन को रोका जाना चाहिए। शत प्रतिशत कम्प्यूटरीकरण से छात्रों को उनके भविष्य के प्रयासों में मदद मिलेगी।
  4. स्कूलों में खेल, जीवन कौशल, कैरियर परामर्श और मार्गदर्शन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि छात्रों को विभिन्न करियर विकल्पों और समग्र व्यक्तित्व विकास के बारे में बताया जा सके।
  5. शिक्षा माफियाओं को छात्रों के शोषण के खिलाफ चेतावनी दी जानी चाहिए। उनके लिए सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
  6. शिक्षकों और छात्रों के लिए आधुनिक बुनियादी ढांचा और कौशल विकास पाठ्यक्रम।
  7. छात्रों के प्रदर्शन की नियमित जांच करने और संस्थानों का नियमित दौरा करने के लिए अभिभावकों में जागरूकता पैदा करना।
  8. शिक्षकों को अपने पेशे के प्रति निष्ठावान बनाने के लिए कार्यशालाएं और मानसिक सुधार के लिए निय
    मित प्रशिक्षण।

(सादिया तहसीन मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू युनिवर्सिटी में पत्रकरिता व जनसंचार विभाग की छात्रा है)

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