भारत और कनाडा तनाव के बीच क्या होगा छात्रों और रजिडेंट का भविष्य और कितना होगा इन पर असर

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इमरान अहमद हिट टीवी हिंदी हैदराबाद

कनाडा और भारत के बीच लगातार बढ़ रहे तनाव का असर बाजार से व्यापार और स्टूडेंट से लेकर रजिडेंट तक पड़ रहा है। पहले संबंध काफी ठीक थे, लेकिन बीते दिन से दोनों देशों के बीच खटास बढ़ती जा रही है। अब तेजी से दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ रहे हैं। दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंधों की हालत लगातार पतली होती जा रही है। जहां पहले दोनों देशों को दोस्त समझा जाता था, अब दोनों में दुश्मनी का अहसास होने लगा है। डिप्लोमेट लेवल तक जो संबंध खराब हुए हैं, वे काफी गंभीर होने वाले हैं। यहीं नहीं, तनातनी का आर्थिक खामियाजा दोनों देशों को हो सकता है। कनाडा व भारत के बीच जबरदस्त तनाव से जहां उन अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है जिनके बच्चे कनाडा में स्टडी या वर्क वीजा पर हैं वहीं हजारों करोड़ रुपये की विदेशी एजुकेशन इंडस्ट्री को भी झटका लग सकता है। कनाडा में जनवरी सेशन के लिए विद्यार्थियों की तैयारियां आखिरी चरण में हैं, ऐसे में उनको अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। इसके साथ ही विदेशी एजुकेशन इंडस्ट्री भी सकते में है। कनाडाई सीमा सुरक्षा एजेंसी ने 700 युवाओं को डिपोर्ट करने का नोटिस दे रखा है, जिन युवाओं के ऑफर लेटर फर्जी थे, वह मामला भी लटक रहा है।

आखिर क्यों आई रिश्ते बिगड़ने की नौबत?

रिश्तों को खराब होने की शुरुआत कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो के एक बयान से हुई। देश को संसद से संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कनाडाई नागरिक की हत्या के लिए भारत की सरकार और एजेंट जिम्मेदार हैं। जिसकी हत्या हुई, वह खालिस्तानी मूवमेंट का अगवा था। भारत में कई मामलों में वह वांछित है। लेकिन भारत सरकार ने इसे पूरी तरह से बेतुका बयान करार दिया। सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया गया। उसके बाद पहला कदम कनाडा ने उठाया और कनाडा ने सबसे पहले भारत के सीनियर डिप्लोमेट को बाहर कर दिया। जिसका भारत ने भी जवाब दिया। उसके सीनियर डिप्लोमेट को बाहर किया गया। इसके बाद दोनों देशों की ओर से एक-दूसरे के खिलाफ ट्रैवल एडवाइजरी जारी की गई। दोनों देशों ने अपने-अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर सावधानी बरतने को कहा। सीनियर डिप्लोमेट देश निकालने की पहल कनाडा ने की। बाद में भारत ने जवाब दिया। इसके बाद भारत ने कनाडा के लिए वीजा सेवाओं पर रोक लगाने का एलान कर दिया। जिसके बाद से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि संबंध कितने खराब हो चुके हैं।

भारतीय नागरिक के पसंदीदा देशों में कनाडा भी एक रहा है

कनाडा भारतीयों के लिए हमेशा से ही पसंदीदा डेस्टिनेशन रहा है, हर साल लाखों भारतीय यहां घूमने से लेकर पढ़ाई करने जाते हैं। कनाडा की फिलहाल आबादी 3.7 करोड़ है। इसमें भारतीयों की संख्या लगभग 14 लाख है। कनाडा की आबादी में भारतीय मूल के करीब 3.7 फीसदी लोग हैं। इसमें सिखों की तादाद अधिक है। सिख धर्म के लोग भारतीयों में लगभग 7.70 लाख हैं। यानी ये कनाडा की आबादी के हिसाब से 2 फीसदी कवर करते हैं। पंजाब से सबसे ज्यादा युवा कनाडा ही जाते हैं, इसकी सबसे बड़ी वजह कनाडा की उदार नीतियां हैं, क्योंकि कनाडा की नागरिकता लेना सबसे ज्यादा आसान है। कनाडा में वैंकुवर, ब्रैप्टन, मिसीसागा जैसे 20 से ज्यादा शहर ऐसे हैं जहां हर चौथा शख्स पंजाबी है। यहां के नागरिकता नियमों की बात करें तो कनाडा में पांच साल तक अप्रवासी के तौर पर रहने वाला शख्स वहां की नागरिकता के लिए अप्लाई कर सकता है, इस अवधि में उसे कम से कम तीन साल तक लगातार देश में रहना होगा। पंजाब से कनाडा जाने वाले युवाओं में सबसे ज्यादा वे छात्र होते हैं जो 12 वीं के बाद ही वहां जाना चाहते हैं। कनाडा में जाने से फायदा यह है कि वहां पर छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम जॉब का प्रति सप्ताह 20 घंटे का ऑप्शन भी दिया जाता है। 2021 के मुकाबले 2022 में विदेश में पढ़ाई के लिए जाने वालों की संख्या में 68 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है। 2021 में भारत से 4,44,553 छात्र विदेश पढ़ाई के लिए गए थे, जबकि 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 7,50,365 हो गया। 2020 में कोरोना की वजह से बाहर जाने वाले छात्रों के आंकड़ें में गिरावट आई थी, लेकिन उस साल भी तकरीबन 259655 छात्र पढ़ाई के लिए विदेश गए थे। इनमें 40 फीसदी विद्यार्थी कनाडा का रुख करते हैं और इनमें पंजाब अव्वल है।

वहां के चुनाव में भी पंजाबी डालते हैं असर

चुनाव परिणामों की बात करें तो 17 सीटें ऐसी थी, जिन पर भारतीय जीते। इन 17 सांसदों में से 16 पंजाबी थे। 338 सीटों पर 49 भारतीय मैदान में उतरे थे। जिनमें तकरीबन 35 कैंडिडेट पंजाब के थे। ओंटारियों में 8 सांसद पंजाबी हैं, जबकि ब्रिटिश कोलंबिया से 4, अल्बर्टा से 3 और क्यूबिक से एक सीट पर कब्जा किया। कनाडा में आम चुनाव में ट्रूडो बड़ी मुश्किल से जीत सके थे। जीतने के बाद भी वह सरकार बनाने में असफल थे। ट्रूडो की लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा को 157 सीटें मिलीं थी, जबकि विपक्ष की कंजरवेटिव पार्टी को 121 सीटें हासिल हुई थीं। सरकार बनाने के लिए ट्रूडो को 170 सीटें चाहिए। ये सीटें और पीएम की कुर्सी अगर उन्हें कोई दिला सकता था, तो वह थी जगमीत सिंह वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी जिसे 24 सीटें मिली थीं। इन सीटों के साथ ही जगमीत सिंह कनाडा में बिल्कुल हीरो से बन गए थे। यह किसी से छिपा नहीं है कि जगमीत, खालिस्तान आंदोलन के बड़े समर्थक हैं। चुनाव के बाद सिंह और ट्रूडो ने कॉन्फिडेंस-एंड-सप्लाई एग्रीमेंट को साइन किया था। यह समझौता 2025 तक लागू रहेगा। अब तक जगमीत सिंह, ट्रूडो के भरोसेमंद साझेदार बने हुए हैं।

व्यापार अच्छा साझेदार रहा है कनाडा

व्यापार की बात करें तो दोनों देशों में 2022 में लगभग 9 बिलियन डॉलर का रहा था। व्यापार में साल भर पहले की तुलना में लगभग 57 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है। लगभग दोनों का शेयर बराबर का रहा है। भारत कनाडा से कोयला, कोक, फर्टिलाइजर अधिक परचेज करता है। निर्यात में एयरक्राफ्ट इक्विपमेंट, इलेक्ट्रॉनिक आइटम, कंज्यूमर गुड्स, गारमेंट, ऑटो पार्ट शामिल हैं। पिछले साल भारत कनाडा के लिए 10वीं सबसे बड़ी मार्केट था। दोनों देशों के बीच व्यापार को लेकर समझौते की बात भी चल रही थी। लेकिन रिलेशन खराब होने से पहले ही (CEPA) रुक गया। जिससे माना जा रहा था कि दोनों देशों में व्यापार डबल हो जाएगा। सख्ती के कारण दोनों देशों के बीच आयात-निर्यात पर असर पड़ना तय है। कनाडा को डेवलप कंट्री माना जाता है। अमेरिका के साथ उसके कई वेस्टर्न कंट्री सहयोगी हैं। माना जा रहा है कि यूरोप तक ट्रेड डील का असर हो सकता है। भारतीय बाजार पर कितना असर होगा। कनाडा को भारतीय शेयर बाजार में बड़ा विदेशी निवेशक माना जाता है। कनाडा की ओर से डेल्हीवरी, इंडस टावर्स, पेटीएम, कोटक महिंद्रा बैंक, जोमैटो, नायका जैसी कंपनियों में काफी निवेश किया गया है। कनाडा के पेंशन फंड की बात करें तो इन कंपनियों के 1.5 से 6 फीसदी तक शेयर में उसने इनवेस्ट किया है। जिसकी कुल वेल्यू 16062 करोड़ रुपये है। कनाडा स्थित एफपीआई 150871 करोड़ रुपये के एसेट को भारतीय बाजार में मैनेज करती है। आंकड़ों के हिसाब से एफपीआई के मामले में कनाडा इंडियन मार्केट के लिए के लिए 7वां सबसे बड़ा सोर्स है।

संबंध बिगड़ने काअसर व्यापार के बाद सब से ज़्यादा शिक्षा के क्षेत्र पर होगा

बाजार, मार्केट के बाद सबसे अधिक जो असर होगा, वो है एजुकेशन। कनाडा की अर्थव्यवस्था में एजुकेशन का बड़ा योगदान माना जाता है। आईआरसीसी के अनुसार कनाडा में शीर्ष 5 देशों के छात्र सब से ज़्यादा पढ़ते हैं जिनमें भारत के ( 319,000 ) ,चीन के ( 100,010 ) , फिलिपींस के ( 32,425 ) फ्रांस के (27,110 ) और के नाइजीरि ( 21,645 ) भारत एजुकेशन में कनाडा का बड़ा कंट्रीब्यूटर है। कनाडा में सबसे अधिक बाहरी स्टूडेंट भारतीय हैं। पिछले 5 साल में कनाडा में सबसे अधिक स्टूडेंट भारत से ही गए हैं। आंकड़ों के हिसाब से 2022 में भारत से लगभग 3.20 लाख स्टूडेंट कनाडा गए हैं। कनाडा में जितने विदेशी पढ़ते हैं, उनमें 40 प्रतिशत इंडियन हैं

दोनों देशों की ओर से एक-दूसरे के खिलाफ ट्रैवल एडवाइजरी जारी की गई। दोनों देशों ने अपने-अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर सावधानी बरतने को कहा। अब देखना है आगे क्या होता है तनातनी का आर्थिक खामियाजा दोनों देशों को हो सकता है। लेकिन जिस तरह कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने सीधे तौर पर सिख नेता की हत्या के लिए भारत को दोषी बताया है, वो बयान वाकई दुस्साहिक और अपरिपक्व सा है. ऐसा सीधा आरोप तो भारत के दुश्मन देश कहे जाने वाले चीन या पाकिस्तान ने कभी इस तरह नहीं लगाए. ये कहकर ट्रूडो इस तरह पेश आए मानो वह भारत के साथ खुद रिश्ते खराब करना चाहते हैं और दुश्मनी के रवैये पर उतारू हैं. एक नेता के तौर पर ट्रुडो ने इस पूरे मामले में खुद को जैसे पेश किया है, वो आमतौर पर किसी बडे़ देश के राष्ट्रप्रमुखों में कम नजर आता है.

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