मो.शमशाद आलम
इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर (India Islamic Cultural Centre (IICC)) भातरतीय एलीट क्लास मुसलमानों व मुसलीम सिविल सोसायटी का सबसे प्रतिष्ठित संगठन है. लोधी रोड पर स्थित आईआईसीसी मे हर पांच साल पर होने वाले चुनाव की तरह इस बार भी अध्यक्ष और उपाअध्यक्ष समेत 11 सदस्यों के लिए चुनाव इसी साल 11 अगस्त 2024 को होना है.
इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर की स्थापना 1981 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रयास से हुई थी. हमदर्द के संस्थापक हकीम अब्दुल हमीद इसके पहले अध्यक्ष बने थे.
इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर (IICC) के पिछले बीस सालों से अध्यक्ष रहे सिराजुद्दीन कुरैशी (president Sirajuddin Qureshi) चुनाव इस बार नहीं लड़ रहे हैं. क्योंकि IICC के कानून के अनुसार चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति की उम्र 75 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए, जो की कुरैशी की आयू 75 वर्ष से अधिक हो गई है। जिसके कारण वो चुनाव नहीं लड़ सकेंगे. हालांकि उनकी जगह मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक और कर्नाटक के जाने-माने कैंसर सर्जन डॉ. “माजिद अहमद तालिकोटी” (Dr. Majid Talikoti) उनके पैनल से चुनाव लड़ रहे हैं.
इस चुनाव में कई उद्योगपति से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री मोहसिन किदवई और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद, सांसद तारिक अनवर और नौकर शाह, बुद्धिजीवी समेत करीब 2,000 मतदाता हिस्सा लेंगे. कई भारतीय मुल के विदेशी नागरिक भी आईआईसीसी के वोटर हैं.
कांग्रस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद (Salman Khurshid) भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. और मुख्य मुकाबला माजिद अहमद तालिकोटी से होने की उम्मीद जताई जा रही है. हालांकि दिलचस्प बात यह है कि 2009 में सलमान खुर्शीद सिराजुद्दीन कुरैशी के खिलाफ चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे. कुछ लोग सवाल कर रहे हैं कि खुर्शीद, जो कि एक सक्रिय राजनेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं. अगर वह चुनाव जीत जाते हैं तो आईआईसीसी के लिए समय कैसे निकाल पाएंगे.
सेवानिवृत्त नौकरशाह अफ़ज़ल अमानुल्लाह, जिन्होंने चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है, उन्होंने भी राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी पेश की हैं. इसके अलावा, दिल्ली के व्यवसायी आसिफ हबीब और वसीम गाजी भी इस पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. रोचक बात यह है कि भाजपा के सदस्य सोहेल हिंदुस्तानी भी अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बने हैं.
अबरार अहमद भी अध्यक्ष पद के लिए चुनावी मैदान में हैं. उन्होंने पिछले प्रशासन में बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के सदस्य रहे हैं और दो दशकों से सिराजुद्दीन कुरैशी की टीम का हिस्सा रहे हैं. अगर वे फिर से चुने जाते हैं, तो IICC में क्या बदलाव लाएंगे, यह चर्चा का विषय बना हुआ है. शुरुआत में अबरार ने कहा था कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन बाद में उन्होंने अपना मन बदलकर अपनी उम्मीदवारी पेश कर दी है.
“माजिद अहमद तालिकोटी” के चुनाव लड़ने पर, क्यों हो रही है चर्चा?इस चुनाव का सबसे अहम पहलू यह माना जा रहा है कि जो दो प्रत्याशी के बीच मुकाबला होने की संभावना है. उनमें से एक “माजिद अहमद तालिकोटी” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वार संचालित “मुस्लिम राष्ट्रीय मंच” के कन्वीनर भी है. जिस मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक आरएसएस के राष्ट्रीय सचिव इंद्रेश कुमार है
तालिकोटी के अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बनाए जाने से यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि क्या जिस तरह से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सीटी और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सीटी हैदराबाद, जामिया मिल्लीया इस्लामिया जैसे कई विश्वविद्यालयों पर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच/ आरएसएस से जुड़े लोगों को वाइस चांसलर या चांसलर के तौर पर नियुक्त किया जाता रहा है वाही आईआईआईसीसी के साथ तो नहीं होने जा रहा.
लोग इसी कड़ी से जोड़कर देख रहे हैं कि जिस तरह से यूनिवर्सीटी पर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच या आरएसएस का कब्जा हो गया है उसी तरह IICC के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर भी भगवाधारी ताकतों का कब्जा तो नहीं होने जा रहा है?
मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा यह सवाल उठाया जा रहा है कि अगर मुसमानों के एलीट क्लास के सबसे बड़े संगठन आईआईसीसी के अध्यक्ष मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के कन्वीनर माजिद अहमद तालिकोटी बनते हैं. तो क्या मुसमानों के सबसे अहम समाजिक और राजनीतिक लोगों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडो का असर होगा? और आरएसएस के पौलिसी के मुताबिक मुसलमानों के दरमियान में भूमिकाएं तय की जाएंगी.