अल्पसंख्यक मंत्रालय पर बजट की कैंची: 2024 में सिर्फ 0.06% कम मिला

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रज़ी ख़ान

मोदी सरकार के कार्यकाल शुरू हो चुके हैं और इसके साथ ही भारत की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय संसद में अपना सातवां लगातार बजट पेश किया, जो भारतीय राजनीति और वित्त में एक नया मानक स्थापित कर रहा है.

वित्त मंत्री सीतारमन द्वारा वित्तीय वर्ष 2024 -25 के लिए “सैंतालीस लाख पैंसठ हजार सात सौ अड़सठ” (47,65,768) करोड़ कुल मिला कर उन्होंने खर्च करने को दिया है.

लेकिन इस बजट की सबसे खास बात यह है कि इस बजट में अल्पसंख्यकों के लिए क्या बदलाव किया गया है. अल्पसंख्यक के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री ने 15 सूत्री कार्यक्रम, मल्टी सेक्टर डेकोरल डेवलेपमेंट प्रोग्राम (MSDP) और प्रधानमंत्री जन विकाश कार्यक्रम (PMJVK) धार्मिक विकाश के लिए सबसे महत्वपूर्ण नीतियां और रणनीति बनाती है. जिसे 2006 और 2008 में शुरू किया गया था. इन दोनों को छोड़ कर (MOMA) द्वारा संचालित सभी 15 सूत्री कार्यक्रम के अधिन आता है. और ये अल्पसंख्यक के विकाश के लिए ये बजटीय संदर्भ में 100% है. बहरहाल 15 सूत्रीय कार्यक्रम की दिशानिर्देशों के अनुसार, जहां भी संभव हो, सामान्य मंत्रालयों के विकास कार्यक्रमों में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए 15 प्रतिशत धनराशि आवंटित की जानी चाहिए.

एमओएमए वेबसाइट की अवलोकन से पता चलता है कि पिछले 10 वर्षों के दौरान 15 सूत्री कार्यक्रम के तहत चुनिंदा सामान्य मंत्रालयों और विभागों द्वारा संचालित योजनाओं के तहत अल्पसंख्यकों को लाभ पहुंचाने वाले वित्तीय संसाधन आवंटन की रिपोर्ट पूरी तरह से और समय पर नहीं की गई है.

इसके इलावा पिछले 10 वर्षों में कोई नामित या केंद्रीय योजना संशोधित दिशा निर्देश अल्पसंख्यकों का विशिष्ट प्रधानों का अभाव रहा है.

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मंत्रालय ने 2020-21 और 2021-22 में क्रमश 5,029.10 करोड़ रुपये के बजट अनुमान में से 3,998.57 करोड़ रुपये और 4,810.77 करोड़ रुपये में से 4,325.24 करोड़ रुपये खर्च किए. 2022-23 में 5,020.50 करोड़ रुपये के परिव्यय में से 802.69 करोड़ रुपये का वास्तविक व्यय किया गया ऐसा भी लगा रहा है कि केंद्रीय बजट परिव्यय MOMA द्वारा की गई धन की मांग के अनुसार पूरी नहीं की गई है. 2022-23 के लिए 8.1501 करोड़ रुपये की मांग के मुकाबले 5,020.50 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. वास्तव में कुल केंद्रीय बजट के रूप में मंत्रालय का कुल बजट 2022-23 (बीई) में 0.12 प्रतिशत से घटकर 2024-25 (बीई) में 0.06 प्रतिशत हो गया है. MOMA के लिए इस वर्ष का कुल आवंटन किया गया है. हालांकि 2012-13 में आवंटित राशि के लगभग बराबर है.

MOMA के बजट आवंटन में गिरावट होने का मुख्य कारण है जैसे अल्पसंख्यक छात्रों के लिए मौलाना आज़ाद फेलोशिप, विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों के शैक्षणिक ऋण पर ब्याज सब्सिडी, मुफ्त कोचिंग योजनाएं , प्री मेट्रिक छात्रवृत्ति, मौलाना आजाद नेशनल एजुकेशन फाउंडेशन या बेगम हजरत महल छात्रवृत्ति योजना मदरसे और अल्पसंख्यकों के लिए कई प्रमुख योजनाओं को बंद करने के कारण भी हुई है.

ऐसी भी कई योजनाएं है जैसे, मेरिट कम मीन्स, प्री मैट्रिक योजना, मुफ्त कोचिंग और संबद्ध योजनाएं, मदरसों और अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा योजना और प्रधान मंत्री जन विकास कार्यक्रम (पीएमजेवीके) के लिए आवंटन में भी कमी की गई है.

मदरसों और अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा योजना में केंद्रीय हिस्सेदारी में गिरावट और बाद में योजना के बंद होने से उत्तर प्रदेश में 30,000 से अधिक शिक्षकों को कई वर्षों से मानदेय नहीं मिलने के कारण मदरसों में बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है.

पिछले (2023-2024) बजट में अल्पसंख्यकों के उद्यमिता और कौशल नेतृत्व के लिए नई योजना की घोषणा की गई थी. 2023 –24 में 540 करोड़ आवंटन के साथ इस वर्ष नई योजना से 2025–26 तक लगभग 9 लाख लोगों को लाभकारी बनाया जाए.
2024-25 के बजट में जबकि कई अन्य योजनाओं में गिरावट देखी गई है. हालांकि कुछ ऐसी भी योजनाए है जैसे, पीएमजेवीके के विशाल भौगोलिक कवरेज के बावजूद, इस वर्ष के बजट में आवंटन में पिछले वर्ष (600 करोड़ रुपये) की तुलना में केवल मामूली 910.9 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है.

आरई स्तर पर बजट को घटाकर 500 करोड़ रुपये करने जा रही है. योजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रभाव डालें. साथ-साथ देश के कई जानी-माने सेंट्रल यूनिवर्सिटी की फंड में भी कमी की गई है. वर्ष 2014 –15 में 264.48 CR रूपये बढ़ाया गया था. इसमें 2020 –21 में 479.83 CR रूपये लगभग 68.73 CR रूपये की बड़ी गिरावट देखी गई थी. जो 2021–22 में केवल 411.10 cr रुपए रह गई है.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को साल 2014-15 में 673.98 करोड़ बढ़ाया गया था, लेकिन 2020-21 में 1,520.10 करोड़ रुपये से घटाकर 2021-22 में 1,214.63 करोड़ रुपये दिया गया था. जोकि लगभग 306 करोड़ रुपये की उल्लेखनीय गिरावट देखी गई.
यह देखा गया है कि अधिकांश राज्यों में जिला स्तर पर अल्पसंख्यक कल्याण के लिए कोई समर्पित विभाग नहीं है, जहां है वहा सामान्य तौर पर कर्मचारियों की भारी कमी है.

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