मुहम्मद खालिद
भारत सरकार द्वारा 2011 में कराए गए जनगणना के मुताबिक 17 करोड़ 22 लाख मुसलमान रहते हैं, जो देश की आबादी का कुल आबादी का 14.2% थी. 2011 के बाद केंद्र सरकार द्वारा अभी कोई जनगणना नहीं हुई है. अगर मुस्लिम देशों की बात करें तो इंडोनेशिया के बाद सबसे ज्यादा मुसलमान भारत में रहते हैं. लेकिन इतनी बड़ी आबादी देश में हर दिन हो रही लिंचिंग से डरी और असुरक्षित महसूस कर रहा है. भारत में भेदभाव का इतिहास काफी पुराना है, जो अंग्रेजों के दौर से चला आ रहा है. आज़ादी के बाद सरकारें ज़रूर बदली है, लेकिन मुसलमानों के साथ भेदभाव और लिंचिंग जैसे अपराध में कोई बदलाव नहीं हुई है.
राजनेताओं का मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव
आज़ादी के बाद से भारत में मुख्यत: दो पार्टियों ने सत्ता संभाली: इसमें कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शामिल है. इन दोनों राजनीतिक पार्टियों के शासनकाल में मुसलमानों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ, हालांकि कांग्रेस के शासनकाल में भेदभाव कुछ कम रहा है, लेकिन बीजेपी के शासनकाल में यह अधिक देखा गया है.
सांप्रदायिक दंगे और मॉब-लिंचिंग
भारतीय मीडिया के खबर के अनुसार वर्ष 2014 से 2017 के बीच भारत में लगभग 2,920 सांप्रदायिक दंगा हुआ है. हालांकि बीजेपी के शासनकाल में दंगों की संख्या कांग्रेस के मुकाबले कम रही है लेकिन लिंचिंग की घटनाएं ज़्यादा देखने को मिली. विशेषकर उन राज्यों में जहां बीजेपी की सत्ता है, मॉब लिंचिंग की घटनाएं अधिक हुई. लिंचिंग का शब्द चार्ल्स लिंच (1736-96) के नाम पर पड़ा है, जो वर्जीनिया के एक प्लांटर और शांति के न्यायाधीश थे. लिंचिंग का अर्थ है स्वगठित न्यायालय जो किसी व्यक्ति को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के सज़ा सुनाता है.
लिंचिंग के खिलाफ भारत में कानून भारत में मॉब लिंचिंग के मामलों में न्यूनतम 7 साल की क़ैद और उम्रकैद या फांसी की सज़ा का प्रावधान है. हत्या के मामलों में धारा 103 के तहत केस दर्ज किया जाता है, जबकि धारा 111 में संगठित (मॉब लिंचिंग) अपराध के लिए भी सज़ा का प्रावधान है. उत्तर प्रदेश विधि आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2012 से 2019 तक 50 घटनाएं सामने आईं, जिनमें 50 लोग भीड़ का शिकार बने, जिसमें से 11 लोगों की मौत हो गई मरने वालों में अधीकतर मुस्लिम थे . ऐसी घटनाएं अधिकतर बीजेपी शासित राज्यों में हुई थी. 2019 में आयोग अध्यक्ष रिटायर्ड जज ए. एन. मित्तल ने 128 पन्नों वाली अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपते हुए विशेष कानून बनाने की मांग की थी.
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ बीजेपी के नेतृत्व में मुस्लिम विरोधी भावनाएं बढ़ी है. 2014 में सत्ता में आने के बाद से सरकार ने हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को आगे बढ़ाया है. 2019 और 2024 में मोदी के फिर से चुने जाने के बाद, सरकार ने विवादास्पद नीतियों को आगे बढ़ाया है, जो आलोचकों के अनुसार मुसलमानों के अधिकारों की अनदेखी करती हैं और धार्मिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करती है.
भीड़ द्वारा हिंसा और लिंचिंग
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017 के पहले छह महीनों में, 20 “गौ-आतंकवादी” हमले दर्ज किए गए हैं, जो 2016 के आंकड़ों का 75 प्रतिशत से अधिक है. ऑब्जर्वर रिसर्च एनालिसिस के अनुसार, जनवरी 2011 और जून 2017 के बीच भीड़ द्वारा हिंसा और सार्वजनिक अव्यवस्था में गाय से संबंधित हिंसा कुल घटनाओं के 5 प्रतिशत से नाटकीय रूप से बढ़कर जून 2017 के अंत तक 20 प्रतिशत से अधिक हो गई. भीड़ द्वारा हिंसा के ख़िलाफ़ नागरिकों के एक बड़े वर्ग निराशा हैं.
बीजेपी एंव सांप्रदायिक ध्रुवीकरण
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ऐतिहासिक रूप से हिंदू दक्षिणपंथ की सबसे महत्वपूर्ण रणनीतियों में से एक रहा है. 2014 के आम चुनाव के प्रचार के दौरान इस रणनीति की कार्यप्रणाली स्पष्ट रूप से देखी गई और उसके बाद भी यह लगातार जारी रही. प्रधानमंत्री ने गोमांस और मवेशियों के व्यापार के खिलाफ बात की, जिसे उन्होंने “गुलाबी क्रांति” का नाम दिया. इन “घृणा अपराध” में लिप्त कट्टर हिंदुत्व समूहों द्वारा प्राप्त दंडमुक्ति की संस्कृति उसी रणनीति का परिणाम है, जबकी अगर डेटा पर गौर किया जाए तो भाजपा शासित राज्यों मैं मॉबलिंचिगं की घटनाएँ अधिक हुई है.
बीजेपी शासित राज्यों में मॉब लिंचिंग की घटनाए
बीजेपी शासित राज्यों में मॉब लिंचिंग की घटनाओं का विश्लेषण करना आवश्यक है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि किस प्रकार से राजनीतिक और प्रशासनिक प्रभाव इस सामाजिक बुराई को प्रभावित करता है.
मॉब लिंचिंग के आकड़ों की बात करें तो बीते वर्ष 2014 से 2023 के बीच लगभग 134 मॉब लिंचिंग की घटनाएं दर्ज की गई है. जिसमें से 71 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई है. इन घटनाओं में 26 से ज्यादा लिंचिंग बीजीपी शासित राज्य उत्तर प्रदेश में हुई है, जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई. वहीं गैर बीजेपी शासित राज्य झारखंड में “ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झापा), कांग्रेस और आरजेडी की सरकार है. झारखंड में 15 मॉब लिंचिंग हुई है जिसमें से 9 लोगों की मौत हुई है. भाजपा शासित राज्यों में मॉब लिंचिंग की घटनाएं अधिक देखी गई है.
अन्य राज्यों में भी मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई हैं, लेकिन भाजपा शासित राज्यों की तुलना में कम हुई है.
लिंचिंग के खिलाफ कार्रवाई
गोवंश से जुड़े मुद्दों पर मॉब लिंचिंग की पहली व्यापक रूप से रिपोर्ट की गई घटनाओं में से एक 2002 में गोहत्या की अफवाह पर आधारित थी, जहां हरियाणा के पांच दलितों को उन्मादी भीड़ ने मार डाला था. ऐसे मामलों में सरकारी संस्थानों द्वारा कड़ी निंदा का एक भी उदाहरण नहीं देखा गया. इसके विपरीत, कई बार ऐसी घटनाओं के बाद अपराधियों के लिए शक्ति प्रदर्शन और प्रोत्साहन के बयान सामने आया है. मोहम्मद अखलाक की हत्या के आरोपी के अंतिम संस्कार में जाने के दौरान पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने कहा था, “हत्या उस घटना की प्रतिक्रिया के रूप में हुई.”
जबकी हरियाणा के मुख्यमंत्री एम.एल. खट्टर ने लिंचिंग को ग़लतफ़हमी बताया, मुसलमानों के ख़िलाफ़ भारत में भीड़ द्वारा हिंसा और लिंचिंग का एक स्पष्ट इतिहास है, जो एक ऐसे समाज को दर्शाता है जिसमें पूर्वआधुनिक मूल्यों के स्पष्ट अवशेष हैं. पिछले तीन वर्षों में भीड़ द्वारा हिंसा के सभी मामलों में लिंचिंग का अनुपात बढ़ा है. 2010 से 2017 के बीच गोवंश से जुड़े मुद्दों पर हुए हमलों में से 97 प्रतिशत की बढ़ोतरी पिछले तीन सालों में दर्ज किए गए.सरकार को लिंचिंग के खिलाफ सख़्त क़दम उठाने चाहिए और दंड से मुक्ति की संस्कृति को खत्म करना चाहिए.सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीतियों को रोकने के लिए राजनीतिक दलों को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.