दिल्ली (इंसाफ़ टाइम्स डेस्क) मध्यपूर्व के महत्वपूर्ण देश सीरिया में तख्ता पलट हो चुकी है,इसके साथ ही असद परिवार के 63 सालों के राज्य का अंत हो गया है
सूचना है कि राष्ट्रपति बशारुल-असद देश छोड़ कर निकल चुके हैं,लेकिन वो कहां गए हैं इसकी जानकारी नहीं,बशार ने अपनी फैमिली को पहले ही रूस भेज दिया था
जनांदोलन से निकले संगठन एचटीएस ने हलब, इदलिब,हमा,हमस के बाद अब राजधानी दमिश्क पर भी कब्ज़ा कर लिया है,संगठन ने दमिश्क के आर्मी सेंटर व सरकारी चैनल पर कब्ज़ा करने और सेंट्रल जेल से बंदियों को रिहा करने के बाद दमिश्क पर अपने कब्जे का ऐलान कर दिया है
एचटीएस के चीफ़ अबू मुहम्मद जौलानी ने ऐलान किया है कि “पूर्ण सत्ता परिवर्तन तक प्रधानमंत्री मुहम्मद अलजलाली ही सरकारी काम काज को देखेंगे”,जबकि प्रधानमंत्री जलाली ने भी शांति के साथ सत्तापरिवर्तन करने का ऐलान कर दिया है
मालूम हो कि 1961 से लगातार असद फैमिली सीरिया के सत्ता पर काबिज़ है,जिसमें 39 सालों तक हाफ़िज़ अलअसद राष्ट्रपति रहे फिर कुछ दिन के बीच के बाद से उनके बेटे बशारुल असद राष्ट्रपति बने रहे हैं
हाफ़िज़ अलअसद पर अखवानुल मुस्लिमीन के हज़ारों कार्यकर्ताओं व लाखों आम लोगों की हत्या का आरोप लगता रहा है!2011 में अरब देशों में फूटे जनविद्रोह के बीच सीरिया में भी बड़ा सत्ता विरोधी आंदोलन शुरू हुआ,जिस आंदोलन को बशर आर्मी ने हथियारों के बल पर कुचला और उसमें भी सैंकड़ों लोगों की हत्या हुई
2011 के विद्रोह की असफलता के बाद वहां कई हथियारबंद संगठन बनने लगे जिसमें सब से मज़बूत संगठन अलकायदा का सीरियन ब्रांच जबहतून-नसरा था,2016 के बाद सभी विद्रोही संगठनों ने जबहत चीफ़ मुहम्मद जौलानी की अगुवाई स्वीकार कर ली और वहीं से हैयतू-त-तहरीर-अलशाम की स्थापना हुई जिसने इस बार डेढ़ हफ्ते में ही बशार के सारे क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर राजधानी पर भी कब्ज़ा जमा लिया है
सीरिया में अभी भी कुछ छेत्र ऐसे हैं जहां पर दूसरे गुटों का कब्ज़ा है,जिसमें सबसे बड़ा छेत्र कुर्दों का है जिसे अमेरिका व इजराइल का समर्थन हासिल है और उनके छेत्र में अमेरिका के बेस भी मौजूद है!तो वहीं एक छोटे से छेत्र में तुर्की के समर्थित संगठन का कब्ज़ा है जो कि तुर्की ने कब्ज़ा कर उनके हवाले किया था,ये छेत्र तुर्की के बॉर्डर पर मौजूद है!सीरिया के कुछ छोटे छेत्र जो कि चंद ज़िलों के बराबर है वो आईएसआईएस के कंट्रोल में भी है
सीरिया की इस पूरी लड़ाई में विपक्षी गुटों को तुर्की का साथ हासिल रहा है,तो वहीं बशार सरकार को रूस,ईरान,हिजबुल्लाह और ईरानी प्रॉक्सी का साथ मिलता रहा है
अमेरिका इस मामले में पूरी चुप्पी साधे नज़र आ रहा है ,जबकि डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया की अस्थिरता का कारण बराक ओबामा की नीतियों को बताया है!दूसरी ओर इजराइल ने आने वाले खतरों से निपटने के लिए सीरिया के कब्ज़ा किए हुए छेत्र गोलान घाटी में सुरक्षा आर्मी की संख्या बढ़ा दिया है
अरब मुल्क जो कि 2011 के जनविद्रोह के समय विद्रोही गुटों के साथ खड़े थे,वे इस बार बशार के लिए नर्म दिख रहे हैं,अब उनका आगे का रुख देखना होगा
खबर है कि जल्द ही तुर्की,ईरान और रूस की मीटिंग कतर के दोहा में होगी,जिसके बाद रूस और ईरान समर्थित देशों की तरफ़ से सीरिया की नई सरकार को स्वीकारता मिल सकती है,जबकि तिर्की के राष्ट्रपति तैयब एर्दोगान पहले ही खुल कर एचटीएस के समर्थन में बोल चुके हैं
इस मामले में अमेरिका और यूरोप के लिए ये मुश्किल होगा कि अलकायदा से संबंधित इस्लामिक ताकतों की सरकार से कैसा बर्ताव रखे
इस पूरे मामले के बीच दुनिया भर में ये सवाल चर्चा में है कि इसका प्रभाव फलस्तीन व इजराइल जंग पर क्या पड़ेगा? जानकारों का मानना है कि इस परिवर्तन से फलस्तीन जंग पर खास असर नहीं पड़ेगा क्यूंकि सीरिया नई सरकार भी फलस्तीनी संगठनों के साथ वैसे ही खड़ी रहेगी जैसे कि ईरान,हिजबुल्लाह,तुर्की,कतर खड़े हैं,बल्कि कुछ लोगों का मानना है कि ये सरकार इजराइल के लिए ज्यादा चिंताएं पैदा करेगी क्यूंकि सीरिया के इस्लामिक संगठन भी उसी इखवान के कोख से निकले हैं जिसके कोख से फलस्तीन का संगठन हमास निकला है