दिल्ली (प्रेस रिलीज़/इंसाफ़ टाइम्स) पिछले 10 महीनों में, किसान मजदूर मोर्चा और एसकेएम (गैर-राजनीतिक) के बैनर तले कई किसान संगठन शंभू बॉर्डर और खनौरी बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए बैठे हुए हैं। फरवरी में उन्होंने दिल्ली की ओर मार्च निकालने की कोशिश की थी लेकिन हरियाणा पुलिस ने सुरक्षा बलों के साथ मिलकर इस मार्च को बेरहमी से दबा दिया था, जिसके परिणामस्वरूप कई किसानों की मौत हो गई थी। दिसंबर में अब तक किसानों ने दो बार ‘दिल्ली चलो’ मार्च निकालने की कोशिश की है, लेकिन हरियाणा के सुरक्षा बलों ने किसानों को अपनी मांगें उठाते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने से रोकने के लिए आंसू गैस और केमिकल स्प्रे का भी इस्तेमाल किया। इन परिस्थितियों में न्यायपालिका भी किसानों के शांतिपूर्ण विरोध के मौलिक अधिकार की रक्षा करने में भी विफल रही।
किसानों के विरोध प्रदर्शन व मार्च पर प्रतिबंध को बाकी राजकीय दमन से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए, यह असहमति पर व्यापक कार्रवाई का हिस्सा है। नागरिकों को कानून और व्यवस्था बनाए रखने जैसे तर्कहीन आधारों पर विरोध करने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। फासीवादी भाजपा सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे के नाम पर संगठनों पर प्रतिबंध लगाया गया, बस्तर के गहरे वन क्षेत्र में आदिवासी विरोध स्थल को जला दिया गया। ये प्रतिबंध मुंबई, बेंगलुरु, दिल्ली आदि जैसे महानगरीय शहरों में बहुत आम हैं, जहां यातायात में कथित व्यवधान का हवाला देकर विरोध प्रदर्शन की अनुमति नहीं है। यदि लोग विरोध प्रदर्शन करते हैं, तो उन्हें फर्जी एफआईआर, धमकी और यहां तक कि पुलिस द्वारा क्रूर पिटाई का सामना करना पड़ता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे भविष्य में ऐसा न करें। यह केवल प्रदर्शन करने तक ही सीमित नहीं है; यदि कोई संगठन सेमिनार या सार्वजनिक बैठक भी करते हैं, तो उन्हें समय पर पुलिस द्वारा रद्द कर दिया जाता है, और संबंधित अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए आयोजन स्थल को जबरदस्ती बंद कर दिया जाता है।
किसानों को दिल्ली की ओर मार्च करने से रोकना समाज के सभी दबे कुचले और शोषित वर्गो को यह संदेश देना है कि ब्राह्मणवादी हिंदुत्व फासीवादी भाजपा-आरएसएस सरकार के अंतर्गत, असहमति व्यक्त करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। जो लोग ऐसा करने का प्रयास करेंगे उन्हें खतरनाक परिणामों का सामना करना पड़ेगा, जिसमें बर्बर हत्या भी शामिल है।
इस प्रकार का कृत्य बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का गंभीर उल्लंघन हैं,लोगों के बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाना बहुत गंभीर विषय है। हमें एक साथ आने और असहमति की आवाजों को दबाने की इन कोशिशों का विरोध करने की जरूरत है।
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