डॉ. मोहम्मद शहाबुद्दीन: राजनीति, विरासत ?

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

आज जब बिहार के चर्चित और प्रभावशाली राजनेता डॉ. मोहम्मद शहाबुद्दीन की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है, तो यह अवसर उनके जीवन के बहुआयामी पहलुओं पर विचार करने का भी है। एक ऐसा नेता, जिसने सीवान को राष्ट्रीय राजनीति के मानचित्र पर लाकर खड़ा किया, लेकिन जो अपने पूरे राजनीतिक जीवन में प्रशंसा और विवाद दोनों के केंद्र में रहे।
शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई 1967 को बिहार के सीवान जिले के प्रतापपुर गांव में हुआ था। उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातक, परास्नातक और पीएचडी की उपाधि हासिल की। एक पढ़े-लिखे, पृष्ठभूमि वाले युवा के रूप में उन्होंने राजनीति की दुनिया में कदम रखा जहाँ जल्द ही उनकी पहचान एक तेज-तर्रार, बेबाक और जनाधार वाले नेता के रूप में बनी। छात्र राजनीति के बाद माले के खिलाफ़ संघर्ष से वह मुख्यधारा की राजनीति में आए और फिर उसके बाद जो हुआ वो एक इतिहास है।
डॉ. शहाबुद्दीन का जीवन शिक्षा, संघर्ष, करिश्माई नेतृत्व और आरोपों से बना एक विरोधाभासी कोलाज था। एक शिक्षित, तेजस्वी और स्पष्ट वक्ता के रूप में उन्होंने सियासत की दुनिया में कदम रखा और 1996 से 2004 तक लगातार चार बार सीवान से लोकसभा पहुंचने का कीर्तिमान स्थापित किया। अपने संसदीय क्षेत्र में उन्होंने सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किए, जिसने उन्हें जनता के बीच “विकास पुरुष” की छवि दिलाई।

लेकिन इसी छवि के समानांतर एक दूसरा चेहरा भी उभरता है — एक ऐसा चेहरा जिसे ‘बाहुबली’, ‘डॉन’ और ‘राजनीति में अपराध का प्रतीक’ कहकर पुकारा गया। उन पर हत्या, अपहरण, रंगदारी सहित कई आपराधिक मामलों में आरोप लगे और वे लंबे समय तक जेल में बंद भी रहे। यह दोहरी पहचान ही शहाबुद्दीन की राजनीति को रहस्यमयी और कई मायनों में प्रभावशाली बनाती है। समर्थकों के लिए वे सामाजिक न्याय और अल्पसंख्यकों की आवाज थे, जबकि आलोचकों के लिए वे बिहार की राजनीतिक गिरावट की एक बानगी।

दिलचस्प यह है कि जेल के भीतर रहते हुए भी उन्होंने सीवान की राजनीति पर पकड़ बनाए रखी। उनके इशारे पर राजनीतिक समीकरण बदलते रहे। वे राजद के शीर्ष नेतृत्व, विशेषकर लालू प्रसाद यादव के सबसे भरोसेमंद लोगों में गिने जाते थे। इस समीकरण का फायदा राजद को वर्षों तक मिला, खासकर मुस्लिम मतदाताओं के बीच। लेकिन उनके निधन के बाद जिस तरह से राजद ने उनके परिवार को दरकिनार किया, उसने पार्टी के भीतर एक असंतोष और मुस्लिम समुदाय में नाराज़गी को जन्म दिया — भले ही अब उनका परिवार पुनः राजद का हिस्सा बन चुका हो।

डॉ. शहाबुद्दीन की विरासत को कोई एक खांचे में नहीं रखा जा सकता। वे न तो सिर्फ ‘बाहुबली’ थे, न केवल ‘विकास पुरुष’ — बल्कि एक ऐसे राजनेता, जिनके प्रभाव की परछाई बिहार की सियासत पर आज भी स्पष्ट दिखती है। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि भारतीय राजनीति में लोकप्रियता, जनाधार, विवाद और सत्ता किस तरह एक-दूसरे से गुँथे होते हैं।

आज जब हम बिहार की सामाजिक-राजनीतिक संरचना को समझने की कोशिश करते हैं, तो डॉ. मोहम्मद शहाबुद्दीन का अध्याय नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उनकी विरासत, भले ही कितनी भी विवादित हो, बिहार की राजनीति में उनकी जगह को स्थायी बनाती है। भले ही उनके विरोधी उनको बाहुबली कहते हों, वो अपने समर्थकों के लिए आज भी साहेब हैं, आज भी एक बड़ा तबका उनको मसीहा के रूप में याद करता है।

(ये स्टोरी मुहम्मद फैजान ने तैयार किया है)

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