साहिर लुधियानवी फिल्मी गीतों के साथ ही उर्दू साहित्य पर भी काफी लिखा।उन्होंने प्रगतिशील विचारधारा को आगे बढ़ाने का काम किया। वे केवल गीतकार ही नहीं,वरन् सामाजिक परिवर्तन के क्रांतिकारी शायर भी थे,जिन्होंने हिंदुस्तान की 12 भाषाओं में लिखा है।उक्त बातें मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा मुश्ताक अहमद ने मुख्य अतिथि के रूप में सी एम कॉलेज,दरभंगा के उर्दू विभाग द्वारा आयोजित मौलाना मजहरूल हक एक्सटेंशन लेक्चर कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कहा।कुलसचिव ने कहा कि सी एम कॉलेज से मेरा गहरा रिश्ता रहा है।उन्होंने कार्यक्रम आयोजन के लिए उर्दू विभाग को तथा प्रधानाचार्य के रूप में 6 माह पूरा करने के लिए प्रधानाचार्य प्रो विश्वनाथ झा को बधाई दी तथा कार्यक्रम में बुलाए जाने हेतु धन्यवाद दिया।मुख्य वक्ता के रूप में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय,नई दिल्ली के उर्दू प्राध्यापक प्रो नदीम अहमद ने मुख्य वक्ता के रूप में कहा कि साहिर के हर गीत व शायरी लोकप्रिय एवं इंसानियत का प्रेरक संदेश देता है।उनका कोई धर्म नहीं था,बल्कि वे इंसानियत को धर्म मानते थे।उन्होंने समस्या के निदान हेतु जंग को आवश्यक नहीं मानते थे,बल्कि जंग को ही एक समस्या मानते थे।वे अमन चाहते थे तथा लोकप्रियता के शिखर पर रहते हुए भी आमलोगों से जुड़े रहे। उनके अधिकांश गीत सदाबहार हैं। साहिर ऐसा समाज चाहते थे,जिसमें सभी सुशिक्षित एवं सुखी-संपन्न हो। उन्हें फिल्मी गीतकार के रूप में अनेक सम्मान प्राप्त हुआ और उनके लिखित भजन आज भी लोकप्रिय हैं, जिन्हें मंदिरों में गाया जाता है।अध्यक्षीय संबोधन में प्रधानाचार्य प्रो विश्वनाथ झा ने कहा कि आज का दिन ऐतिहासिक है।हमें साहिर के शायर,गीत,कृतित्व एवं व्यक्तित्व से स्नेह है।उन्होंने महिलाओं के प्रति अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद की। वे जन्मजात विद्रोही थे जो पुरुष प्रधान समाज व कोठों-अट्टालिकाओं के खिलाफआवाज उठाई। वह पूरे आत्मविश्वास से गीत व शायर लिखते थे। प्रधानाचार्य ने उर्दू भाषा-साहित्य के समुचित विकास हेतु महाविद्यालय में उर्दू-भवन की स्थापना की चर्चा करते हुए कहा कि इससे उर्दू भाषा-साहित्य के अध्ययन-अध्यापन एवं शोध-कार्य के साथ ही उसका समुचित विकास होगा।अतिथियों का स्वागत करते हुए उर्दू विभागाध्यक्ष डा जफर आलम ने कहा कि हमारे महाविद्यालय के लिए यह गर्व की बात है कि साहिर के सौवें जन्मदिवस पर इस व्याख्यान का आयोजन हो रहा है। आज सारी दुनिया में जिस तरह का माहौल है,उसमें उन्हें पढ़ने-पढ़ाने की ज्यादा जरूरत है। उनकी शायरी हर तरह की प्रताड़नाओं एवं अत्याचारों के विरुद्ध एक पुरजोश आवाज है।एक्सटेंशन लेक्चर के संयोजक डा अब्दुल हई ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए व्याख्यान के मूल बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह व्याख्यान भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद् ,नई दिल्ली की सहायता से आयोजित हो रहा है। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो आफताब अशरफ,डॉ मोतिउर रहमान,डा बसी अहमद,डा शमशाद जमाल,डा अरशद, कोलकाता मानू के क्षेत्रीय निदेशक डा इमाम आजम,मानू बीएड के प्राध्यापक डा मुजफ्फर इस्लाम,प्रो इंदिरा झा,डॉ अवनि रंजन सिंह,प्रो डी पी गुप्ता,प्रो शिप्रा सिन्हा,डा आर एन चौरसिया,प्रो गिरीश कुमार,प्रो नारायण झा,डा वासुदेव साहू,डा प्रीति कनोडिया,डा जिया हैदर, डॉ नशाफत कमाली,डा मसरूर सोगरा,डा आलोक रंजन,प्रो दिवाकर सिंह,डा अखिलेश कुमार विभू,प्रो ललित शर्मा,डा मयंक श्रीवास्तव,डा रीता दुबे,डा मीनाक्षी राणा,डा मयंक श्रीवास्तव,डा शशांक शुक्ला,प्रो अमृत कुमार झा,डा प्रेम कुमारी, प्रो रागनी रंजन,तनीमा कुमारी,डा मनोज कुमार सिंह,डा विकास कुमार,डा संजीत कुमार झा,डा रूपेंद्र झा,डा विजयसेन पांडे तथा डा राफिया काजिम सहित एक सौ से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिह्न से किया गया। धन्यवाद ज्ञापन संयोजक अब्दुल हई ने किया।