क्या भारत में मीडिया सरकार के निशाने पर है ? इमरान अहमद: छात्र पत्रकारिता सह जनसंचार विभाग मानू हैदराबाद

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भारत दुनिया का सब से बड़ा लोकतांत्रिक देश है। और लोकतंत्र में मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है। लेकिन आज के समय में चौथा स्तंभ लहूलुहान है। उसकी दरारों से खून रिस रहा है और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ आज कहीं न कहीं कमज़ोर हो रहा है। क्योंकि उस स्तंभ को खड़ा करने वाले प्रेस और पत्रकार सरकार के निशाने पर है। इस समय देश में दो तरह की मीडिया काम कर रही है। जिस मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है। यह स्तंभ मिशन के रूप में कार्य न करके एक उद्योग के रूप में स्थापित हो गया है। जिसके चलते मीडिया की वर्तमान शैली पर प्रश्नचिह्न लग गया है, जिसको गोदी मीडिया कहा जाता है ।और एक वह मीडिया और पत्रकार जो इस तानाशाह हुकूमत के विरुद्ध सच्चाई के साथ सत्ता से सवाल कर रही है।जर्मन न्यूज़ वेबसाइट बीडब्ल्यू की एक खबर के अनुसार, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत पत्रकारिता के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में शामिल है। आरएसएफ द्वारा जारी की गई रिपोर्ट भी यही दिखाती है, कि सर्वे किए गए 180 देशों में भारत का स्थान लगातार गिर रहा है, 2016 में 133वें स्थान पर था जबकि 2021 में भारत 142वें और इस साल 2022 में भारत 150वें स्थान पर फिसल गया है। भारत तेजी से इस सूची में नीचे आया है जो ये दर्शाता है कि भारत में पत्रकारिता की स्थिति कितनी खराब है। न्यूयॉर्क स्थित एक संगठन ‘पोलीस प्रोजेक्ट’ ने भारत में पत्रकारों के खिलाफ हो रही हिंसा पर एक शोध किया है। जिसमें बताया गया है कि मई 2019 से अगस्त 2021 तक भारत में लगभग 228 पत्रकारों पर 256 हमले हुए हैं। इन हमलों में वह पत्रकार ज्यादा शिकार हुए हैं जो भारत के दूरदराज के इलाकों में ग्राउंड पर रिपोर्टिंग करते हैं। इन पत्रकारों को फर्जी मामलों में गिरफ्तारी से लेकर हत्या और न जाने कितनी तरह की हिंसा झेलनी पड़ती है। अब सवाल उठता है कि एक पत्रकार जो समाज के उस आखरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति की आवाज को सत्ताधीशों के कानों तक पहुंचाने का भरपूर प्रयास करता है आखिर उसकी कलम की आवाज को कौन हमलों से दबाने की कोशिश कर रहा है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स या आरएसएफ के द्वारा जारी की गई ताजा वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जनवरी 2022 से अब तक, एक पत्रकार की मौत हुई है और 13 पत्रकार हिरासत में हैं। सरकार इस डाटा को स्वीकार नहीं करती बल्कि वह इन सभी रिपोर्टों को भारत के खिलाफ षड्यंत्र और जनतांत्रिक और प्रेस की आजादी के जगमगाते उदाहरण के रूप में उसकी पहचान को धूमिल करने की साजिश की तरह देखती है। हालात दिन-ब-दिन बिगड़ रहे हैं। जहां एक तरफ सच्चाई से रिपोर्ट करने वाले, उसे उजागर करने वाले और सवाल पूछने वाले पत्रकारों को परेशान किया जा रहा है, उन पर मामले लादे जा रहे हैं और कई बार उनकी हत्या भी हो रही है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर दस मानवाधिकार संगठनों ने कहा कि भारत का सरकारी तंत्र सरकार की नीतियों और कार्रवाइयों की आलोचना के लिए पत्रकारों को निशाना बना रहा है। बयान जारी करने वाले संगठन जिस में कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स, फ्रीडम हाउस, पेन अमेरिका, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स, इंटरनॅशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स, सिविकस, एक्सेस नाउ, इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपने बयान में कहा कि मीडिया की आज़ादी पर बढ़ते प्रतिबंधों के बीच भारत सरकार के सरकारी तंत्र ने पत्रकारों को आतंकवाद और राजद्रोह के झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया है आलोचकों एवं स्वतंत्र समाचार संगठनों को नियमित रूप से निशाना बनाया है, जिसमें उनके ऑफिस पर छापेमारी भी शामिल हैं।हम आप को ऐसे कुछ घटना के बारे में बताएंगे जो पत्रकारों के साथ कुछ वर्षों में घटें हैं। अप्रैल 2022 में दिल्ली में हिंदू राष्ट्रवादी समूहों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग कर रहे कम-से-कम पांच पत्रकारों पर हमला किया गया। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने इनमें से एक पत्रकार मीर फैसल पर एक ट्वीट के जरिए नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए आपराधिक जांच शुरू की। मीर फैसल ने अपने इस ट्वीट में आरोप लगाया था कि इस कार्यक्रम में शामिल लोगों ने उन पर और एक फोटो पत्रकार पर इस कारण हमला किया क्योंकि वे मुसलमान हैं। मार्च 2022 में मुंबई में हवाई अड्डे के अधिकारियों ने मुस्लिम महिला पत्रकार आलोचक राणा अय्यूब को एक पत्रकारिता कार्यक्रम को संबोधित करने के लिए लंदन जाने से रोक दिया। जब अधिकारीयों से रोके जाने का कारन पूछा तो अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी की चल रही जांच के कारण ऐसा किया है। जबकि राणा अय्यूब ने इन आरोपों से इंकार किया। स्वतंत्र संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आरोप लगाया है कि भारतीय अधिकारी राणा अय्यूब को वर्षों से परेशान कर रहे हैं। सरकारी समर्थकों और हिंदू राष्ट्रवादी ट्रोल्स ने सोशल मीडिया पर अय्यूब को बार-बार गालियां और धमकी दी हैं। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने अपने रिपोर्ट में बताया कि राणा अय्यूब सहित कम-से-कम 20 महिला अप्रैल 2022 में दिल्ली में हिंदू राष्ट्रवादी समूहों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम कि रिपोर्टिंग कर रहे कम-से-कम पांच पत्रकारों पर हमला किया गया। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने इनमें से एक पत्रकार मीर फैसल पर एक ट्वीट के जरिए नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए आपराधिक जांच शुरू की। मीर फैसल ने अपने इस ट्वीट में आरोप लगाया था कि इस कार्यक्रम में शामिल लोगों ने उन पर और एक फोटो पत्रकार पर इस कारण हमला किया क्योंकि वे मुसलमान हैं।कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने पाया कि राणा अय्यूब सहित कम-से-कम 20 महिला मुस्लिम पत्रकारों के नाम फर्जी “नीलामी” ऐप पर डाल कर उन्हें “बिक्री हेतु” बताया गया। भारत में अनेक महिला पत्रकारों, खास तौर से जो सरकार की आलोचना करती हैं, उन्हें अक्सर सोशल मीडिया पर बढ़ती धमकियों का सामना करना पड़ रहा है जिसमें बलात्कार और हत्या की धमकी शामिल है। ऐसी धमकियां अक्सर खुद को बीजेपी समर्थक बताने वाले सोशल मीडिया यूजर्स देते हैं। एक अन्य मुस्लिम पत्रकार सिद्दीकी कप्पन अक्टूबर 2020 से जेल में बंद हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस ने आतंकवाद राजद्रोह के आरोपों में गिरफ्तार किया था। कप्पन को उस समय गिरफ्तार किया गया जब वह एक नाबालिग दलित छात्रा के सामूहिक बलात्कार और हत्या विरोध में हो रहे विरोध प्रदर्शन की रिपोर्ट करने के लिए नई दिल्ली से उत्तर प्रदेश के हाथरस जा रहे थे। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में सरकारी तंत्र ने सरकार की आलोचना करने और सरकार की नाकामी दिखाने वाले पत्रकारों के खिलाफ सब से ज़्यादा मुकदमें दर्ज हुए हैं । 2017 से योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार ने 66 पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए हैं। तो वही कमिटी अगेंस्ट असाल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स की फरवरी 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, अन्य 48 पत्रकारों पर हमले हुए हैं। 2019 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ग्रामीण पत्रकार पवन जायसवाल पर सरकार को बदनाम करने की साजिश का इल्जाम लगाया था, क्योंकि उन्होंने मिर्जापुर गांव में मिड डे मील के दौरान बच्चों को रोटी के साथ नमक खाते हुए दिखाया था। जम्मू और कश्मीर में सरकार ने अगस्त 2019 में धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर में कम-से-कम 35 पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग के कारण पुलिस पूछताछ, छापे, धमकियों, हमले, आवाजाही की आज़ादी पर प्रतिबंध या मनगढ़ंत आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ा है। सरकारी तंत्र ने पत्रकारों के घरों पर छापेमारी की और उनके सेल फोन जब्त किये गए हैं। कश्मीरी पत्रकार आसिफ़ सुल्तान को आपराधिक साजिश रचने, आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में अगस्त 2018 में गिरफ्तार होने के बाद यूएपीए के तहत लगभग चार सालों तक हिरासत में रखा गया।अप्रैल 2022 में, सरकार ने जन सुरक्षा कानून के तहत फहद शाह, आसिफ सुल्तान और सज्जाद गुल को फिर से तब गिरफ्तार कर लिया, जब उन्हें उनकी पत्रकारिता के खिलाफ दायर अन्य मामलों में जमानत दे दी गई थी। कश्मीर में पत्रकारों को क्षेत्र में सरकार द्वारा बार-बार इंटरनेट बंद किए जाने के कारण भी अपनी रिपोर्टिंग के लिए संघर्ष करना पड़ा है। एक्सेस नाउ के अनुसार, भारत ने 2021 में कम-से-कम 106 बार इंटरनेट बंद किया, इससे यह “लगातार चौथे साल दुनिया में इंटरनेट पर सबसे ज्यादा पाबंदी लगाने वाला देश” बन गया है। भारत के भीतर, जम्मू और कश्मीर सबसे अधिक प्रभावित राज्य रहा, जहां कम-से-कम 85 बार इंटरनेट बंद किया गया। पेगासस प्रोजेक्ट कि लीक हुई सूची में 40 से अधिक ऐसे भारतीय पत्रकारों के नाम थे जिन पर सरकार के ज़रिये निगरानी की जा रही थी और सरकार के निशाने पर थे। सरकार मानवाधिकारों में कटौती करने और ऑनलाइन मंचों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने के लिए टेक्नोलॉजी का ज़्यादा का इस्तेमाल कर रही है। फरवरी 2021 में, भारत सरकार ने इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी की नियमावली प्रकाशित की, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार को खतरे में डालती है। जनतंत्र के तौर पर 75 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी यह हैरान करने वाली बात है कि प्रेस की आजादी का विचार या उसका न होना, जनता में ज्यादा लोगों को परेशान नहीं करता। लगता है कि आम लोगों के जीवन में मीडिया कोई बड़ी भूमिका नहीं रखता। लेकिन वोट करने वाली जनता कि इस नजरअंदाजी के बावजूद भी यह कहना जरूरी नहीं, कि एक आजाद प्रेस के बिना इस देश में जो कुछ हो रहा है, वह पता ही न चल पाता।(इमरान अहमद ने ये आर्टिकल कलाम रीसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)

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