इमरान अहमद: छात्र पत्रकारिता सह जनसंचार विभाग मानू हैदराबाद
इन दिनों बिहार की राजनीति में खूब उथल पुथल मचा हुआ है। भले ही बिहार में जदयू और भजपा की डबल इंजन की सरकार चल रही है। लेकिन आपको बात दें कि पिछले कुछ दिनों से बिहार एनडीए में खटपट खबरें आ रही है। और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी भाजपा का साथ छोड़ राजद के साथ जाने के संकेत दे रहे हैं। राजनीति की बड़े बड़े पंडित ये मानते हैं की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कब कौन सा फैसला ले लें ये किसी को नहीं मालूम होता है। और इन दिनों मुख्यमंत्री नितीश कुमार भी यही संकेत दे रहे हैं। इस में कोई दो राय नहीं है की बहुत सारे मुद्दे पर जदयू हमेशा भाजपा से अपना अलग रुख रखती है। मौजूदा समय में बिहार में एक नई राजनीतिक परिस्थिति उत्पन्न हुई है। सरकार में साझीदार जदयू और भाजपा एक दूसरे के आमने सामने हैं। आलम ये की बहुत सारे मुद्दे पर सदन से सड़क तक दोनों दल एक दूसरे के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। अब तो गठबंधन को भी इन दलों के नेता चुनौती दे रहे हैं। साल 2005 में जब से नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के साथ बिहार में सरकार में आये और 2005 से 2013 तक बिहार में सरकार चलाई। लेकिन 16 जून 2013 को नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया और 2014 लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार अकेले लड़े और और सिर्फ 2 सीट ही जीत पाई । लोकसभा चुनाव हारने के बाद नीतीश कुमार ने अपने धुर विरोधी ‘बड़े भाई’ लालू प्रसाद को याद किया। और जनता दल यूनाइटेड ने राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया। और 2015 का विधनसभा चुनाव राजद, जेडीयू और कांग्रेस ने एक साथ मिल कर लड़ा और सत्ता पे काबिज़ हो गए । लेकिन लालू और नितीश का संग ज़्यादा दिन नहीं चला और डेढ़ साल बाद महागठबंधन बिखर गया और जदयू ने वापस बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना ली। बीजेपी और जेडीयू के रिश्ते बीच के दो साल छोड़ दें तो काफी बेहतर रहे हैं। वर्ष 2020 में जदयू और भाजपा के गठबंधन के साथ बिहार में एनडीए की सरकार फिर से बन तो गई, मगर इस सरकार में शुरू से ही रिश्तों की मिठास कम दिखी। और 2020 में बीजेपी और जदयू सरकार के बनते ही जदयू का बीजेपी से अलग सुर रहा। पिछले दिनों जातीय जनगणना के मुद्दे पर जदयू ने विपक्ष के साथ मिल पटना से दिल्ली तक भाजपा पर दबाव बनाया जिसके लिए बीजेपी तैयार नहीं थी। इसके बाद जदयू ने एक और पुराने मुद्दे को उठाया और इस बार मुद्दा रहा विशेष राज्य का दर्जा। इस मुद्दे को अलग-अलग स्तर पर पिछले कुछ दिनों से जदयू के नेता उठा रहे थे मगर इसने गठबंधन में आग उस समय लग गई जब लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद ललन सिंह ने विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। एनडीए में दरार पड़ने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी के कार्यक्रमों से दूरी बना ली। जदयू ने राष्ट्रपति चुनाव में ज़रूर एनडीए उमीदवार द्रौपदी मूर्मु का समर्थन किया। लेकिन सीएम नीतीश नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुए। वहीं जेडीयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने पीएफआई के मामले में बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष संजय जायसवाल समेत पार्टी के नेताओं को फालतू बयानबाजी नहीं करने की नसीहत दी। वैसे तो बीजेपी और जेडीयू के नेता कह रहे हैं कि बिहार एनडीए में सब ऑल इज वेल है। मगर कई मुद्दों पर दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच की तकरार नजर आ रही है। बीजेपी से नजदीकियों की वजह से जदयू ने आरसीपी सिंह को पूरी तरह साइडलाइन कर दिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो बीजेपी के कार्यक्रमों से दूरी भी बना ली है। दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में सीएम नीतीश कुमार नहीं पहुंचे। इस कार्यक्रम में एनडीए शासित अधिकतर राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद रहे। पिछले महीने बिहार में योग दिवस के मौके पर आयोजित हुए कार्यक्रमों से भी सीएम नीतीश समेत जदयू के सभी बड़े नेताओं ने दूरी बनाए रखी थी। इस तनातनी में उस समय और आग लग गई जब सरकारी स्कूलों में रविवार के बजाय शुक्रवार को छुट्टी के मामले में बिहार एनडीए में एक बार फिर तकरार सामने आई । बीजेपी जहां उर्दू मीडियम स्कूलों में जुमे की छुट्टी पर आपत्ति जता रही है। वहीं, नीतीश कुमार की जदयू और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा ने इसका समर्थन करते हुए, इसे मुद्दा बनाने से इनकार कर दिया है। जैसे ही यह मुद्दा मीडिया में आया स्थानीय बीजेपी नेता इसपर आपत्ति जताने लगे। बीजेपी का आरोप है कि शिक्षा में धर्म घुसाया जा रहा है, यह व्यवस्था गलत है। हालांकि इस मामले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुप्पी साधे रखी है। मगर जदयू के नेता बीजेपी नेताओं के खिलाफ मुखर हैं।जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि राजनेताओं को हर छोटी-छोटी बातों का बवंडर नहीं बनाना चाहिए। लोगों को पता होना चाहिए कि संस्कृत महाविद्यालयों में भी हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर महीने की प्रतिपदा और अष्टमी तिथियों को छुट्टी होती है। बिहार में सत्ताधारी जदयू और बीजेपी के बीच जारी तनातनी को उस समय और हवा मिली । इस बीच बिहार के राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री एवं औराई से विधायक रामसूरत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा राजस्व विभाग में बड़े पैमाने पर किए गए ट्रांसफर को रद्द करने के बाद रामसूरत राय नाराज थे। खबर आई थी कि उन्होंने डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद से मिलकर इस्तीफे की पेशकश भी कर दी थी। नीतीश कुमार भी बीजेपी का साथ छोड़ राजद के साथ जाने के संकेत दे रहे थे। इस बीच नीतीश का रुख़ देख बीजेपी ने खुद को बैकफुट पर खड़ा कर दिया है। नीतीश के दबाव के कारण ही अभी हाल संपन हुए संयुक्त मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक में बीजेपी ने ये फ़ैसला लिया कि आगामी चुनावों में बीजेपी जदयू के साथ चुनाव में उतरेगी। बैठक में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि बीजेपी आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 और विधानसभा चुनाव 2025 में अपनी गठबंधन साथी जदयू के साथ ही चुनाव लड़ेगी। लेकिन एनडीए का बिहार में चेहरा कौन होंगे इसका खुलासा नहीं किया। चेहरा सीएम नीतीश कुमार होंगे या नहीं, इस पर कन्फ्यूजन बरकरार है। लेकिन इन सब तकरार को उस समय और हवा मिली जब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने गुरुवार को मीडिया से बातचीत में यह बड़ा बयान दिया। ललन सिंह ने बातचीत में सीधे कहा कि 2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जदयू का साथ लड़ना तय नहीं है। ललन सिंह ने यह भी कहा कि हम बीजेपी को नकार नहीं रहे हैं। अभी हम तैयार हो रहे हैं, लेकिन कल किसने देखा है। पटना में बीजेपी के सात मोर्चों की संयुक्त कार्यसमिति की बैठक में गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में जदयू के साथ बीजेपी के संबंधों को भी स्पष्ट कर दिया था। लेकिन अब ललन सिंह के आए इस बयान से हलचल तेज हो गई है। अब देखना ये होगा की जदयू और बीजेपी 2024 का लोकसभा चुनाव और 2025 का विधानसभा एक साथ लड़ती है। या नितीश कुमार अपने बड़े भाई लालू यादव के साथ जाएंगे क्योंकि नीतीश कुमार के बारे ऐसा कहा जाता है की नीतीश कुमार कब कौन सा फैसला ले लें ये किसी को मालूम नहीं होता है।(इमरान अहमद ने ये आर्टिकल कलाम रीसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)