पटना (प्रेस रिलीज़/इंसाफ़ टाइम्स) 09 सितंबर, 2022 को, केरल के पत्रकार सिद्दीक़ी कप्पन, जिन्हें अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था, को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी। हाथरस सामूहिक बलात्कार मामले में एक 19 वर्षीय दलित महिला का बलात्कार किया गया था और इस जघन्य अपराध के 2 हफ्ते बाद उसकी मौत हो गई। इस मामले के बाद पूरे देश में आक्रोश फैल गया था। इसी मामले के बाद कप्पन को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। यूपी पुलिस ने कप्पन को तीन अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया था, यह आरोप लगाते हुए कि उनकी योजना जाति के आधार पर क्षेत्र में तनाव पैदा करने और कानून-व्यवस्था की स्थिति को बाधित करने की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कप्पन को जमानत देते हुए कहा कि “हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।” जहां तक अपने आरोपों के समर्थन में यूपी पुलिस ने जो सबूत पेश किए थे, उनका कोई महत्व नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने भी उक्त जमानत मंजूर करते हुए इस ओर इशारा किया था. कप्पन पर कथित आतंकी फंडिंग के लिए कठोर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाया गया था, एक ऐसा अधिनियम जिसका इस्तेमाल देश भर के कई कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और पत्रकारों को जेल में बंद करने और चुप कराने के लिए किया गया है, जो न्याय के लिए अपनी आवाज उठा रहे हैं। मानवाधिकार संगठन राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन (NCHRO) केरल के पत्रकार को जमानत देने का स्वागत करता है। साथ ही, हम यह भी बताना चाहेंगे कि उनकी गिरफ्तारी पहली जगह में एक गंभीर अन्याय थी। कप्पन केे खिलाफ बनाया गया मामला पूरी तरह से मनगढ़ंत है, और उन्हें सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि उनका इस इरादा जघन्य अपराध पर रिपोर्ट करने का था, और यूपी सरकार इसे उजागर होने से रोकने की कोशिश कर रही थी। हम सिद्दीकी कप्पन को दी गई जमानत का स्वागत करते हैं और इस तथ्य पर भी शोक व्यक्त करते हैं कि उन्हें एक मनगढ़ंत मामले में दो साल के लिए कैद किया गया था। इसी के साथ हम एक बार फिर यह भी मांग करते हैं कि सभी राजनीतिक कैदियों को तुरंत रिहा किया जाए। हम अन्य सभी राजनीतिक संगठनों से भी यही मांग करने के लिए आगे आने का आग्रह करते हैं। कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, शिक्षाविदों और न्याय के लिए आवाज उठाने वाले किसी भी व्यक्ति पर फासीवादी हमले को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और इसे मजबूती से चुनौती दी जाएगी।