बिहार जातिगत जनगणना मामले में सुप्रीम कोर्ट के जज ने खुद को सुनवाई से अलग किया

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पटना (महताब आलम/इंसाफ टाइम्स)

पटना (महताब आलम/इंसाफ टाइम्स)

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजय करोल ने बुधवार को बिहार सरकार द्वारा राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण कराने के बिहार सरकार के फैसले पर रोक लगाने के बाद पटना हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
जस्टिस करोल 6 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति से पहले पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस मामले को हाईकोर्ट में निपटाया है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ के समक्ष बुधवार को याचिका सूचीबद्ध की गई थी।
बिहार राज्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने अनुरोध किया कि कल तत्काल लिस्टिंग की मांग करने की स्वतंत्रता दी जाए। बेंच ने इस पर सहमति जताई।
हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया कहा कि जाति आधारित सर्वेक्षण जनगणना के बराबर है जिसे करने के लिए राज्य सरकार के पास कोई शक्ति नहीं है।
हाईकोर्ट ने कहा,

“प्रथम दृष्टया, हमारी राय है कि राज्य के पास जाति-आधारित सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं है, जिस तरह से यह अब फैशन में है, जो जनगणना की राशि होगी। इस प्रकार संघ की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण होगा।” बिहार सरकार ने 7 जनवरी, 2023 को जाति सर्वेक्षण शुरू किया था। पंचायत से जिला स्तर तक सर्वेक्षण में मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से डिजिटल रूप से प्रत्येक परिवार पर डेटा संकलित करने की योजना है।
याचिकाकर्ता इस आधार पर राज्य सरकार की अधिसूचना को रद्द करना चाहता है कि जनगणना का विषय भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 1 में आता है और केवल केंद्र सरकार को जनगणना करने पर विचार किया जाता है।
याचिका में कहा गया कि जनगणना अधिनियम 1948 की व्यापक योजना के अनुसार, केवल केंद्र सरकार के पास नियम बनाने, जनगणना कर्मचारी नियुक्त करने, जनगणना करने के लिए मांग परिसर, मुआवजे का भुगतान, सूचना प्राप्त करने की शक्ति, कार्यों की मांग आदि के संबंध में अधिकार है।
यह आगे तर्क दिया कि 1948 का जनगणना अधिनियम में जाति आधारित जनगणना का प्रावधान नहीं किया गया है। सरकारी अधिसूचना की इस आधार पर आलोचना की गई कि इसने “संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया।”
याचिका में राज्य सरकार की अधिसूचना को अवैध और असंवैधानिक और देश की एकता और अखंडता पर प्रहार करने और तुच्छ वोट बैंक की राजनीति के लिए जाति के आधार पर लोगों के बीच सामाजिक वैमनस्य पैदा करने के प्रयास के रूप में बताया गया।

बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था
इधर, पटना हाईकोर्ट ने 04 मई को अंतरिम फैसले में बिहार सरकार के तर्क को अस्वीकार किया था कि वह जाति आधारित गणना थी। पटना हाईकोर्ट ने 03 जुलाई को अगली तारीख देते हुए बिहार में जाति आधारित जनगणना पर अंतरिम रोक लगाई थी तो सरकार ने जल्द तारीख देने की अपील की। वह अपील भी बेकार गई तो हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले में अंतिम फैसले का लक्षण मानते हुए बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बुधवार को सुप्रीम अदालत में इसकी सुनवाई टल गई।

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