अनस फारूकी
New Broadcasting Bill 2024: केंद्र सरकार एक नया कानून लाने की तैयारी कर रही है. जिसमें सोशल मीडिया पर नियमित वीडियो अपलोड करने वाले, पॉडकास्ट बनाने वाले और ऑनलाइन समाचारों पर लेखन करने वाले व्यक्तियों को डिजिटल न्यूज ब्रॉडकास्टर के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस बिल का विरोध किया है, उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इसके कई खतरे गिनाते हुए विपक्षी दलों से प्रसारण विधेयक का विरोध करने का आह्वान किया है.
माना जा रहा है कि केंद्र सरकार जल्द ही ब्रॉडकास्टिंग बिल को लोकसभा में पेश करने वाली है.
इस कानून का पहला ड्राफ्ट बीते वर्ष 2023 में संसद में पेश किया था. लेकिन सरकार ने इसमें और बदलाव किया है. इस नए ड्राफ्ट को तैयार करने के लिए कुछ चुनिंदा लोगों से ही सलाह लिया गया है, जिससे विवाद खड़ा हो गया है.
भारत की अधिकतर मेनस्ट्रीम मीडिया सत्ता का गुणगान करने में लगी है जिसके कारण लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से सच बताने और जानने का एक रास्ता चुना है. जिसके कारण सरकार को कंटेंट क्रिएटर्स और यूट्यूबर
का डर सताने लगा है. कंटेंट क्रिएटर और वैकल्पिक मीडिया पत्रकार सरकार की इस बिल से डरे हुए हैं.
इस बिल के मुताबिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स यूट्यूब, इंस्टाग्राम और वेबसाइट पोर्टल्स पर वही दिखाया और सुनाया जाएगा जो सरकार और प्रसारण मंत्रालय तय करेगी.
जब ऐसे वैकल्पिक मीडिया संस्थानों को सरकार अपने कानूनी शिकंजे में लेने की तैयारी कर रही है तो कैसी आज़ादी और कहां की आज़ादी? लोकतंत्र का फिर क्या मतलब?
1995 के केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम को बदलने के लिए तैयार किया गया है, ऑनलाइन समाचार सामग्री निर्माताओं को भी इसके दायरे में लाने की कोशिश कर रहा है। विधेयक में “पेशेवर” और “संविधानिक गतिविधि” जैसे नए श्रेणियाँ जोड़ी गई हैं, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि कौन से लोग और गतिविधियाँ इसके तहत आएंगे.
यह बिल तीन दशक से भी ज्यादा पुराना 1995 के केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम को बदलने के लिए तैयार किया गया है, ऑनलाइन समाचार सामग्री निर्माताओं को भी इसके दायरे में लाने की कोशिश किया जा रहा है. विधेयक में “पेशेवर” और “संविधानिक गतिविधि” जैसे नए श्रेणियाँ जोड़ी गई हैं, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि कौन से लोग और गतिविधियाँ इसके तहत आएंगे.
केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम 1995 के अंदर डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया, ओटीटी प्लैटफॉर्म्स और यहां तक कि इंडिविजुअल यानी एकल कंटेंट क्रिएटर नहीं आते थे.
कांग्रेस ने स्वतंत्र मीडिया के लिए बताया “सीधा खतरा”
ब्रॉडकास्टिंग के एक्सपर्ट्स के मुताबिक, केंद्र सरकार के इस विधेयक में प्रस्तावित बदलावों का प्रेस और रचनात्मक स्वतंत्रता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा. नए कानून के मुताबिक, सोशल मीडिया पर न्यूज शेयर करने वाले सभी लोगों को सरकार को रजिस्टर करना होगा. यहां तक कि अगर आपका फॉलोअर बहुत कम भी है, तब भी आपको रजिस्ट्रेशन कराना होगा. ऐसा प्रावधान अभी तक अमेज़न प्राइम वीडियो, नेटफ्लिक्स और डिज़नी + हॉटस्टार जैसी स्ट्रीमिंग सर्विसेस पर लागू था.
केंद्र की ओर से प्रस्तावित ब्रॉडकास्टिंग सर्विस रेगुलेशन बिल का संसद में पेश होने से पहले ही विरोध शुरू हो गया है.
कई कई जानकारों का कहना है कि सरकार ऐसा करके सोशल मीडिया पर सेंसरशिप लगाना चाहती है. विपक्षी पार्टियों ने भी सरकार की इस बात की आलोचना की है. उनका कहना है कि नए कानून के मुताबिक, जिन यूट्यूबर और इंस्टाग्राम स्टार के बहुत सारे फॉलोवर होंगे, उन्हें ‘डिजिटल न्यूज ब्रॉडकास्टर’ माना जाएगा। यानी उन्हें न्यूज चैनल जैसा ही माना जाएगा.
सोशल मीडिया कंपनियों को भी सरकार की मदद करनी होगी. अगर सरकार उनसे कोई जानकारी मांगती है तो उन्हें देनी ही होगी, नहीं तो उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है. विपक्षी पार्टियां कह रही हैं कि इस कानून से लोगों की आजादी छीन जाएगी और सोशल मीडिया पर सेंसरशिप बढ़ेगी. छोटे-छोटे कंटेंट क्रिएटर इस कानून के चलते परेशानी में पड़ सकते हैं और उन्हें अपना काम बंद करना पड़ सकता है.
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि सोशल मीडिया प्रभावित करने वालों से लेकर स्वतंत्र समाचार तक, सरकार का नियंत्रण बढ़ने से प्रेस की स्वतंत्रता को खतरा है और बोलने की स्वतंत्रता प्रतिबंधित होती है. कांग्रेस पार्टी के मीडिया और प्रचार विभाग के प्रमुख खेड़ा ने कहा कि जो कोई भी वीडियो अपलोड करता है या पॉडकास्ट बनाता है, उसे प्रस्तावित बिल के अनुसार डिजिटल समाचार प्रसारक के रूप में लेबल किया जाएगा. खेड़ा ने आरोप लगाया कि प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वतंत्र मीडिया के लिए प्रत्यक्ष खतरा है.
हालांकि ब्रॉडकास्टिंग बिल का फाइनल ड्राफ्ट आना बाकी है. इस बिल के ड्राफ्ट को सरकार द्वारा खुफिया न रखकर पारदर्शी बनाया जाना चाहिए और फ्रीलांस पत्रकारों व कंटेंट क्रिएटर्स से इस बिल पर मशवरा ज़रूर करना चाहिए.