बिहार में हो सकता है रणवीर सेना और अमीर दास आयोग पर चर्चा शुरू

मुहम्मद फ़ैज़ान: छात्र पत्रकारिता सह जनसंचार विभाग मानू हैदराबाद

बिहार में नए सरकार का गठन हो चुका है, नीतीश कुमार ही फिर से मुख्यमंत्री बने हैं लेकिन इस बार गठबंधन के सहयोगी बदल गए हैं. नीतीश कुमार अब महागठबंधन में हैं और राजद, कांग्रेंस और हम और माले उनकी सहयोगी. नीतीश कुमार और राजद के लोग जहाँ जातीय जनगणना की मांग ज़ोर-शोर से उठायेंगे वहीं माले भी अब सरकार पर ‘अमीर दास आयोग’ की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग करेगी. अाईए जानते हैं अमीर दास आयोग के बारे में जो रणवीर सेना के संबंध में जांच करने के लिए गठित हुई थी.बिहार का इतिहास जातीय संघर्ष, जातीय वर्चस्व और नरसंहार से भरा पड़ा है. 80-90 के शक का बिहार इसी के लिए जाना जाता है. ये वो समय था जब इन जातीय अपराधियों को राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त होता था. वही समय था बिहार में ‘रणवीर सेना’ के उभार का. रणवीर सेना की स्थापना 1994 में मध्य बिहार के भोजपुर जिले के गांव बेलाऊर में हुई थी. इसकी स्थापना के पीछे की प्रमुख वजह बिहार के सवर्ण और बड़े और मध्यम वर्ग के किसानों का भाकपा माले से त्रस्त होना था. वैसे माले जैसी संगठन भी कथित रूप से गरीबों के लिए लड़ाई लड़ती है. अक्सर माले जैसे संगठन किसी भी जमींदार के जमीन पर लाल झंडा लगा देते थे, और उस किसान को धमकी दिया करते थे कि अगर वो वहां पहुंचा तो उसकी खैर नहीं. उसी के विरोध में रणवीर सेना की स्थापना 1994 में भोजपुर जिले के गांव बेलाऊर गांव में हुई.तब खोपिरा के पूर्व मुखिया बरमेश्वर सिंह(बरमेश्वर मुखिया) के साथ-साथ और बड़े सवर्ण ज़मिंदारों ने माले के खिलाफ संघर्ष शुरू किया. इन लोगों ने गांव-गांव जाकर किसानों को माले के अत्याचारों के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया. आरंभ में इनके साथ लाईसेंसी हथियार वाले लोग हीं जुटे बाद में अवैध हथियारों का जखीरा भी जमा होने लगा. फिर शुरू हुआ नरसंहारों का दौर.भोजपुर में संगठन बनने के बाद पहला नरसंहार हुआ सरथुआं गांव में, जहां एक साथ पांच मुसहर जाति के लोगों की हत्या कर दी गयी। बाद में तो नरसंहारों का सिलसिला ही चल पड़ा.11 जुलाई 1996 को भोजपुर जिले के बथानी टोला में रणवीर सेना द्वारा 21 दलितों की हत्या कर दी गई थी. मरने वालों में 11 महिलाएं, छह बच्चे और तीन शिशु शामिल थे.रणवीर सेना ने 23 मार्च 1997 को हैबासपुर में 10 कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी। उनके जाने से पहले उन्होंने गांव पर खून से संगठन का नाम लिखा. उस रात रणवीर सेना ने जिन लोगों की हत्या की उनमें से ज्यादातर उन परिवारों के थे जो कथित तौर पर कम्युनिस्ट समूह पार्टी यूनिटी का समर्थन कर रहे थे. 1997 को, रणवीर सेना के सदस्यों ने लक्ष्मणपुर-बाथे में 63 दलितों-16 बच्चों, 27 महिलाओं और 18 पुरुषों को बंदूकों से मार डाला. मृतकों में 5 किशोर लड़कियां शामिल थीं, जिनका गोली मारने से पहले बलात्कार और क्षत-विक्षत किया गया था, और मल्लाह समुदाय के 8 लोग जिन्होंने हमले से पहले और बाद में रणवीर सेना के सदस्यों को सोन नदी के पार ले जाया था.25 जनवरी 1999 को जहानाबाद के शंकरबीघा गांव में रणवीर सेना द्वारा 22 दलित पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का उनकी कथित नक्सली निष्ठा और जमींदारों का वर्चस्व स्थापित करने के लिए नरसंहार किया गया था। दो हफ्ते बाद पड़ोसी गांव नारायणपुर में एक और नरसंहार हुआ, जहां रणवीर सेना ने चमार समुदाय के बारह ग्रामीणों को मार डाला.जून 2000 में, बिहार में औरंगाबाद जिले के मियापुर के निचली जाति के यादव ग्रामीणों पर स्वचालित हथियारों का उपयोग करके किए गए हमले के पीछे रणवीर सेना पर आरोप लगाया गया था। 32 लोगों की तुरंत मौत हो गई और बाकी ने दम तोड़ दिया। पीड़ितों में छह नाबालिग शामिल हैं। 18 घायल हो गए जिनमें 10 गंभीर रूप से शामिल हैं। यह 11 उच्च जाति के ग्रामीणों की हत्याओं के बाद बदला लेने का हमला माना जा रहा था. इसके अलावा और भी बहुत सारे नरसंहार रणवीर सेना द्वारा किया गया. 2015 में कोबरापोस्ट ने एक स्टिंग आपरेशन जारी किया था जिसमें उन्होंने कैमरे के सामने दिखाया कि किस तरह रणवीर सेना के छह कुख्यात अपराधी इस बात को स्वीकार रहे हैं कि उन्होंने कैसे-कैसे हत्याओं को अंजाम दिया और यह भी बता रहे हैं कि किस तरह एक पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के कई अग्रणी नेताओं ने उनकी सहायता की.बिहार सरकार ने सवर्णो की इस सेना को तत्काल प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन हिंसक गतिविधियां फिर भी जारी रही.अमीर दास जांच आयोग लक्ष्मणपुर बाथे जनसंहार के बाद तत्कालीन लालू प्रसाद यादव सरकार ने 1997 में अमीर दास आयोग का गठन किया था. इस आयोग ने इस खूंखार बन चुकी सेना को मिल रहे राजनीतिक संरक्षण के बारे में भी लिखा था. बिहार में 2005 में जदयू-भाजपा गठबंधन के सत्ता में आते ही न्यायमूर्ति अमीर दास जांच आयोग को अचानक बर्खास्त कर दिया गया था. न्यायमूर्ति अमीर दास के मुताबिक उनकी रिपोर्ट में स्पष्ट प्रमाण थे कि विभिन्न राजनीतिक खेमों के 42 नेताओं के साथ ‘सेना’ का संबंध था. इनमें से अधिकांश नेता भाजपा और जद(यू) के थे. शायद इसी लिए इस आयोग को बर्खास्त कर दिया गया था.29 अगस्त 2002 को पटना के एक्जीबिशन रोड से रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, ब्रह्मेश्वर मुखिया को उस वक्त तक 277 लोगों की हत्या और उनसे जुड़े 22 अलग-अलग मामलों का आरोपी बनाया गया था. 9 साल जेल की सजा काटने के बाद 8 जुलाई 2011 को उनकी रिहाई हुई. 1 जुन 2012 को पटना में गोली मार कर ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या कर दी गई. लेकिन सवाल आज भी ज़िन्दा है कि आखिर व्यापक पैमाने पर हुए बिहार में नरसंहार के लिए कौन कौन ज़िम्मेदार है? न्यायमूर्ति अमीर दास आयोग की रीपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की जा रही है? शायद इसलिए कि बड़े-बड़े माननीयों की कुर्सी हिल जाएगी. क्या माले जो अब सरकार की सहयोगी है वह इस आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने लिए सरकार पर दबाव बनाएगी? या सारा सच इतिहास के पन्नों में दबा रह जायेगा .(ये आर्टिकल मुहम्मद फ़ैज़ान ने कलाम रीसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है) हैं

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