14 सितंबर और हाथरस: जब सिस्टम ने ले ली थी बलात्कारी को बचाने के लिए दलित बेटी की जान और उस के लिए इंसाफ़ की बात करने वालो को मिला था सरकारी दमन

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इमरान अहमद: छात्र पत्रकारिता सह जनसंचार विभाग मानू हैदराबाद

उत्तर प्रदेश के हाथरस का बूलगढ़ी गांव, 14 सितम्बर 2020, को एक दलित लड़की के कथित गैंगरेप और हत्या के बाद चर्चा में आया था. इस अपराध के आरोप में गाँव के ही तथाकथित ऊँची जाति के चार अभियुक्त जेल में हैं. देश-विदेश के मीडिया ने इस घटना को कवर किया था और भारत में दलितों की स्थिति को लेकर गंभीर बहस छिड़ी थी. लेकिन दो साल बाद भी इस गांव में जातिवाद की जड़ें पहले से भी गहरी नज़र आती हैं. बीबीसी के मुताबिक पीड़ित परिवार का आरोप है कि उन्हें अब भी जातिवाद का सामना करना पड़ रहा है. मृत लड़की के भाई बीबीसी से कहते हैं कि “गांव में अब उनके परिवार के प्रति तिरस्कार पहले से ज्यादा है”.14 सितम्बर 2020 को हाथरस के बूलगढ़ी गांव की एक बीस साल की दलित लड़की अपनी मां के साथ घर से करीब आधा किलोमीटर दूर घास काटने गई थी. लड़की से कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया गया था. उच्च जाति के चार दबंगों ने उस दलित लड़की के साथ दरिंदगी की. दरिंदों ने उसके साथ न केवल सामूहिक दुष्कर्म किया बल्कि उसकी पिटाई कर रीढ़ की हड्डी तोड़ दी. उसकी गर्दन पर वार किया और उसकी जीभ काट ली. गला घोंटकर उसे मारने की कोशिश की और उसे मरा समझ कर आरोपी उसे छोड़कर चले गए.लड़की को पहले अलीगढ़ के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था, जहां से तबीयत खराब होने पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दाखिल कराया गया था. जहां इलाज के दौरान 29 सितंबर को उसकी मौत हो गयी थी.लड़की के शव का 29/30 सितंबर की दरम्यानी रात को पुलिस ने बिना परिवार को चेहरा दिखाए अंतिम संस्कार कर दिया था, जिसको लेकर काफ़ी हंगामा हुआ था. पुलिस ने शव को जबरन पेट्रोल डालकर जलाया था.इस मामले की जांच पहले यूपी पुलिस, फिर यूपी पुलिस की एसआईटी और उसके बाद सीबीआई ने की थी. आरोपी रवि, लवकुश, रामू और संदीप एससीएसटी एक्ट के तहत जेल में बंद हैं.अब सवाल ये है की इस पूरे मामले को दो साल बीत जाने के बाद भी न पीड़ित परिवार को इंसाफ मिला जो इंसाफ उस परिवार को मिलना चाहिए.बल्कि इसके उलट जिन लोगों ने इस पूरे मामले को ले कर सड़क से सदन तक उठया उसपे ही सरकार का दमन हुआ चाहें पत्रकार हों नेता हों या समाजिक कार्यकर्ता.जब पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा हाथरस कांड के पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे. तब उनके साथ कथित दुर्व्यवहार भी हुआ था. राहुल-प्रियंका के काफिले को रोक दिया गया था. तब वे पैदल ही यमुना एक्सप्रेस वे पर निकल पड़े थे. इस दौरान पुलिस और राहुल व कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच खूब धक्का-मुक्की भी हुई थी. पुलिस वाले सभी को पीछे धकेलने की कोशिश कर रहे थे और इसी में एक जोर का धक्का लगा और राहुल गांधी रोड के किनारे जा गिरे. उन्हें चोट भी आई थी. बाद में उठे और वहीं अपने कार्यकर्ताओं के साथ धरने पर बैठ गए थे. इस बीच पुलिस ने हल्का लाठीचार्ज भी किया था. जिसमें कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को चोटें भी आईं थीं. जिसके बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया व अन्य कांग्रेसियों को भी हिरासत में लिया गया था, और उल्टा पुलिस ने राहुल और प्रियंका गाँधी समेत कांग्रेस के 200 नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी.ये मुकदमा धारा 144 का उल्लंघन करने तथा महामारी के दौरान आम लोगों का जीवन संकट में डालने के आरोप में आईपीसी की धारा 188, और धारा 269, 270 के तहत दर्ज कराया गया था.जब आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण को भी पीड़िता के घर जा रहे थे तो प्रशासन ने नही जाने दिया बल्कि उसके उलट योगी सरकार ने चंद्रशेखर समेत 500 लोगों पर एफआईआर कर दिया था. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को भी हाथरस जाने से रोका गया था उनके साथ भी धक्का मुक्की हुई थी.जब आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह हाथरस गैंगरेप पीड़िता के परिवार से मुलाकात करने उत्तर प्रदेश पहुंचे थे. पीड़िता के परिवार से मुलाकात के बाद संजय जैसे ही लौटने लगे तो एक हिंदूवादी संगठन से जुड़ा हुआ दीपक शर्मा ने गुस्से में संजय सिंह पर स्याही फेंक दी. संजय सिंह के साथ विधायक राखी बिड़लान भी थीं. सिद्दीकी कप्पन जो एक पत्रकार थे जब वे हाथरस बलात्कार-हत्या अपराध की रिपोर्ट करने के लिए जा रहे थे.तब पुलिस ने उन पर यूएपीए लगाकर गिरफ्तार कर लिया था. सिद्दीक कप्पन करीब दो साल से जेल में बंद रहने के बाद आज सुप्रीम कोर्ट ने सिद्दीकी कप्पन को जमानत मिली है. जब सिद्दीकी कप्पन की माँ का देहांत हुआ था तभी उन्हे जमानत नहीं दी गई थी. सिद्दीक कप्पन का सिर्फ इतना जुर्म था के वो सच्चाई को दिखाने के लिए और योगी और मोदी सरकार की नाकामी बताने के लिए हाथरस जा रहे थे.सिद्दीक कप्पन के साथ-साथ मथुरा पुलिस ने पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र एवं कैंपस फ़्रंट ऑफ़ इंडिया के छात्र नेता अतीक़-उर-रहमान को रास्ते से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और उन पर प्रदेश में जातिय हिंसा फैलाने की साज़िश रचने का आरोप लगाया गया था. बाद में इनपर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया. अभी अतीकुर्रहमान दो साल से मथुरा जेल में बंद हैं.मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र एवं कैंपस फ़्रंट ऑफ़ इंडिया के छात्र नेता अतीकुर्रहमान की पत्नी संजीदा रहमान मीडिया से बात करते हुए कहती हैं की -“मेरे पति हार्ट पेशेंट हैं, उनको जेल में भी हार्ट अटैक हो चुका है, वह जेल के अस्पताल में भर्ती हैं, आज तक हमारी मुलाकात भी नही हुई सिर्फ़ फ़ोन के ज़रिए बात होती है. मैं इस वक़्त बहुत बुरे हालातों से गुज़र रही हूँ. अतीकुर्रहमान हाथरस में दलित बच्ची को न्याय दिलाने जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें मुस्लिम होने की वजह से UAPA लगा जेल में डाल दिया. मैं हर वक़्त डरती हूँ, क्योंकि मेरे पति गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं, अगर उन्हें कुछ हो गया तो मेरे बच्चे यतीम हो जायेंगे, यदि उनकी सर्जरी नही हुई तो मौत हो सकती है. हम जी तो रहे होंगे लेकिन मर चुके होंगे. मेरे बच्चे हर रात को अपने पापा को याद करते हुए रोते बिलखते सोते है. मेरी भी कोई सुबह और शाम ऐसी नही जाती, जिसमें मैं अपने पति के बारे में सोच-सोचकर ना रोती होऊं. मेरे पति सिर्फ़ मुस्लिम होने की वजह से फसाये गये हैं, हमें यतीम करने के लिए उन्हें जेल में डाला गया है.” अभी हाल में ही अतीक़ उर रहमान की तबीयत बिगड़ने के बाद मंगलवार को इलाज के लिए लखनऊ जेल से उन्हें लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया गया है. दिल के मरीज़ अतीक़ उर रहमान को जेल में सही इलाज नहीं दिया गया जिससे उनकी तबीयत बेहद ख़राब हो गई है. मेरे पति की हालत इतनी ख़राब है कि वह हमें पहचान भी नहीं पा रहे हैं, उनके शरीर के बाएँ हिस्से ने काम करना बंद कर दिया है. सिद्दीकी कप्पन और अतीक़ उर रहमान के साथ 2 और लोग और गिरफ्तार हुए थे जो अभी तक जेलों मे बंद हैं. उत्तर प्रदेश के उत्तरपूर्वी इलाक़े बहराइच के रहने वाले मसूद अहमद जो कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के नेता हैं वो भी सिद्दीकी कप्पन और अतीक़ उर रहमान के साथ वो लड़की के साथ होने वाली दरिंदगी के खिलाफ पीड़िता के परिवार के दुःख में शामिल होने और एक छात्र कार्यकर्ता के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिये हाथरस जा रहा रहे थे. मसूद के भाई मोनीस बताते हैं कि वे दो दिनों तक अपने भाई की ज़मानत के लिये काग़ज़ात इक्ठ्ठा करने में व्यस्त रहे, लेकिन यूपी पुलिस प्रशासन की योजना तो कुछ और ही थी. सात अक्टूबर को पुलिस ने ‘खुलासा’ किया कि गिरफ्तार किये गए चारों लोग यूपी में जाति आधारित हिंसा भड़काने की साजिश रह रहे थे. इसी आरोप में उन पर देशद्रोह की धारा तथा गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) लगा दिया. अक्सर ये धाराएं आतंकवाद जैसे संगीन मामलों के अभियुक्त पर लगाई जाती हैं. मोनीस कहते हैं जब उन्हें पता चला कि उनके भाई पर यूएपीए और देशद्रोह का मुक़दमा लगाया गया है तो इस खबर ने हम सभी को चकनाचूर कर दिया. वह मसूद अपराधी या आतंकवादी नहीं है, बल्कि सिर्फ एक छात्र कार्यकर्ता है जो अन्याय के विरुद्ध न्याय दिलाने के लिए लड़ रहा था. आप को बता दें की मसूद अहमद आईएएस अफसर बनकर देश और समाज की सेवा करना चाहता था , उसने अपने इस ख्वाब को पूरा करने के लिये इंग्लैंड की कार्डिफ मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी से मिले स्कॉलरशिप के ऑफर को भी ठुकरा दिया था. नेट की कठिन परीक्षा पास करने वाला यह होनहार छात्र अपने अधूरे ख्वाबों के साथ पिछले दो सालों से यूपी की एक जेल में बंद है. क्या सरकार के इस तानाशाह फैसले से मसूद का ख्वाब पूरा हो पाएगा? इस पूरे मामले में एक और लोग को गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के स्टूडेंट विंग सीएफआई के जनरल सेक्रेटरी रउफ शरीफ को त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट हिरासत में ले लिया गया था. वो अभी तक कोच्चि की एर्नाकुलम जेल में बंद हैं. एसटीएफ रउफ शरीफ पर हाथरस में दंगा फैलाने की साजिश और यूपी में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान दंगा भड़काने के आरोप में यूएपीए के तहत मथुरा में केस दर्ज किया था.चाहें राहुल गांधी या प्रियंका गांधी हों या फिर अखिलेश यादव हों संजय सिंह हो या चंद्रशेखर आज़ाद उर्फ रावण हो या सिद्दीक कप्पन या अतीकुर्रहमान हों, या मसूद अहमद से रउफ शरीफ तक ये सब लोगों का सिर्फ इतना कसूर था वे पीड़ित के परिवार से मिलकर उनके दुःख दर्द को बांटने जा रहे थे. लेकिन योगी और भाजपा की तानाशाह सरकार ने इन सब पे उल्टा मुकदमा ही दर्ज कर दिया, और इसमें से कुछ लोग सिर्फ सरकार के खिलाफ सच बोलने के इलज़ाम में जेलों में बंद हैं. इन सब की गिरफ़्तारी एक लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र के खिलाफ और गैर इंसानी हैं. पीड़ित परिवार की सरकार से भी नाराज़गी है. घटना के बाद सरकार ने पीड़ित परिवार की आर्थिक मदद करने के अलावा भाई को नौकरी और सरकारी मकान देने का वादा भी किया था लेकिन ये वादा अब तक पूरा नहीं हो सका है. मृत लड़की के भाई कहते हैं, “सरकार ने उस वक्त 25 लाख रुपये की आर्थिक मदद की थी, हमारा ख़र्च उसी से चल रहा है लेकिन नौकरी और आवास देने का जो वादा किया गया था वो अभी तक पूरा नहीं हुआ है. इस दिशा में कोई काम भी नहीं हुआ है.भाई का कहना है कि एक दिन खाली होते-होते यह रकम खत्म हो जाएगी सरकार का वादा था कि वह हमें नौकरी और रिहाइश देगी. अभी तक कुछ नहीं हुआ. वह बताते हैं, ‘सरकार हाथरस में ही रिहाइश और नौकरी दे रही है, जबकि यहां तो घर से निकलने में भी हमारी जान को खतरा है. हमें यहां न रिहाइश चाहिए न नौकरी. इस घटना से पहले पीड़िता के पिता एक प्राइवेट स्कूल में 2500 रुपए मासिक वेतन पर बतौर सफाई कर्मचारी नौकरी करते थे.परिवार के पास 5 बीघा खेत हैं. दहशत में बटाई पर दिया हुआ है. भाई कहते हैं, ‘घर के अंदर कैद हैं. बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है, हम नहीं जानते. न तो कहीं नौकरी कर पा रहे हैं. न पैसे कमा पा रहे हैं.’ सरकार का वादा था कि केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलेगा.”वह कहते हैं, ‘बेशक हाथरस गैंगरेप के चारों आरोपी अभी जेल में हैं. हमारे परिवार की स्थिति भी तो कमोबेश ऐसी ही है. अंतर ये है कि वे जेल में और हमारा घर ही एक तरह की जेल है. लगातार डराया धमकाया जा रहा, वह अलग।’ एक तरह से पीड़िता का परिवार हर दिन गैंगरेप के दर्द से गुजरता है.पीड़ित तो छोड़िए, उनके वकील को भी धमकी दी जा रही है हाथरस गैंग रेप की वकील सीमा कुशवाहा पर आरोपी पक्ष की ओर से दबाव है. यह दबाव किस तरह का है, इस पर सीमा कुशवाहा खुलकर बात नहीं कर रही हैं.यहां 60% आबादी ठाकुरों की 450 घरों की आबादी वाले इस गांव में पीड़िता का घर आसपास ठाकुरों के घर से घिरा हुआ है. यहां 60% आबादी ठाकुरों की है. बाकी दलित समुदाय के घर हैं. यहां तक कि गांव के चारों ओर 22 गांव भी ठाकुरों के हैं. सुप्रीम कोर्ट की वकील सीमा कुशवाहा बताती हैं कि पीड़ित परिवार का पहले भी आरोपी ठाकुर परिवार से झगड़ा हुआ था. ठाकुर परिवार ने पीड़ित परिवार के बाबा की उंगलियां कटवा दी थीं और सिर फोड़ दिया था. पीड़ित परिवार ने एफआईआर करवाई थी. सभी चश्मदीद ही होस्टाइल हो गए. ट्रायल शुरू ही नहीं हो सका. डर के चलते पीड़ित परिवार का किसी ने साथ नहीं दिया. इस मामले में पूरा देश पीड़ित परिवार के साथ था. यह कास्ट प्राइड का मामला है. पीड़ित परिवार दलित है. गांव में मात्र 2 से 3 परिवार ही दलित हैं, बाकी सब ठाकुर हैं. ठाकुरों के लिए यह रेप का मामला ही नहीं है, बल्कि उनके लिए नाक का सवाल हो गया है। हमारे खिलाफ कोई कैसे जा सकता है. कोई कैसे एफआईआर करवा सकता है? कोई इतनी हिम्मत कैसे जुटा सकता है.यूएपीए जैसे काले क़ानून अंसवैधानिक तऱीके से इस्तेमाल कर सरकार हर उस व्यक्ति की जान लेना चाहती है जो सरकार को बेनक़ाब करने का प्रयास करते हैं. मेरी सरकार से अपील है कि अतीकुर्रहमान की जमानत का विरोध ना करने, और जमानत दिलाने में उसके परिवार की मानवीय आधार पर मदद की जाये. ताकि वह अपने परिवार की निगरानी में अच्छे से इलाज़ करा सकें.क्या किसी दलित लड़की के लिए आवाज उठाना जुर्म है आज कल हर एक घंटे दो दलितों पर हमले होते हैं, हर रोज तीन दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है, दो दलितों की हत्या होती है, दो दलितों के घर जलाए जाते हैं.’ यह बात तब से लोगों का तकिया कलाम बन गई है जब 11 साल पहले ‘हिलेरी माएल’ ने पहली बार नेशनल ज्योग्राफिक में इसे लिखा था. अब इन आंकड़ों में सुधार किए जाने की जरूरत है, मिसाल के लिए दलित महिलाओं के बलात्कार की दर हिलेरी के 3 से बढ़कर 4.3 हो गई है, यानी इसमें 43 फीसदी की भारी बढ़ोतरी हुई है. यहां तक कि शेयर बाजार सूचकांकों तक में उतार-चढ़ाव आते हैं लेकिन दलितों पर उत्पीड़न में केवल इजाफा ही होता है. लेकिन तब भी ये बात हमें शर्मिंदा करने में नाकाम रहती है. हम अपनी पहचान बन चुकी बेशर्मी और बेपरवाही को ओढ़े हुए अपने दिन गुजारते रहते हैं, कभी कभी हम कठोर कानूनों की मांग कर लेते हैं – यह जानते हुए भी कि इंसाफ देने वाले निजाम ने उत्पीड़न निरोधक अधिनियम को किस तरह नकारा बना दिया है.और इन सब की गिरफ़्तारी ये बताती हैं की इस लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र कितना सुरक्षित हैं. इन सब का सिर्फ एक ही कसूर है की इन्होंने एक दलित लड़की के हक में अपनी आवाज बुलंद की थी लेकिन सरकार ने अपने तानाशाह रवैय से सब की आवाज को दबा रही है. जो एक लोकतांत्रिक देश के लिए ठीक नहीं है, अगर हम आज नहीं बोले तो हमारी आने वाली नस्लें खामोश हो जाएगी. इस देश की एकता और भाईचारे को और इस देश को बचाने के लिए अपनी आवाज को बुलंद करना बहुत जरूरी है.(इमरान अहमद ने ये आर्टिकल कलाम रिसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)

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