अब्दुल रकीब नोमानी:छात्र पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग मानु (हैदराबाद)
देश की सबसे पुरानी पार्टी कॉंग्रेस में इन दिनों राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव चल रहा है। आज़ नामांकन का आखिरी दिन था। नामांकन के आखिरी समय तक तीन उम्मीदवारों ने कॉंग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन किया है। जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे जो कर्नाटक से आते हैं और वर्तमान में राज्यसभा में विपक्ष के नेता है। वही दूसरे उम्मीदवार शशि थरूर है जो कि केरल से आते हैं और वर्तमान में तिरुवनंतपुरम से सांसद हैं। तीसरे उम्मीदवार के. एन त्रिपाठी है जो झारखण्ड से हैं और पूर्व मंत्री रहे हैं।
नामांकन प्रकिया 24-30 सितंबर तक ही था। वही नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 8 अक्टूबर निर्धारित हैं। नामांकन के अंतिम दिन तक 3 उम्मीदवारों ने अध्यक्ष पद के लिए नामांकन किया है। ऐसे में अगर 2 उम्मीदवार नाम वापस नहीं लेते हैं तो निर्धारित तिथि पर चुनाव होंगे जो कि 17 अक्तूबर को निर्धारित है। वही परिणाम 19 अक्टूबर को घोषित किए जायेंगे।आख़िर क्यों मल्लिकार्जुन खड़गे ही होंगे कॉंग्रेस के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष?चुनाव हो या नामांकन वापसी के बाद निर्विरोध की घोषणा इन दोनों स्थिति में कॉंग्रेस के अगले अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ही होंगे।
क्योंकि मल्लिकार्जुन खड़गे को आलाकमान का समर्थन प्राप्त हैं। इसको समझने के लिए आपको उनके प्रस्तावकों की सूची देखना होगा जिसमें कॉंग्रेस के बड़े व वरिष्ठ नेता उनके प्रस्तावक बने हुए हैं। जिसमें शामिल है राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत,पूर्व रक्षा मंत्री और अनुशासन समिति के चेयरमैन एके. एंटनी,अंबिका सोनी,महासचिव मुकुल वासनिक,आनंद शर्मा,अभिषेक सिंघवी,अजय माकन, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, दिग्विजय सिंह,तारिक अनवर,पृथ्वीराज चव्हाण शामिल हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे को G-23 समुह के नेताओं का भी समर्थन प्राप्त हैं। जिनमें से कई नेता उनके प्रस्तावक भी बने हैं।
जिसमें हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा,महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण,आनंद शर्मा इत्यादि शामिल है। नामांकन के बाद मीडिया से बात करते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि सोनिया गांधी से जो हम सबों की माँग थी वो अब पूरा हो रहा है।एक तरह से G-23 समुह के बचे सभी नेताओं का समर्थन मल्लिकार्जुन खड़गे को दिख रहा है। जो कि एक तरह से पार्टी आलाकमान के तरफ से उम्मीदवार बनाए गए हैं। वही दूसरी ओर शशि थरूर जो कि G-23 समुह के एक सदस्य है लेकिन इनको नामांकन में एक भी G-23 समुह के नेताओं का साथ नहीं मिला। जबकि G23 समुह का गठन शशि थरूर के यहाँ ही रखे एक डिनर पार्टी में हुआ था। जो समय-समय पर पार्टी की बिगड़ती स्थिति से उबरने के लिए बड़े स्तर पर पार्टी में बदलाव की माँग करते रहते रहे हैं।अगस्त 2020 में G-23 समुह पहली बार तब चर्चे में आया था। जब इस समुह ने कॉंग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने और संगठन में ऊपर से नीचे तक बदलाव की माँग की थी।
इस पत्र में 23 नेताओं के हस्ताक्षर थे जो शशि थरूर द्वारा आयोजित रात्री भोज में शामिल हुए थे। तब से ही इस समुह को G-23 नाम मिला था। दरअसल गाँधी परिवार अपने विश्वासपात्रों को ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना चाह रहा था। क्योंकि राहुल गांधी ने कई मौकों पर कहा था वो और उनके परिवार से कोई कॉंग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनेगा।इसलिए गाँधी परिवार ने पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए अपने सबसे बड़े विश्वासपात्रों में से एक राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चुना था। गाँधी परिवार ये चाह रहा था अशोक गहलोत मुख्यमंत्री पद छोड़ कॉंग्रेस के अध्यक्ष बने और उनके जगह पर सचिन पायलट को राजस्थान की बागडोर दें।
ताकि राजस्थान में 2018 से चल रहे सियासी उठापटक को विराम दिया जा सके। आसान से भाषा में कहा जाए तो गाँधी परिवार एक तीर से दो शिकार करना चाह रहे थे। पहला ये कि कॉंग्रेस के अध्यक्ष पद उनके विश्वासपात्र के पास रहें जो अशोक गहलोत को बनाना चाह रहे थे। वही दूसरा जो 2020 में राजस्थान में हुए घटनाक्रम के बाद सचिन पायलट को गाँधी परिवार ने आश्वासन दिया था कि उन्हें राजस्थान की बागडोर देंगें जो पूरा हो सके।इसी मंशे के साथ सोनिया गांधी ने अपने दोनों पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे व अजय माकन को राजस्थान भेजा था।
विधायक दल की बैठक के लिए जिनको वहाँ पर एक लाईन के प्रस्ताव को पास करवाना था। जिनमें मुख्यमंत्री के फैसले के लिए सोनिया गांधी को अधिकृत किया जाता। लेकिन इनसे पहले ही मीडिया में ये ख़बर फैल गई कि राजस्थान की बागडोर पार्टी आलाकमान सचिन सचिन पायलट को सौंपने जा रहा हैं।
जिनका विरोध राजस्थान के कॉंग्रेस के विधायक करने लगे सबका कहना यही था कि सचिन पायलट 2020 में मानेसर के होटल में बैठकर बीजेपी के साथ सांठगांठ कर सरकार को गिरा रहे थे। अशोक गहलोत ने किसी तरह सरकार को बचाया है। ऐसे में ऐसे लोगों को कैसे राजस्थान की बागडोर सौंपी जा सकती है।पर्यवेक्षक के रूप में गए मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन के राजस्थान पहुँचने के बाद विधायकों ने उनके के साथ होने वाले बैठकों का बहिष्कार कर दिया था।
और दूसरे जगह समानान्तर बैठक का आयोजन कर लिया था।जिनके बाद पिछले दिनों राजस्थान में सियासी उठापटक देखने को मिली थी। विधायक पर्यवेक्षक के साथ होने वाले बैठकों का बहिष्कार कर सामुहिक रूप से हस्ताक्षर कर सचिन पायलट के विरोध में इस्तीफा की पेशकश की बात कर विधानसभा स्पीकर सी. पी जोशी के आवास तक पहुंच गए थे ।इस घटनाक्रम को लेकर गाँधी परिवार बेहद नाराज हुए ख़ासकर राहुल और प्रियंका गाँधी जिनको एक तरह से अशोक गहलोत से इस तरह की उम्मीद कतई भी नहीं थी। वही दिल्ली में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से करीब डेढ़ घंटे चली मुलाकात के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुरुवार को मीडिया से मुखातिब होकर उन्होंने कहा ‘मैंने कांग्रेस के लिए वफादार सिपाही के रूप में काम किया। सोनिया जी के आशीर्वाद से मैं तीसरी बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बना।
दो दिन पहले जो घटना हुई उसने मुझे हिला कर रख दिया.मुझे उसका बड़ा दुख हुआ है. मैं कोच्चि में राहुल गांधी से मिला और उनसे कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने का अनुरोध किया। जब उन्होंने स्वीकार नहीं किया तो मैंने कहा कि मैं चुनाव लड़ूंगा लेकिन अब उस राजस्थान में हुए उपजे राजनीतिक हालात के बाद मैंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है।अशोक गहलोत चुनाव नहीं लड़ेंगे इसका अंदेशा उसी वक़्त से होने लगा था जब राजस्थान में सियासी उठापटक के बीच राहुल गांधी ने अपने साथ चल रहे भारत जोड़ों यात्रा के संयोजक व मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को दिल्ली भेजा जिन्होंने अचानक नामांकन फॉर्म लेकर अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ने का ऐलान किया। क्योंकि गहलोत गाँधी परिवार के भरोसे को तोड़ से चुके थे।
फ़िर 29 सितंबर के रात को कॉंग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने 10 जनपथ आवास से मुलाकात के लिए जाती है मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर जहां पर उनको अध्यक्ष पद के नामांकन के लिए तैयार करने के लिए जो रात को ही तैयार हो जाते हैं। रात को ही ये खबर कॉंग्रेस के वरिष्ठ नेताओं तक पहुँचा दी जाती है। इसके बाद दिग्विजय सिंह को मनाया जाता है कि वो नामांकन ना करें ताकि लड़ाई मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच हो। और ये तय किया जाता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष पद के नामांकन में बड़े व वरिष्ठ नेताओं की जमघट लगवाकर साफ़ संदेश दी जाए के पार्टी आलाकमान के आधिकारिक उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खड़गे हैं।
और संदेश देने में कॉंग्रेस कामयाब भी रही कि मल्लिकार्जुन खड़गे ही आलाकमान के तरफ से उम्मीदवार हैं।जो दिग्विजय सिंह कल तक कॉंग्रेस के अध्यक्ष पद के नामांकन के लिए अपने आप को उम्मीदवार बता रहे थे वो आज़ मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रस्तावकों में से एक थे। संभवतः दिग्विजय सिंह राज्यसभा में विपक्ष के नेता के पद संभालेंगे जो मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद खाली होगा। क्योंकि कॉंग्रेस के उदयपुर के चिंतन शिविर में तय हुआ है एक नेता एक ही पोस्ट जिसके तहत मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष बनने के बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता की कुर्सी छोड़नी होगी।
अशोक गहलोत के जगह मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा गाँधी परिवार कोई अच्छा विकल्प भी नहीं दिख रहा था। क्योंकि गहलोत के मामले में गाँधी परिवार पहले ही धोखा चुका था। ऐसे मैंने इन्होंने अंतिम समय पर मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर देखा जो कि उनके विश्वासपात्रों में से एक हैं।वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे को राजनीति का लंबा अनुभव है जो 9 बार विधायक,कर्नाटक के गृहमंत्री, प्रदेशाध्यक्ष,विधायक दल के नेता,लोकसभा में कॉंग्रेस के नेता,केंद्रीय मंत्री रहे हैं और वर्तमान में राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं।मल्लिकार्जुन खड़गे 52 वर्षों के बाद दूसरे दलित कॉंग्रेस अध्यक्ष होंगे। जिनको आने वाले समय में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि आगे तीन राज्यों(गुज़रात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक) में विधानसभा चुनाव हैं और इनमें कहीं पर भी वर्तमान में कॉंग्रेस पार्टी की सरकार नहीं हैं।