इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
राज्य की राजधानी रायपुर के जुलूम गांव में 23 मार्च को एक ईसाई परिवार के खिलाफ बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने परिवार पर धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए अपमानजनक और उग्र नारेबाज़ी की। उन्होंने “जो धर्म बदले उसे जूते मारो” जैसे नारे लगाए और ईसाइयों को “कैंसर से भी खतरनाक” बताया।
क्या है मामला?
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, प्रदर्शन उस समय हुआ जब गांव के एक परिवार ने ईसाई धर्म को अपनाया। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को इसकी जानकारी मिलते ही वे बड़ी संख्या में एकत्र होकर उस परिवार के घर के बाहर पहुंचे। वहां उन्होंने न सिर्फ आपत्तिजनक नारे लगाए बल्कि पूरे मोहल्ले में दहशत का माहौल बना दिया।
नारेबाज़ी और धमकियाँ
प्रदर्शन के दौरान कई कार्यकर्ता परिवार को खुलेआम धमकाते दिखे। कुछ ने तो यह भी कहा कि “ऐसे लोगों को गांव से बाहर निकाल देना चाहिए।” इससे पूरे इलाके में भय और तनाव का माहौल बन गया।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल
स्थानीय पुलिस की मौजूदगी की जानकारी नहीं मिली है और अब तक इस मामले में कोई गिरफ्तारी भी नहीं हुई है। इससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या प्रशासन धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील है?
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने जताई चिंता
इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए छत्तीसगढ़ के कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों ने इसकी निंदा की है। उन्होंने कहा कि, “भारत का संविधान सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता देता है। किसी के निजी विश्वास पर हमला करना लोकतंत्र पर हमला है।”
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ भी शुरू
इस घटना के बाद सियासी गलियारों में भी हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने इसे राज्य में बढ़ती असहिष्णुता का उदाहरण बताया है और कार्रवाई की मांग की है।