इस्लामोफोबिया: विश्व बंधुत्व और शांति के लिए ख़तरा

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

“जब एक समूह पर हमला होता है, तो सभी के अधिकार और स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाती हैं।”
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के ये शब्द इस्लामोफोबिया के बढ़ते खतरे की गंभीरता को दर्शाते हैं।

दुनिया भर में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती नफरत, भेदभाव और हिंसा ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाने के लिए मजबूर किया। इसी प्रयास के तहत, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2022 में 15 मार्च को “इस्लामोफोबिया के खिलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय दिवस” के रूप में घोषित किया। यह दिन 2019 में न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में मस्जिदों पर हुए आतंकी हमले में मारे गए 51 निर्दोष मुसलमानों की याद में मनाया जाता है।

आज दुनिया के कई हिस्सों में, विशेष रूप से यूरोप, अमेरिका, एशिया और भारत में मुस्लिम समुदायों को भेदभाव, हिंसा और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। धार्मिक स्थलों पर हमले, हिजाब पहनने वाली महिलाओं पर हिंसा और मुसलमानों को आतंकवाद से जोड़ने जैसी घटनाएं इस्लामोफोबिया की गहरी समस्या को उजागर करती हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस्लामोफोबिया को “नफरत की महामारी” करार देते हुए कहा कि, “हमें एक वैश्विक समुदाय के रूप में कट्टरता को अस्वीकार करना और समाप्त करना चाहिए।” उनका मानना है कि धर्म या विश्वास के आधार पर किसी भी व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव मानव अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है, जो सामाजिक शांति और न्याय को खतरे में डालता है।

भारत में इस्लामोफोबिया की समस्या लगातार बढ़ रही है। धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर धकेला जा रहा है। राजनीतिक नेताओं द्वारा घृणास्पद भाषण, मुस्लिम समुदायों पर हमले, धार्मिक स्थलों को निशाना बनाना और मुस्लिम छात्रों तथा युवाओं को शिक्षा एवं रोजगार में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। ये सभी घटनाएं भारत में इस्लामोफोबिया के गहराते संकट को दर्शाती हैं।

इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव और नफरत को रोकना, धार्मिक स्वतंत्रता और विविधता को प्रोत्साहित करना, मुस्लिम समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और वैश्विक स्तर पर एकता और सहिष्णुता को बढ़ावा देना है।

इस्लामोफोबिया से निपटने के लिए हमें धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रणाली को मजबूत कर धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना होगा। मीडिया को इस्लाम और मुस्लिम समुदायों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इसके अलावा, घृणास्पद भाषण और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ सख्त कानून बनाकर उन्हें प्रभावी रूप से लागू करना आवश्यक है। साथ ही, विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित करना भी महत्वपूर्ण है।

इस्लामोफोबिया केवल मुसलमानों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह मानवाधिकार, सामाजिक न्याय और वैश्विक शांति का मुद्दा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 15 मार्च को इस्लामोफोबिया के खिलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित करना इस लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, यह लड़ाई तभी सफल होगी जब वैश्विक समुदाय एकजुट होकर नफरत और भेदभाव के खिलाफ खड़ा होगा और समानता तथा सहिष्णुता को बढ़ावा देगा।

(ये स्टोरी मानू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष मुहम्मद फैजान ने लिखी है)

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