इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों के बीच इंसाफ मंच के एक प्रतिनिधिमंडल ने पटना के सदाकत आश्रम में बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अलावरू और एनएसयूआई प्रभारी कन्हैया कुमार से मुलाकात की। इस महत्वपूर्ण बैठक में मुसलमानों की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति, जाति आधारित जनगणना के नतीजे और अल्पसंख्यकों को उनकी आबादी के अनुसार राजनीतिक भागीदारी देने की माँग पर विस्तार से चर्चा की गई।
इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व इंसाफ मंच के मुजफ्फरपुर जिला अध्यक्ष फहद ज़मा ने किया, जबकि अकबर आज़म सिद्दीकी, शफीकुर रहमान और मोहम्मद आरिफ भी इसमें शामिल थे। प्रतिनिधिमंडल ने बिहार में मुसलमानों के साथ हो रही राजनीतिक नाइंसाफी, बजट में उनकी कमजोर हिस्सेदारी और उन्हें हाशिए पर रखने की नीतियों पर अपनी चिंता जाहिर की।
बिहार की जनता सरकार से नाखुश, 75% लोग बदलाव चाहते हैं: फहद ज़मा
इस मौके पर फहद ज़मा ने कृष्णा अलावरू और कन्हैया कुमार को बुके भेंट कर स्वागत किया और जोर देकर कहा कि “हमारी मज़बूत एकता ही बिहार को ‘डबल इंजन’ सरकार से मुक्ति दिला सकती है।” उन्होंने कहा कि “बिहार के 50% लोग इस सरकार के खिलाफ हैं, जबकि 25% लोग सरकार से नाखुश हैं लेकिन अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं। यानी कुल मिलाकर 75% लोग इस सरकार से नाराज हैं और बदलाव चाहते हैं।”
फहद ज़मा ने कहा कि इंसाफ मंच पिछले 10 वर्षों से बिहार में अल्पसंख्यकों, दलितों और वंचित तबकों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है। आज इंसाफ मंच बिहार में मुसलमानों और अन्य पिछड़े तबकों के लिए उम्मीद की एक किरण बन चुका है, और जनता इस प्लेटफॉर्म पर पूरा भरोसा करती है।
मुसलमान सबसे बड़ा वोट बैंक, लेकिन राजनीतिक रूप से हाशिए पर
फहद ज़मा ने जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि बिहार में मुसलमानों की कुल आबादी 17.67% है और वोट शेयर के लिहाज से यह सबसे बड़ी आबादी है। लेकिन इसके बावजूद उन्हें राजनीतिक रूप से लगातार हाशिए पर रखा जा रहा है।
उन्होंने कहा “बीजेपी का डर दिखाकर मुसलमानों को चुप रहने पर मजबूर किया जा रहा है, लेकिन इंसाफ मंच का मानना है कि जब तक मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुसार राजनीतिक भागीदारी नहीं मिलेगी, तब तक उनके मुद्दों को उठाने वाला कोई नहीं होगा। जब उनके मुद्दों पर कोई बात नहीं करेगा, तो उनके लिए कोई योजना भी लागू नहीं होगी और मुस्लिम आबादी इसी तरह सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी बनी रहेगी।”
उन्होंने आगे कहा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी यह साफ बताया गया था कि मुसलमान शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से सबसे पिछड़ा समुदाय है, लेकिन सरकारें उनके साथ लगातार नाइंसाफी कर रही हैं।
बजट में मुसलमानों के साथ नाइंसाफी
फहद ज़मा ने बिहार सरकार के बजट पर सवाल उठाते हुए कहा कि 17.67% मुस्लिम आबादी के लिए केवल 0.27% बजट आवंटित किया गया है, जो कि पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है। उन्होंने कहा कि इंसाफ मंच मुसलमानों के अधिकारों और राजनीतिक भागीदारी की बहाली के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेगा और इस मुद्दे को और मज़बूती से उठाएगा।
इंसाफ मंच का संघर्ष और तेज़ होग
इंसाफ मंच के प्रतिनिधिमंडल ने इस बैठक में कांग्रेस नेतृत्व को स्पष्ट किया कि अगर मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया तो इंसाफ मंच पूरे राज्य में ज़ोरदार आंदोलन छेड़ेगा। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि अब समय आ गया है कि राजनीतिक दल मुसलमानों को सिर्फ़ वोट बैंक न समझें, बल्कि उन्हें उनका हक़ और हिस्सेदारी भी दें।