इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना की संभावनाओं को लेकर संकेत दिए हैं कि आगामी जनगणना में जाति आधारित आंकड़े भी शामिल किए जा सकते हैं। यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, हालांकि इसके राजनीतिक निहितार्थों पर बहस भी तेज हो गई है।
INDIA गठबंधन और विपक्ष का रुख
कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (RJD), समाजवादी पार्टी (SP), SDPI, AIMIM और अन्य विपक्षी दलों के साथ-साथ INDIA गठबंधन लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। इन दलों का तर्क है कि सामाजिक व आर्थिक संसाधनों के सही वितरण और प्रतिनिधित्व के लिए यह जानकारी अनिवार्य है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बार-बार कहा है कि “जनसंख्या के आधार पर भागीदारी जरूरी है, और इसके लिए जातीय आंकड़े सामने आना चाहिए।”
आरजेडी ने बिहार में 2023 में जातीय सर्वेक्षण करा कर एक उदाहरण पेश किया, जिसमें राज्य की जातिगत संरचना और आर्थिक स्थिति को सामने लाया गया।
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, “जातिगत जनगणना सिर्फ आंकड़ा नहीं, हक और अधिकार की बात है।”
AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी वर्षों से जातिगत जनगणना की मांग करते आए हैं और इसे मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों से जोड़ा है।
SDPI ने इस मुद्दे को सड़कों पर उठाया है, और इसे सामाजिक समानता के संघर्ष से जोड़ा है।
INDIA गठबंधन शासित राज्यों में पहले ही हुआ जातीय सर्वेक्षण
बिहार,तेलंगाना जैसे INDIA गठबंधन शासित राज्यों में जातीय सर्वेक्षण पहले ही कराया जा चुका है। इन सर्वेक्षणों में पिछड़ी जातियों, दलितों और अल्पसंख्यकों की जनसंख्या के आंकड़े सामने आए हैं, जिससे नीतिगत फैसलों में पारदर्शिता और न्याय की उम्मीद जगी है।
केंद्र की उलझनें और प्रतिक्रिया
हालांकि केंद्र ने पहले इस मुद्दे को “तकनीकी और प्रशासनिक रूप से जटिल” बताते हुए टाल दिया था, लेकिन अब बदलते राजनीतिक माहौल और जनदबाव के चलते इस पर पुनर्विचार की बात कही जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल में कहा, “गरीब ही सबसे बड़ी आबादी है,” जिससे संकेत मिला कि केंद्र जाति की बजाय वर्गीय आधार पर नीति निर्माण पर जोर देना चाहता है।
जातिगत जनगणना अब सिर्फ एक सामाजिक मुद्दा नहीं, बल्कि 2024 के बाद के राजनीतिक विमर्श का केंद्रीय विषय बन चुका है। NDA और INDIA गठबंधन के दृष्टिकोण में स्पष्ट विरोधाभास है। आने वाले समय में यह देखा जाएगा कि क्या केंद्र सरकार इस दबाव में जातिगत आंकड़े जारी करने की दिशा में ठोस कदम उठाती है या फिर यह मुद्दा फिर से राजनीति की भीड़ में खो जाता है।