इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने के ऐलान ने विपक्ष को उत्साह से भर दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसे विपक्ष की जीत करार देते हुए दावा किया कि उनकी लगातार मांग और दबाव के चलते सरकार को यह फैसला लेना पड़ा। दोनों नेताओं ने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया, लेकिन सरकार से कार्यान्वयन में पारदर्शिता और समयसीमा की मांग भी की।
राहुल गांधी: “हमने सरकार को मजबूर किया”
नई दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा, “जातिगत जनगणना हमारा विजन था। हमने संसद में, भारत जोड़ो यात्रा में और सड़कों पर इसकी मांग उठाई। आज सरकार को हमारी बात माननी पड़ी। यह विपक्ष की जीत है।” उन्होंने तेलंगाना मॉडल की तारीफ की और कहा कि जातिगत जनगणना का डिजाइन पारदर्शी और समावेशी होना चाहिए। राहुल ने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा हटाने की भी वकालत की, ताकि सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।
उन्होंने जोर देकर कहा, “यह सिर्फ आंकड़े इकट्ठा करने की बात नहीं। यह देश की संस्थाओं में हर वर्ग की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने का पहला कदम है। हम सरकार को इसे लागू करने में पूरा सहयोग देंगे, लेकिन ढिलाई बर्दाश्त नहीं होगी।”
तेजस्वी यादव: “लालू जी की सोच की जीत”
पटना में तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसे आरजेडी और समाजवादी आंदोलन की जीत बताया। उन्होंने कहा, “30 साल से हमारी पार्टी और लालू जी जातिगत जनगणना की मांग उठाते रहे हैं। बिहार में हमने सर्वे कराया, जिसे केंद्र ने पहले खारिज किया। आज हमारी ताकत ने उन्हें हमारा एजेंडा अपनाने पर मजबूर किया।” तेजस्वी ने मांग की कि जातिगत जनगणना परिसीमन से पहले हो और ओबीसी व अति पिछड़े वर्गों के लिए संसद-विधानसभाओं में आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।
उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा, “जो लोग हमें जातिवादी कहते थे, आज उन्हें हमारी बात माननी पड़ी। यह सामाजिक न्याय की जीत है, लेकिन हम निगरानी रखेंगे कि यह लागू कैसे होता है।”
फैसले का पृष्ठभूमि और राजनीतिक मायने
केंद्र सरकार के इस फैसले को बिहार विधानसभा चुनाव से पहले रणनीतिक कदम माना जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे सामाजिक न्याय के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता बताया, लेकिन विपक्ष का कहना है कि यह उनकी मांग का परिणाम है। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा, “9 अप्रैल 2025 को अहमदाबाद में हमने जातिगत जनगणना का प्रस्ताव पास किया था। यह उसी का नतीजा है।”
विपक्ष की एकजुटता का असर
विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विपक्ष की एकजुटता ने सरकार पर दबाव बनाया। बिहार में नीतीश कुमार और चिराग पासवान जैसे सहयोगी दलों की सहमति ने भी इस फैसले को आसान बनाया।
आगे की राह
राहुल और तेजस्वी ने साफ किया कि यह शुरुआत है। दोनों नेताओं ने सरकार से प्रक्रिया की समयसीमा और पारदर्शिता की मांग की है। यह फैसला बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ओबीसी और दलित वोटरों को प्रभावित कर सकता है, जहां जातिगत समीकरण राजनीति में निर्णायक हैं।