इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार की सियासत में इस बार एक नया मोड़ देखने को मिल सकता है। CAA-NRC विरोधी आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक, जेएनयू के शोधार्थी और छात्र नेता शरजील इमाम के आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में उतरने की अटकलें तेज़ हो गई हैं। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, शरजील इमाम की ओर से राजनीतिक पारी की शुरुआत की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, और उनके करीबी कुछ विधानसभा क्षेत्रों को लेकर गंभीर विचार-विमर्श कर रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि उनके समर्थक और राजनीतिक-सामाजिक रूप से सक्रिय सहयोगी बीते कुछ हफ्तों से जनता के बीच संवाद कर रहे हैं। सामाजिक समीकरण, मतदाता रूझान और जमीनी हालात के आधार पर संभावित सीटों का मूल्यांकन किया जा रहा है। अंतिम निर्णय जल्द ही लिया जा सकता है।
इस बीच, मानवाधिकार कार्यकर्ता और शोधकर्ता शरजील उस्मानी ने ट्वीट कर इस संभावना का समर्थन किया है। उन्होंने लिखा “शरजील इमाम भाई को इस साल बिहार विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए। वे हमारी सबसे मज़बूत और समझदार आवाज़ों में से एक हैं। यह पहले से ही समुदाय के लिए एक बड़ा नुक़सान है कि उन्होंने पांच साल सलाखों के पीछे गुज़ारे हैं। अल्लाह उनकी रिहाई का रास्ता आसान करे।”
कौन हैं शरजील इमाम?
बिहार के जहानाबाद ज़िले के काको गांव में जन्मे शरजील इमाम ने IIT बॉम्बे से कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) से आधुनिक इतिहास में मास्टर्स और पीएचडी की। नागरिकता कानून के खिलाफ़ 2019-20 में हुए राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों में उनकी भाषण शैली और वैचारिक स्पष्टता ने उन्हें मुस्लिम युवाओं के बीच एक प्रभावशाली बौद्धिक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित किया।
उन पर देशद्रोह और UAPA जैसे गंभीर आरोप लगाए गए, और दिल्ली, यूपी, असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में उनके खिलाफ केस दर्ज हुए। हालांकि, अब तक दर्ज सभी मामलों में उन्हें ज़मानत मिल चुकी है। वर्तमान में वे सिर्फ दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले में तिहाड़ जेल में बंद हैं।
बदलाव की सोच का प्रतीक
शरजील इमाम आज महज़ एक आंदोलनकारी नहीं, बल्कि मुस्लिम युवाओं में आत्मनिर्भर और वैचारिक नेतृत्व की नई सोच का प्रतीक बन चुके हैं। उनकी विचारधारा मुस्लिम समाज के भीतर एक बौद्धिक विमर्श को जन्म दे रही है, जो समुदाय को अपनी पूरी अस्मिता और आत्मसम्मान के साथ लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रेरित करती है। वे एक ऐसे तबके का प्रतिनिधित्व करते हैं जो यह मानता है कि मुसलमानों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी—दबाव में नहीं, आत्मसम्मान के साथ।
सियासी हलचल और संभावनाएं
अगर शरजील इमाम विधानसभा चुनाव लड़ते हैं, चाहे निर्दलीय रूप में या किसी गठबंधन के समर्थन से, तो यह कई सीटों पर समीकरण बदल सकता है—ख़ासकर मुस्लिम और सामाजिक न्याय की राजनीति से जुड़े इलाकों में। उनकी उम्मीदवारी को लेकर जहां समर्थकों में उत्साह है, वहीं राजनीतिक विश्लेषकों की नज़रें इस संभावना पर टिक गई हैं कि जेल से चुनाव लड़ने वाले शरजील क्या वाकई बिहार विधानसभा तक पहुंच पाएंगे?
फिलहाल कानूनी और राजनीतिक परिस्थितियों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह तय है कि अगर वे चुनाव लड़ते हैं, तो यह एक बड़ा राजनीतिक संदेश होगा।
क्या आप शरजील इमाम की राजनीतिक एंट्री का समर्थन करते हैं? अपनी राय हमें कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताएं।