इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
भारत सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया पर पाकिस्तान से जुड़ी सामग्री के खिलाफ बड़ा कदम उठाया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी एडवाइजरी में सभी OTT प्लेटफॉर्म्स, मीडिया स्ट्रीमिंग सेवाओं और डिजिटल इंटरमीडियरीज को निर्देश दिया गया है कि वे पाकिस्तान से संबंधित किसी भी डिजिटल कंटेंट की होस्टिंग और वितरण को तुरंत रोक दें।
इसके साथ ही सरकार ने 8000 से अधिक ट्विटर (अब X) अकाउंट्स को बंद करने का आदेश दिया है, जिन पर भारत विरोधी और भ्रामक सूचनाएं फैलाने का आरोप है। लेकिन इस व्यापक कार्रवाई की आड़ में कई स्वतंत्र और प्रगतिशील मीडिया हाउस — जैसे मक्तूब मीडिया, फ्री प्रेस कश्मीर और द कश्मीरियत — को भी निशाना बनाया गया है। इन मीडिया संस्थानों के सोशल मीडिया अकाउंट्स को भी बैन कर दिया गया है, जबकि स्वतंत्र पत्रकार रेजाज सिद्दीक को गिरफ्तार किया गया है।
AISA और अन्य संगठनों ने जताया विरोध
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) और कई मानवाधिकार संगठनों ने इस कार्रवाई को फासीवादी करार दिया है। AISA ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से कश्मीर विरोधी और इस्लामोफोबिक मानसिकता का प्रतीक है, जहां सत्ता पक्ष असहमति और आलोचनात्मक पत्रकारिता को देशद्रोह बताने पर तुला हुआ है।
कॉर्पोरेट मीडिया को मिली खुली छूट
जहां एक ओर स्वतंत्र मीडिया संस्थानों को बैन किया जा रहा है, वहीं रिपब्लिक टीवी, ABP Live जैसे कॉर्पोरेट मीडिया चैनल झूठी खबरें फैलाकर भी पूरी छूट का लाभ उठा रहे हैं। हाल ही में कारी मोहम्मद इकबाल को आतंकवादी बताने की झूठी रिपोर्टिंग के बाद जिला पुलिस को खुद सामने आकर सफाई देनी पड़ी कि वे एक शिक्षक थे जो पाकिस्तानी गोलाबारी में मारे गए।
सरकार की दलील
सरकार का कहना है कि यह कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को ध्यान में रखते हुए की गई है। इसके लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2021 की आपातकालीन शक्तियों का उपयोग किया गया है।
स्वतंत्र पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर इस तरह की कार्रवाई न केवल लोकतंत्र को कमजोर करती है, बल्कि सूचना के अधिकार पर भी कुठाराघात है। सवाल उठता है कि क्या यह कार्रवाई सच में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए है, या फिर असहमति की हर आवाज़ को चुप कराने का नया तरीका?