गृह मंत्रालय ने राज्यों को सिविल डिफेंस एक्ट 1968 के तहत आपातकालीन शक्तियाँ सौंपीं

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने हाल ही में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सिविल डिफेंस एक्ट, 1968 के तहत आपातकालीन शक्तियाँ प्रदान की हैं। इस निर्णय का उद्देश्य संभावित सुरक्षा खतरों और आपात स्थितियों से निपटने के लिए राज्यों की तैयारियों को सुदृढ़ करना है।

सिविल डिफेंस एक्ट 1968: एक संक्षिप्त परिचय

सिविल डिफेंस एक्ट, 1968, भारत के नागरिकों और संपत्तियों की रक्षा के लिए बनाए गए एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम राज्यों को निम्नलिखित अधिकार प्रदान करता है:

आपातकालीन स्थिति में कर्फ्यू लागू करना

लाइट और साउंड का नियंत्रण, जैसे ब्लैकआउट और सायरन का उपयोग

आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करना

जनता को नागरिक सुरक्षा के बारे में शिक्षित करना और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना

संवेदनशील क्षेत्रों से लोगों और संपत्तियों की निकासी

संभावित खतरों से निपटने के लिए आवश्यक संरचनाओं का निर्माण और रखरखाव

इस अधिनियम के तहत, राज्य सरकारें “सिविल डिफेंस कॉर्प्स” का गठन कर सकती हैं, जो आपातकालीन स्थितियों में नागरिकों की सहायता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कार्यरत होते हैं।

राज्यों के लिए गृह मंत्रालय के निर्देश

गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को निर्देशित किया है कि वे सिविल डिफेंस एक्ट, 1968 के प्रावधानों के अनुसार आवश्यक तैयारियाँ करें। इसमें नागरिकों को आपातकालीन स्थितियों के प्रति जागरूक करना, आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, और संभावित खतरों से निपटने के लिए योजनाएँ बनाना शामिल है।

राज्य सरकारों को यह भी सलाह दी गई है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में सिविल डिफेंस कॉर्प्स का गठन करें और उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करें, ताकि वे आपातकालीन स्थितियों में प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें।

गृह मंत्रालय द्वारा सिविल डिफेंस एक्ट, 1968 के तहत राज्यों को आपातकालीन शक्तियाँ प्रदान करना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो देश की सुरक्षा और नागरिकों की रक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया गया है। राज्य सरकारों को चाहिए कि वे इन निर्देशों का पालन करते हुए आवश्यक तैयारियाँ करें और नागरिकों को भी इस प्रक्रिया में शामिल करें, ताकि किसी भी आपात स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।

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