इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
भारत में पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामलों की बढ़ती संख्या पर एक नई रिपोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। कोलंबिया लॉ स्कूल के ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूट, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली और क्लूनी फाउंडेशन फॉर जस्टिस के ट्रायलवॉच इनिशिएटिव द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट ‘प्रेसिंग चार्जेज़’ में बताया गया है कि 2012 से 2022 के बीच 400 से अधिक मामलों में पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाए गए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इन मामलों में पत्रकारों को देशद्रोह, सांप्रदायिकता फैलाने, फेक न्यूज़ प्रसारित करने और अश्लीलता जैसे गंभीर आरोपों का सामना करना पड़ा है। इन मामलों की प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल होती है कि यह स्वयं में एक सजा बन जाती है, जिससे पत्रकारों की मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
छोटे शहरों के पत्रकार सबसे ज्यादा प्रभावित
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि छोटे शहरों और कस्बों के पत्रकार सबसे ज्यादा निशाने पर हैं। गिरफ्तार किए गए पत्रकारों में 58% छोटे शहरों से हैं, जबकि 24% मेट्रो शहरों से। छोटे शहरों के पत्रकारों को कानूनी सहायता भी कम मिलती है, जिससे उनकी स्थिति और भी दयनीय हो जाती है।
मुकुंद चंद्राकर की हत्या: सच्चाई की कीमत
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के पत्रकार मुकुंद चंद्राकर की हत्या इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि सच्चाई उजागर करने की कीमत कितनी भारी हो सकती है। जनवरी 2025 में, चंद्राकर का शव एक सेप्टिक टैंक में मिला था। उन्होंने नेलासनार-मिर्थूर-गंगालूर सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। पुलिस जांच में पाया गया कि ठेकेदार सुरेश चंद्राकर और उसके सहयोगियों ने उनकी हत्या की योजना बनाई थी।
यह रिपोर्ट भारत में पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरे की ओर इशारा करती है। पत्रकारों को डराने, धमकाने और कानूनी प्रक्रियाओं में उलझाकर उनकी आवाज को दबाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।