इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने एक बार फिर मानव मल शोधन (मैनुअल स्कैवेंजिंग) जैसी अमानवीय और अपमानजनक प्रथा को समाप्त करने के लिए सख्त रुख अपनाया है। आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का सख्ती से पालन करें और यह सुनिश्चित करें कि इस घिनौनी प्रथा को जल्द से जल्द खत्म किया जाए।
एक आधिकारिक बयान में आयोग ने कहा “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि 21वीं सदी के भारत में भी लोग सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई जैसे खतरनाक और अमानवीय काम करने को मजबूर हैं। यह केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा पर सीधा हमला है।”
NHRC ने राज्यों को यह भी निर्देश दिया कि वे मृत्यु और हादसों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करें, पीड़ित परिवारों को मुआवज़ा दें, और सभी सफाई कर्मचारियों को वैकल्पिक रोजगार मुहैया कराएं।
NHRC का यह रुख उस पृष्ठभूमि में आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में मैनुअल स्कैवेंजिंग पर पूर्ण प्रतिबंध का आदेश दिया था और पीड़ित परिवारों को 10 लाख रुपये तक के मुआवज़े की बात कही थी। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि आज भी कई राज्य इस दिशा में लापरवाह हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2023 में कम से कम 60 सफाई कर्मियों की मौत सीवर की सफाई के दौरान हुई, जबकि सामाजिक संगठनों का दावा है कि यह संख्या कहीं ज़्यादा हो सकती है। सफाई कर्मचारी आंदोलन जैसे संगठनों ने आरोप लगाया है कि सरकारें केवल आंकड़ों से खेल रही हैं, ज़मीनी बदलाव की नीयत नहीं दिख रही।
इस मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ता बेजवाड़ा विल्सन ने कहा “मैनुअल स्कैवेंजिंग केवल तकनीकी या प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि जातिगत भेदभाव की गहरी जड़ें दिखाती है। अब समय आ गया है कि सिर्फ बयानबाज़ी नहीं, ठोस कार्रवाई हो।”