इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा से एक गंभीर मामला सामने आया है, जहां जिला जनसंपर्क पदाधिकारी (डीपीआरओ) गुप्तेश्वर कुमार पर पत्रकारों के साथ अभद्रता, धमकी और प्रेस की स्वतंत्रता में बाधा डालने जैसे संगीन आरोप लगे हैं। यह विवाद ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025’ की कवरेज के दौरान उभरा और अब राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकार संगठनों में रोष फैल गया है।
राजगीर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में 4 से 15 मई तक आयोजित ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल रूप से किया, लेकिन 4 मई को स्थानीय पत्रकार प्रमोद कुमार ने कार्यक्रम स्थल पर लाइव प्रसारण की व्यवस्था नहीं होने की लापरवाही उजागर की। यह रिपोर्ट प्रकाशित होते ही डीपीआरओ का रवैया आक्रामक हो गया।
6 मई की शाम जब प्रमोद कुमार ने प्रशासन की अन्य खामियों को उजागर किया, तो डीपीआरओ गुप्तेश्वर कुमार ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कथित रूप से पत्रकार से मारपीट की। प्रमोद का गला और हाथ दबाया गया और उनका प्रेस आईडी कार्ड जबरन छीन लिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारी ने धमकाते हुए कहा – “अगर दुबारा यहां दिखे तो जेल भेज देंगे।”
अब तक न तो जिला प्रशासन और न ही बिहार सरकार की ओर से इस मामले में कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने आई है, जिससे पत्रकारों के आक्रोश में और इज़ाफा हुआ है। सवाल उठ रहे हैं कि मुख्यमंत्री के गृह जिले में प्रेस की आवाज़ को दबाने की कोशिश क्या लोकतंत्र की आत्मा पर हमला नहीं है?
लोगों ने मांग किया है कि इस मामले में निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की जाए और पत्रकारों की सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित किया जाए। अगर जनसंपर्क जैसे विभाग के अधिकारी ही प्रेस को धमकाने लगें, तो लोकतंत्र कैसे बचेगा?