इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
मद्रास हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित पद पर एक ईसाई महिला का चुनाव लड़ना संविधान के साथ धोखाधड़ी है। कोर्ट ने थेरूर टाउन पंचायत की अध्यक्ष वी. अमुथा रानी को अयोग्य ठहराते हुए उनकी सदस्यता रद्द कर दी है।
वी. अमुथा रानी, जो 2022 में अन्नाद्रमुक (AIADMK) की उम्मीदवार के तौर पर थेरूर, जिला कन्याकुमारी से चुनी गई थीं, मूल रूप से हिंदू पल्लन जाति से ताल्लुक रखती थीं, जो कि अनुसूचित जाति में आती है। लेकिन वर्ष 2005 में उन्होंने एक ईसाई व्यक्ति से ईसाई रीति-रिवाजों के तहत शादी की थी।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि अगर कोई व्यक्ति ‘Indian Christian Marriage Act’ के तहत शादी करता है, तो उसे ईसाई माना जाएगा और वह अब मूल धर्म में नहीं माना जा सकता। इस स्थिति में वह व्यक्ति अनुसूचित जाति से संबंधित आरक्षण या लाभों का दावा नहीं कर सकता।
कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों की पहचान केवल हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म में रहने वाले व्यक्तियों के लिए मान्य है। ईसाई धर्म अपनाने पर व्यक्ति की सामाजिक पहचान और स्थिति बदल जाती है, और ऐसे में SC आरक्षण का लाभ नहीं लिया जा सकता।
इस फैसले के बाद अब पंचायत अध्यक्ष पद रिक्त हो गया है और वहां उपचुनाव की संभावना बन गई है।
यह फैसला क्यों है महत्वपूर्ण?
यह फैसला न केवल आरक्षण की संवैधानिक सीमाओं को स्पष्ट करता है, बल्कि धर्मांतरण के बाद सामाजिक लाभों के दावे पर भी कानूनी दृष्टिकोण पेश करता है। यह मामला राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बहस का विषय बन सकता है, खासकर आरक्षण नीति और धर्मांतरण के जटिल संबंधों को लेकर।