एसडीपीआई की राष्ट्रीय बैठक में पारित प्रस्ताव: जातिगत जनगणना में पारदर्शिता और निर्वाचन क्षेत्रों की सीमांकन प्रक्रिया पर जताई चिंता

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क 

 

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) की राष्ट्रीय सचिवालय बैठक बेंगलुरु में संपन्न हुई, जिसमें देश की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों पर गंभीर मंथन हुआ। बैठक में मुख्य रूप से जातिगत जनगणना और प्रस्तावित निर्वाचन क्षेत्र सीमांकन (डिलिमिटेशन) जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा करते हुए सर्वसम्मति से कई प्रस्ताव पारित किए गए।

 

बैठक की अध्यक्षता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहम्मद शफी ने की। इस अवसर पर उपाध्यक्ष एडवोकेट शराफुद्दीन अहमद, बी.एम. कांबले, राष्ट्रीय महासचिव इलियास मोहम्मद तंबे, मोहम्मद अशरफ, अब्दुल मजीद फैजी, राष्ट्रीय सचिव रियाज फरंगीपेट, फैसल अज़्ज़ुद्दीन, ताइद-उल-इस्लाम, अब्दुल सत्तार समेत कई वरिष्ठ पदाधिकारी और सचिवालय सदस्य मौजूद रहे।

 

बैठक में पारित पहले प्रस्ताव में एसडीपीआई ने केंद्र सरकार द्वारा जातिगत जनगणना के प्रस्ताव का सैद्धांतिक स्वागत करते हुए इसके क्रियान्वयन में पूर्ण पारदर्शिता की आवश्यकता पर बल दिया। पार्टी ने कहा कि यह जनगणना सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक स्थायी समाधान का आधार बन सकती है। एसडीपीआई ने सभी राजनीतिक दलों को इस प्रक्रिया में विश्वास में लेने की बात कही, साथ ही देश में जन्म, नस्ल, क्षेत्र और धर्म के आधार पर व्याप्त गहरे भेदभाव को देखते हुए इसे जरूरी कदम बताया।

 

दूसरे प्रस्ताव में एसडीपीआई ने निर्वाचन क्षेत्रों के प्रस्तावित सीमांकन को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की। पार्टी का कहना है कि सीमांकन को पिछड़े और कमजोर तबकों को हाशिए पर धकेलने के एक औजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि लोकसभा और विधानसभाओं में एससी/एसटी और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को जानबूझकर ऐसी श्रेणी में रखा गया है जिससे ऊंची जातियों को असंगत लाभ मिले।

 

एसडीपीआई ने यह भी कहा कि सरकार को बढ़ती आबादी के आधार पर सीमांकन नहीं करना चाहिए। पार्टी ने दक्षिण भारत की उन राज्यों के साथ हो रहे ‘अन्याय’ की तरफ इशारा किया, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण के दिशा-निर्देशों का पालन किया, लेकिन अब उन्हें सीटों में कटौती का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, उत्तरी भारत के कुछ राज्य जहां जनसंख्या वृद्धि अधिक रही है, उन्हें ज्यादा सीटें दी जा रही हैं।

 

एसडीपीआई ने स्पष्ट किया कि वह एक निष्पक्ष और समानतामूलक राजनीतिक व्यवस्था की हिमायती है और देश के सभी समुदायों को समान भागीदारी दिलाने के लिए हर मंच पर अपनी आवाज बुलंद करती रहेगी।

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) की राष्ट्रीय सचिवालय बैठक बेंगलुरु में संपन्न हुई, जिसमें देश की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों पर गंभीर मंथन हुआ। बैठक में मुख्य रूप से जातिगत जनगणना और प्रस्तावित निर्वाचन क्षेत्र सीमांकन (डिलिमिटेशन) जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा करते हुए सर्वसम्मति से कई प्रस्ताव पारित किए गए।

बैठक की अध्यक्षता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहम्मद शफी ने की। इस अवसर पर उपाध्यक्ष एडवोकेट शराफुद्दीन अहमद, बी.एम. कांबले, राष्ट्रीय महासचिव इलियास मोहम्मद तंबे, मोहम्मद अशरफ, अब्दुल मजीद फैजी, राष्ट्रीय सचिव रियाज फरंगीपेट, फैसल अज़्ज़ुद्दीन, ताइद-उल-इस्लाम, अब्दुल सत्तार समेत कई वरिष्ठ पदाधिकारी और सचिवालय सदस्य मौजूद रहे।

बैठक में पारित पहले प्रस्ताव में एसडीपीआई ने केंद्र सरकार द्वारा जातिगत जनगणना के प्रस्ताव का सैद्धांतिक स्वागत करते हुए इसके क्रियान्वयन में पूर्ण पारदर्शिता की आवश्यकता पर बल दिया। पार्टी ने कहा कि यह जनगणना सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक स्थायी समाधान का आधार बन सकती है। एसडीपीआई ने सभी राजनीतिक दलों को इस प्रक्रिया में विश्वास में लेने की बात कही, साथ ही देश में जन्म, नस्ल, क्षेत्र और धर्म के आधार पर व्याप्त गहरे भेदभाव को देखते हुए इसे जरूरी कदम बताया।

दूसरे प्रस्ताव में एसडीपीआई ने निर्वाचन क्षेत्रों के प्रस्तावित सीमांकन को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की। पार्टी का कहना है कि सीमांकन को पिछड़े और कमजोर तबकों को हाशिए पर धकेलने के एक औजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि लोकसभा और विधानसभाओं में एससी/एसटी और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को जानबूझकर ऐसी श्रेणी में रखा गया है जिससे ऊंची जातियों को असंगत लाभ मिले।

एसडीपीआई ने यह भी कहा कि सरकार को बढ़ती आबादी के आधार पर सीमांकन नहीं करना चाहिए। पार्टी ने दक्षिण भारत की उन राज्यों के साथ हो रहे ‘अन्याय’ की तरफ इशारा किया, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण के दिशा-निर्देशों का पालन किया, लेकिन अब उन्हें सीटों में कटौती का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, उत्तरी भारत के कुछ राज्य जहां जनसंख्या वृद्धि अधिक रही है, उन्हें ज्यादा सीटें दी जा रही हैं।

एसडीपीआई ने स्पष्ट किया कि वह एक निष्पक्ष और समानतामूलक राजनीतिक व्यवस्था की हिमायती है और देश के सभी समुदायों को समान भागीदारी दिलाने के लिए हर मंच पर अपनी आवाज बुलंद करती रहेगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय ने एमए संस्कृत पाठ्यक्रम से ‘मनुस्मृति’ हटाई, ‘शुक्रनीति’ को किया शामिल

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) ने स्नातकोत्तर (MA) संस्कृत पाठ्यक्रम के तीसरे सेमेस्टर से

हैदराबाद के दसराम में ग्रिनस्पायर वेलफेयर फ़ाउंडेशन मानू टीम का जागरूकता कार्यक्रम, शिक्षा-स्वास्थ्य व न्याय की ओर बड़ा क़दम

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क ग्रिनस्पायर वेलफेयर फ़ाउंडेशन की मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी टीम ने हाल

पटना में TRE-4 शिक्षक भर्ती पर बवाल: अभ्यर्थियों का सड़क पर हंगामा, लाठीचार्ज और गिरफ्तारियां

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क बिहार में चौथे चरण की शिक्षक भर्ती (BPSC TRE-4) को लेकर नाराज़गी

मेवात में दो दिवसीय शैक्षिक सेमिनार सम्पन्न, उलेमा की विरासत पर हुई अहम चर्चा

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क मेवात,हरियाणा के फ़िरोज़पुर झिरका में मरकज़ साउतुल हिजाज़ के तत्वावधान में 24–25

उर्दू यूनिवर्सिटी में मदरसा छात्रों के लिए संचार कौशल कार्यक्रम की शुरुआत! शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स के सहयोग से माणू की पहल

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (माणू) ने आज मदरसों के छात्रों के

पटना में MANUU एलुमनाई मीट : रिश्तों को मज़बूत करने और सहयोग बढ़ाने की दिशा में अहम क़दम

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क बिहार में मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) के एलुमनाई नेटवर्क को

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से मिला MANF स्कॉलर्स का प्रतिनिधिमंडल, राहुल ने किरण रिजिजू को पत्र लिख लंबित भुगतान और फ़ेलोशिप बहाली की मांग किया

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क मौलाना आज़ाद नेशनल फ़ेलोशिप (MANF) पाने वाले शोधार्थियों के प्रतिनिधिमंडल ने संसद

उत्तराखंड के स्कूलों में गीता-रामायण की पढ़ाई शुरू, शिक्षक संघों ने उठाए संविधानिक सवाल

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क उत्तराखंड सरकार ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर बुधवार से