इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
राजस्थान के कोटा शहर में मीट व्यापारियों पर चल रही प्रशासनिक सख्ती के बीच हाईकोर्ट से एक बड़ी राहत की खबर सामने आई है। कोटा में बिना लाइसेंस और स्वच्छता मानकों के नाम पर चल रही दुकानों को बंद कराने के निर्देश के खिलाफ मीट व्यापारियों ने राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, जहां से उन्हें अपने व्यवसाय को जारी रखने की अनुमति और किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर रोक का आदेश मिला।
इस केस में एडवोकेट अंसार इंदौरी, एडवोकेट अजीत कसवा और एडवोकेट अजय कुमार ने प्रभावशाली पैरवी करते हुए कोर्ट को बताया कि कई दुकानदारों के पास लाइसेंस है, और उनके खिलाफ बिना वैध नोटिस या प्रक्रिया के सीधे कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह कार्रवाई व्यापारियों के मौलिक अधिकारों और आजीविका के अधिकार का उल्लंघन है।
कोर्ट ने इन दलीलों को मानते हुए स्पष्ट आदेश दिया कि प्रशासन फिलहाल मीट व्यापारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा और उन्हें अपना व्यवसाय सुचारु रूप से चलाने की अनुमति दी गई है।
रविवार को कोटा सर्किट हाउस में आयोजित एक बैठक में विधायक संदीप शर्मा ने स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि बिना लाइसेंस और स्वच्छता मानकों की अनदेखी करते हुए चल रही मांस की दुकानों को तत्काल बंद किया जाए। उनका कहना था कि ऐसी दुकानें जनभावनाओं को आहत करती हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं।
शर्मा ने यह भी कहा कि राजस्थान एक शाकाहारी बहुल राज्य है और सड़कों पर खुलेआम मांस बेचना यहां की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है। इसके साथ ही उन्होंने पशु चोरी और संरक्षित क्षेत्रों में अवैध मछली शिकार जैसे मामलों पर भी चिंता जताते हुए सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन को तत्काल कोई दंडात्मक कदम उठाने से रोक दिया गया है, जिससे मीट व्यापारियों को राहत मिली है। हालांकि मामले की अगली सुनवाई में प्रशासन को अपने पक्ष को सही ठहराना होगा और यह देखना होगा कि यह राहत स्थायी रूप लेती है या नहीं।
इस बीच कोटा शहर में मांस कारोबार से जुड़े हजारों लोगों ने कोर्ट के फैसले को “अत्यंत राहतकारी और संविधान के अनुरूप” बताया है।