इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले के घाटमपुर कस्बे में 31 मई को विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल द्वारा आयोजित एक कथित ‘आतंकवाद विरोधी’ मार्च ने गंभीर विवाद खड़ा कर दिया है। इस रैली के दौरान मुसलमानों के ख़िलाफ़ खुलेआम नफ़रत भरे नारे लगाए गए और मुस्लिम व्यापारियों के आर्थिक बहिष्कार की अपील की गई।
रैली में मौजूद कार्यकर्ताओं ने “डाबर का तेल लगाओ, बाबर का नाम मिटाओ” जैसे नारे लगाए, जो एक तरफ ऐतिहासिक संदर्भों को सांप्रदायिक रूप देने की कोशिश थी, वहीं दूसरी ओर मुसलमानों के ख़िलाफ़ सीधा हमला भी। इसके अलावा “मुस्लिम दुकानों से सामान मत खरीदो”, “हिंदू उठेगा, इस्लाम झुकेगा” जैसे भड़काऊ नारे भी गूंजते रहे।
बताया गया है कि यह मार्च बजरंग दल के प्रशिक्षण शिविर के समापन के बाद निकाला गया था। लेकिन स्थानीय नागरिकों और चश्मदीदों का कहना है कि यह प्रदर्शन आतंकवाद के ख़िलाफ़ कम, मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़्यादा केंद्रित था।
मार्च के दौरान पुलिस की मौजूदगी के बावजूद किसी भी तरह की रोक-टोक या कार्रवाई नहीं हुई। प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता पर अब सवाल उठाए जा रहे हैं — क्या कुछ संगठनों को कानून से ऊपर मान लिया गया है?
इस घटना की कई सामाजिक और मानवाधिकार संगठनों ने तीव्र निंदा की है। कानपुर अल्पसंख्यक अधिकार मंच के संयोजक नदीम अंसारी ने कहा:
“यह रैली आतंकवाद के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने का अभियान थी। हम इसकी निष्पक्ष जांच और जिम्मेदारों पर कार्रवाई की मांग करते हैं।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के आयोजन और बयानबाज़ी आगामी विधानसभा चुनावों से पहले ध्रुवीकरण की राजनीति को हवा देने की रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं। जब सरकार ‘सबका साथ’ की बात करती है, तो ज़मीनी स्तर पर ‘नफ़रत के साथ’ जैसी तस्वीर क्यों उभरती है?