वजाहत खान पर दर्ज हुए कई मामले, शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी के मुख्य शिकायतकर्ता अब खुद विवादों में घिरे; पुलिस गिरफ्त से बाहर

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर और कानून की छात्रा शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी के पीछे शिकायतकर्ता वजाहत खान अब खुद कानूनी पचड़ों में फंस गए हैं। कोलकाता पुलिस सहित असम और दिल्ली में उनके खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने और भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्ट्स के आरोप में कई एफआईआर दर्ज की गई हैं। खान फिलहाल फरार हैं और पुलिस उन्हें तलाश रही है।

22 वर्षीय शर्मिष्ठा पनोली को 30 मई को गुरुग्राम से कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने “ऑपरेशन सिंदूर” पर एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें मुस्लिम बॉलीवुड सितारों की चुप्पी की आलोचना करते हुए कथित रूप से सांप्रदायिक भाषा का प्रयोग किया गया था। इस वीडियो के आधार पर वजाहत खान ने गार्डन रीच पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि, बाद में पनोली ने वीडियो हटा दिया और सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा गया था, लेकिन 5 जून को कलकत्ता हाईकोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दे दी।

शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी के बाद, सोशल मीडिया पर वजाहत खान की पुरानी पोस्ट्स सामने आईं, जिनमें कथित रूप से हिंदू देवी-देवताओं और धार्मिक परंपराओं के खिलाफ आपत्तिजनक और भड़काऊ भाषा का प्रयोग किया गया था। इन पोस्ट्स के आधार पर कोलकाता के गार्डन रीच, मेटियाब्रुज, असम के गुवाहाटी और दिल्ली में उनके खिलाफ कम से कम सात शिकायतें दर्ज की गई हैं। श्री राम स्वाभिमान परिषद ने आरोप लगाया कि खान ने जानबूझकर हिंदू समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की।

वजाहत खान के पिता सआदत खान ने मीडिया को बताया कि उनका बेटा रविवार रात से लापता है और उसका मोबाइल फोन भी बंद है। उन्होंने दावा किया कि उनके बेटे को धमकी भरे कॉल्स मिल रहे थे और संभवतः उसका सोशल मीडिया अकाउंट हैक कर लिया गया था। कोलकाता पुलिस ने पुष्टि की है कि खान फरार हैं और उनकी तलाश जारी है।

शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी के बाद भाजपा नेताओं और दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने वजाहत खान के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि खान ने भी सोशल मीडिया पर हिंदू समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां की हैं, लेकिन पुलिस ने उनके खिलाफ तुरंत कार्रवाई नहीं की। इस मामले ने कानून के समान अनुप्रयोग और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम नफरत फैलाने वाले भाषण के बीच की रेखा पर बहस को और तेज कर दिया है।

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