इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले के शेरकोट कस्बे में जामा मस्जिद के इमाम मौलाना ज़की और उनके दो सहयोगियों पर गाज़ा में चल रहे नरसंहार के पीड़ितों की सहायता हेतु राहत चंदा इकट्ठा करने के मामले में पुलिस ने आपराधिक मुकदमा दर्ज किया है। यह एफआईआर एक स्थानीय निवासी की शिकायत पर दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि मौलाना ने जबरन चंदा लिया और दान न देने पर फतवे की धमकी दी।
गौरतलब है कि गाज़ा में फिलिस्तीनी नागरिकों पर इज़राइल द्वारा चलाया जा रहा सैन्य अभियान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नरसंहार (genocide) के रूप में देखा जा रहा है। मौलाना ज़की द्वारा मस्जिद परिसर में इसी मानवता-संकट से प्रभावित लोगों के लिए सहायता राशि एकत्र की जा रही थी। स्थानीय पुलिस ने इस मानवीय प्रयास को अपराध की श्रेणी में रखते हुए एफआईआर दर्ज कर दी, जिसे समुदाय ने कड़े शब्दों में निंदा की है।
मौलाना ज़की ने अब तक सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, पर उनके निकटवर्तियों का कहना है कि उन्होंने किसी पर भी चंदा देने का दबाव नहीं बनाया और न ही किसी को धमकी दी।
उनका उद्देश्य केवल मानवीय आधार पर गाज़ा पीड़ितों की मदद करना था।
स्थानीय मुस्लिम समाज ने इस एफआईआर को ‘अमानवीय’, ‘अलोकतांत्रिक’ और ‘राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित’ बताया है।
मस्जिद प्रबंधन से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि “गाज़ा के निर्दोष बच्चों, महिलाओं और नागरिकों पर बमबारी हो रही है। वहां की मदद करना इंसानियत का फ़र्ज़ है, और उसे अपराध बताना भारत के संविधान और मानवीय मूल्यों का अपमान है।”
स्थानीय लोगों का कहना है कि हिंदू संगठनों द्वारा विभिन्न धार्मिक या सामाजिक कारणों के लिए खुले तौर पर चंदा लिया जाता है, लेकिन जब मुस्लिम समाज किसी अंतरराष्ट्रीय मानव संकट पर सहायता करता है, तो उसे संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। यह रवैया लोकतंत्र और समभाव के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
एक सेवानिवृत्त शिक्षक ने द ऑब्जर्वर पोस्ट से कहा कि “मौलाना ज़की किसी मज़हबी उकसावे की बात नहीं कर रहे थे, वे सिर्फ पीड़ितों की मदद की अपील कर रहे थे। जब दुनिया भर के लोग गाज़ा के लिए खड़े हैं, तो भारत के नागरिक ऐसा क्यों नहीं कर सकते?”
शेरकोट पुलिस के अनुसार, मामले में शिकायत मिलने पर कानून के तहत प्राथमिक जांच के बाद एफआईआर दर्ज की गई है। अधिकारियों का कहना है कि निष्पक्ष जांच के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।
इस मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि क्या मानवता के पक्ष में खड़ा होना भी अपराध बन चुका है? क्या अब राहत कार्य भी राजनीतिक चश्मे से देखा जाएगा?