इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
पंजाब के लुधियाना ज़िले के सीदा गांव में मंगलवार को एक दलित युवक हरजोत सिंह पर प्रेमविवाह में मदद के संदेह में भीड़ ने बर्बर हमला किया। युवक के साथ मारपीट की गई, जबरन बाल मुंडवाए गए, चेहरा काला किया गया और अर्धनग्न अवस्था में पूरे गांव में घुमाया गया। घटना का वीडियो वायरल होने के बाद पूरे राज्य में आक्रोश फैल गया है।
घटना के संबंध में पुलिस ने अब तक एक आरोपी को गिरफ्तार किया है, जबकि चार अन्य की तलाश की जा रही है। मामले में अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम सहित कई गंभीर धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, हरजोत सिंह का एक मित्र 19 जून को एक युवती के साथ घर से भागकर विवाह कर चुका था। युवती के परिवार को संदेह था कि हरजोत ने इस विवाह में सहायता की। इसी आधार पर युवती के परिवारजनों और उनके समर्थकों ने सैलून से बाहर खींचकर हरजोत पर हमला कर दिया।
हमले के दौरान न केवल युवक को पीटा गया, बल्कि उसके कपड़े फाड़े गए, चेहरा काला किया गया, और सड़क पर घसीटते हुए जातिसूचक गालियाँ दी गईं। घटना का वीडियो भी बनाया गया, जिसे सोशल मीडिया पर साझा किया गया। इस वीडियो के माध्यम से यह मामला राज्यभर में सुर्खियों में आ गया।
मीहरबान थाना प्रभारी इंस्पेक्टर परमदीप सिंह ने बताया कि इस मामले में पांच आरोपियों की पहचान की गई है—गुरप्रीत उर्फ गोपा, सिमरनजीत उर्फ सिम्मा, संदीप उर्फ सैम, राजवीर और रमनदीप उर्फ काका।
इनमें से सिमरनजीत को गिरफ्तार कर लिया गया है, शेष आरोपियों की तलाश जारी है। पुलिस ने आईपीसी की धारा 323, 506, 295ए, एससी/एसटी एक्ट और आईटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया है!
घटना को लेकर पीड़ित परिवार का कहना है कि यह पूरी तरह से जातीय द्वेष से प्रेरित हमला था। हरजोत की मां ने कहा, “मेरे बेटे की कोई गलती नहीं थी। उसे सिर्फ इसलिए अपमानित किया गया क्योंकि वह दलित है।”
वहीं, पुलिस अधिकारी ने कहा “यह केवल एक युवक पर हमला नहीं, बल्कि मानव गरिमा पर हमला है। आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और पीड़ित को सुरक्षा दी जाएगी।”
घटना के बाद विभिन्न सामाजिक और मानवाधिकार संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। ऑल इंडिया अंबेडकर महासभा, पीयूसीएल और अन्य संगठनों ने दोषियों की जल्द गिरफ्तारी और फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की मांग की है।
हरजोत सिंह के साथ हुई यह घटना केवल एक व्यक्ति के साथ नहीं, बल्कि संविधान और सामाजिक न्याय की मूल भावना पर हमला है। यह स्पष्ट करता है कि भारत में अब भी जातिगत भेदभाव गहराई से मौजूद है और इसके खिलाफ सतर्कता, सख़्ती और संवेदनशीलता से ही निपटा जा सकता है।